सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कोरोनावायरस महामारी (Coronavirus Pandemic) की वजह से कर्ज की अदायगी में छूट की अवधि (Loan Moratorium Period) के लिए ब्याज पर लेवी की मांग को चुनौती देने वाली याचिका पर मंगलवार को केंद्र और भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) से जवाब मांगा है. बता दें कि कोविड-19 (Covid-19) की वजह से कर्ज की अदायगी में छूट की अवधि को अब 31 अगस्त तक बढ़ा दिया गया है.जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए इस मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र और RBI को नोटिस जारी किया और उन्हें एक सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है.
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने बेंच को जानकारी दी कि सरकार ने पहली बार ऋण अदागयी में तीन महीने की छूट दी थी जो 31 मई तक थी. इस अवधि को अब तीन महीने के लिए और बढ़ा दिया गया है. उन्होंने कहा कि बैंकों से कर्ज लेने वालों को इस तरह से दंडित नहीं किया जाना चाहिए और इस अवधि के लिए बैंकों को कर्ज की रकम पर ब्याज नहीं जोड़ना चाहिए.बेंच ने अपने आदेश में कहा, ‘रिजर्व बैंक के वकील ने जवाब देने के लिए एक सप्ताह का समय देने का अनुरोध किया जो उन्हें दिया गया. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को भी इस बीच जरूरी निर्देश मिलेंगे.' यह मामला अब अगले सप्ताह सुनवाई के लिए लिस्ट में डाला गया है.
गौरतलब है कि कोरोनावायरस महामारी के मद्देनजर देशव्यापी लॉकडाउन के अर्थव्यवस्था पर ज्यादा असर डालने से रोकने के इरादे से रिजर्व बैंक ने 27 मार्च को कई निर्देश जारी किए थे. रिजर्व बैंक ने सभी बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को एक मार्च की स्थिति के अनुसार कर्जदारों पर बकाया राशि के भुगतान के लिए तीन महीने की ढील देने की छूट दी थी.रिजर्व बैंक ने कहा था कि ऐसे ऋण की वापसी के कार्यक्रम को इस अवधि के बाद तीन महीने आगे बढ़ाया जाएगा लेकिन ऋण अदायगी से छूट की अवधि में बकाया राशि पर ब्याज पहले जैसा ही लगता रहेगा.
यह याचिका आगरा के गजेंद्र शर्मा ने दायर की है और इसमें रिजर्व बैंक की 27 मार्च की अधिसूचना के उस हिस्से को असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध किया गया था जिसमें ऋण स्थगन की अवधि के दौरान कर्ज की राशि पर ब्याज वसूली का प्रावधान है.याचिका के अनुसार , इस प्रावधान से कर्जदार के रूप में याचिकाकर्ता के लिए परेशानी पैदा होती है और यह संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त जीने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है.शीर्ष अदालत ने 30 अप्रैल को रिजर्व बैंक को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि उसके सर्कुलर में कर्ज भुगतान के संबंध में एक मार्च से 31 मई की अवधि के दौरान तीन महीने की ढील की व्यवस्था पर पूरी ईमानदारी से अमल किया जाए.
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