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This Article is From Aug 03, 2017

टेक्नोलॉजी के इस दौर में प्राइवेसी की सुरक्षा हारी हुई बाजी है : सुप्रीम कोर्ट

नौ जजों की संविधान पीठ इस जटिल मुद्दे से निबट रही है कि क्या प्राइवेसी के अधिकार को मौलिक अधिकार करार दिया जा सकता है.

टेक्नोलॉजी के इस दौर में प्राइवेसी की सुरक्षा हारी हुई बाजी है : सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली: सार्वजनिक रूप से उपलब्ध निजी सूचना के संभावित गलत इस्तेमाल को लेकर चिंता जाहिर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि टेक्नोलॉजी के इस दौर में प्राइवेसी की सुरक्षा 'हारी हुई बाजी' है. चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता में नौ जजों की संविधान पीठ इस जटिल मुद्दे से निबट रही है कि क्या प्राइवेसी के अधिकार को संविधान के तहत मौलिक अधिकार करार दिया जा सकता है.

एटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल, अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता, कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमण्यम सहित कई वरिष्ठ वकीलों ने प्राइवेसी के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में शामिल किए जाने के पक्ष और विरोध में दलीलें पेश कीं. इस मामले में 27 अगस्त या इससे पहले फैसला सुनाया जाएगा. उसी दिन न्यायमूर्ति खेहर विदा हो रहे हैं.

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पीठ ने कहा, 'हम प्राइवेसी की हारी हुई बाजी की लड़ाई लड़ रहे हैं. हम नहीं जानते कि किस मकसद से सूचना का इस्तेमाल किया जाएगा. यह निश्चित तौर पर चिंता का विषय है.' गुजरात सरकार की पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि निजता के कुछ पहलुओं को विभिन्न बुनियादी अधिकारों में खोजा जा सकता है, लेकिन प्राधिकारों को बुनियादी निजी सूचना प्रदान करना मौजूदा तकनीकी युग में ज्यादा पारदर्शिता लाने के लिए जरूरी है. इसके बाद द्विवेदी ने सुप्रीम कोर्ट के नियमों का जिक्र किया, जिसने किसी निजी हित की याचिका दायर करने के लिए विभिन्न निजी सूचना प्रदान करना जरूरी कर दिया है.

VIDEO : क्या निजता मौलिक अधिकार है?
उन्होंने कहा, 'आप नियमावली के तहत विभिन्न निजी सूचनाएं मांग कर तकनीक के साथ आगे बढ़ रहे हैं.' द्विवेदी ने इसके बाद इस तथ्य का जिक्र किया कि सुप्रीम कोर्ट जनहित याचिका दायर करने की इजाजत देने के लिए नाम, पता, टेलीफोन नंबर, पेशा और राष्ट्रीय अनूठा पहचान कार्ड जैसी निजी सूचना मांग रहा है.

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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