फ़िल्मों की तरह ही राजनीति में भी हीरो को हीरो बनने के लिए एक विलेन की ज़रूरत पड़ती है। और इस वक्त दिल्ली चुनावों के ऐन पहले आम आदमी पार्टी को भी उसी विलेन की तलाश है। पिछली बार जब दिल्ली में चुनाव हुए थे तो केजरीवाल और उनकी पार्टी को भ्रष्टाचार नाम के विलेन ने वो हीरो बनने का मौका दिया जो जनता ढूंढ़ रही थी। जनता को यक़ीन था कि कांग्रेस और बीजेपी जैसे आज़माए जा चुके हीरो की बजाय इस नए हीरो में हिट होने का माद्दा ज्यादा है। नतीजा सबके सामने था। लेकिन इस बार तस्वीर अलग है।
इस बार केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी के सामने दिल्ली में विलेन की कमी है। कांग्रेस को जनता पहले ही नकार चुकी है और ऐसे में मुकाबला बीजेपी और आप के बीच माना जा रहा है। आम आदमी पार्टी की दिक्कत ये है कि हीरो से सुपर हीरो बनने की कोशिश में 49 दिन में इस्तीफ़े का उनका स्टंट बुरी तरह फ़ेल रहा। वो सुपर हीरो तो नहीं बने लेकिन इन चुनावों के लिए बीजेपी को वो विलेन दे दिया जिसके बूते वो जनता को यकीन दिलाने में जुटी है कि वो ही उनकी असली रहनुमा है।
यानी बीजेपी के पास मुद्दा है स्थायी सरकार देने का। 49 दिन में सरकार न छोड़ देने का। लेकिन आम आदमी पार्टी, कांग्रेस के भ्रष्टाचार अब गिना नहीं सकती और बीजेपी का गिनाए कहां से। ऐसे में आप अब एक विलेन पैदा कर रही है। अब उसकी कोशिश त्रिलोकपुरी के तनाव को मुद्दा बनाकर बीजेपी को विलेन बनाने की है। लेकिन ये रणनीति बीजेपी को ही रास आने वाली है क्योंकि अगर इससे ध्रुवीकरण तेज़ हुआ तो त्रिलोकपुरी के गरीब बड़ी आसानी से हिंदू−मुसलमान में बंट जाएंगे।
लेकिन, इस रणनीति में दो दिक्कते हैं। एक तो ये कि ऐसा करके वो बीजेपी को ध्रुवीकरण का और मौका दे रही है और दूसरा ये कि वो अपने 49 दिन की सरकार की उपलब्धियों से फ़ोकस शिफ्ट करने का मौका बैठे बिठाये विरोधियों को दे रही है।
हालांकि 49 दिन बनाम 150 दिन के काम की तुलना का सवाल खड़ा करते होर्डिंग लगाए गए हैं, लेकिन केजरीवाल और उनकी पार्टी को समझना होगा कि उनकी ये रणनीति सिर्फ़ होर्डिंग तक नहीं बल्कि पूरे चुनाव तक लोगों के बीच भी पहुंचनी चाहिए। आम आदमी पार्टी अलग राजनीति करने का दावा करती है और अगर वो इस चुनाव का विलेन तलाशने की बजाय ख़ुद के काम का प्रचार ज्यादा करे और उसी के आधार पर वोट मांगे तो वो बीजेपी को कह पाएगी कि पिक्चर अभी बाक़ी है मेरे दोस्त।
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