
सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल मदरसा सेवा आयोग अधिनियम, 2008 को वैध बताया है. जस्टिस अरुण मिश्रा और यू यू ललित की पीठ ने पश्चिम बंगाल मदरसा सेवा आयोग अधिनियम, 2008 की संवैधानिक वैधता का फैसला करते हुए इस मुद्दे पर अपना फैसला सुनाया है जिसके तहत मदरसों में शिक्षकों की नियुक्ति एक आयोग द्वारा तय की जानी थी. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ ही अब आयोग द्वारा अल्पसंख्यक संस्थानों में शिक्षकों की नियुक्तियां की जा सकेंगी. गौरतलब है कि सरकार ने एक अधिनियम लाया था कि मदरसों सहित अल्पसंख्यक संस्थानों को शिक्षकों की नियुक्ति का अधिकार सरकार द्वारा एक विधायी प्रक्रिया अपनाकर लिया जा सकता है, जिसका उद्देश्य समुदाय की स्थिति का उत्थान करना है. जिसके बाद विभिन्न मदरसों की प्रबंध समिति ने कोलकाता उच्च न्यायालय का रुख किया था जिसने अधिनियम को असंवैधानिक घोषित करते हुए कहा कि यह अनुच्छेद 30 का उल्लंघन है.
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मदरसा प्रबंध समिति ने अपनी याचिका में कहा था कि सभी अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार है. इसके बाद हाईकोर्ट के फैसले को नए कानून के तहत नियुक्त शिक्षकों द्वारा SC में चुनौती दी गई. उनकी याचिका को सुनने के लिए सहमत होते हुए शीर्ष अदालत ने उन्हें अंतरिम राहत दी और राज्य सरकार को निर्देश दिया कि उन्हें अंतिम आदेश तक अपनी नौकरी से न हटाएं और उन्हें वेतन जारी करें. चूंकि 2,600 से अधिक रिक्तियों के परिणामस्वरूप कानूनी विवाद के दौरान कोई नियुक्ति नहीं हुई थी, मई 2018 में शीर्ष अदालत ने पदों को भरने की अनुमति दी थी.
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