
देशद्रोह के मामले की सुप्रीम कोर्ट ने की सुनवाई
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कोर्ट ने कहा कि 124 A को लेकर पहले से संविधान पीठ ने 1962 में गाइडलाइन दी
सुप्रीम कोर्ट NGO कॉमन कॉज की उस जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा है
सरकारें व्यक्ति को डराने या विरोधी आवाज़ को दबाने की कोशिश करती हैं
कोर्ट ने कहा कि 124 A को लेकर पहले से संविधान पीठ ने 1962 में गाइडलाइन दी थी, इसलिए इसके लिए सुनवाई की जरूरत नहीं है. अगर किसी केस में सही नहीं हुआ तो उसे चुनौती दी जा सकती है.
सुप्रीम कोर्ट NGO कॉमन कॉज की उस जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा है जिसमें कहा गया है कि देशभर में देशद्रोह के कई केस लगाये गए हैं. इस तरह के केस सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन हैं.
याचिका में कहा गया है कि कोर्ट ऐसे केसों में DGP या कमिश्नर पुलिस से आदेश लेने को अनिवार्य बनाये जिसमें गिरफ्तार या FIR दर्ज होने से पहले ये कहा गया हो कि किसी कार्य से हिंसा को बढ़ावा मिल रहा है या कानून व्यस्था बिगड़ रही है. इसके बाद ही किसी शख्स के ख़िलाफ़ FIR दर्ज की जाए या फिर गिरफ्तार किया जाए. इसके लिए सुप्रीम कोर्ट कोई गाइडलाइन तैयार करे.
याचिका में कहा गया कि राज्य सरकारें किसी व्यक्ति को डराने या सरकार विरोधी आवाज़ को दबाने की कोशिश के लिए देशद्रोह के तहत मुकदमा दर्ज करवाती हैं.
याचिका में लेखिका अरूंधति राय, कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी, एक्टीविस्ट बिनायक सेन, यूपी में कश्मीर के 67 छात्र और जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार के मामलों की लिस्ट दी गई है और कहा गया है कि उन्हें डराने के लिए केस दर्ज किए गए.
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