नई दिल्ली:
पाकिस्तान के सूक्ष्म जीव विज्ञानी मोहम्मद खलील चिश्ती को सुप्रीम कोर्ट ने 20 साल पुराने एक आपराधिक मामले में हत्या के आरोप से बरी कर दिया और उन्हें बिना किसी प्रतिबंध के स्वदेश जाने की अनुमति प्रदान कर दी।
सुप्रीम कोर्ट अदालत ने हालांकि, जानबूझकर नुकसान पहुंचाने के मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 324 के तहत उनकी दोषसिद्धि में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया और उतनी ही सजा सुनाई, जितनी कि वह जेल में पहले ही काट चुके हैं।
न्यायमूर्ति पी सदाशिवम और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की पीठ ने उल्लेख किया कि चिश्ती भारत में प्रवास के दौरान लगभग एक साल जेल में रहे और न्याय का उद्देश्य उन्हें जेल में बिताई गई अवधि के बराबर ही सजा सुनाकर पूरा हो जाएगा। न्यायालय ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे चिश्ती को उनके पासपोर्ट सहित सभी दस्तावेज वापस कर दें। इसने कहा कि चिश्ती बिना किसी प्रतिबंध के पाकिस्तान लौटने को स्वतंत्र हैं।
पीठ ने चिश्ती की उम्र और योग्यता पर भी विचार किया और अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे चिश्ती की बाधा रहित स्वदेश वापसी के लिए हरसंभव कदम उठाएं। कोर्ट ने 10 मई के अपने आदेश का भी उल्लेख किया और कहा कि चूंकि चिश्ती के खिलाफ आगे किसी कार्यवाही की जरूरत नहीं है, इसलिए पांच लाख रुपये की जमानत राशि उन्हें या उनके द्वारा नामांकित किए गए व्यक्ति को वापस कर दी जानी चाहिए।
शीर्ष अदालत ने 10 मई को चिश्ती से दो हफ्ते के भीतर उच्चतम न्यायालय रजिस्ट्री के समक्ष अपना पासपोर्ट और पांच लाख रुपये की नकद जमानत राशि जमा करने को कहा था। मामले के दो अन्य आरोपियों को भी केवल धारा 324 के तहत ही दोषी ठहराया गया और उन्हें तत्काल रिहा करने के आदेश दिए गए। न्यायालय ने कहा कि मामले में कोई विश्वसनीय साक्ष्य सामने नहीं आया। अभियोजन पक्ष अपराध और सबूतों से जुड़े दो सेट दस्तावेज लेकर आए, जो आपस में विरोधाभासी थे।
इससे पूर्व, 4 मई को सुप्रीम कोर्ट ने स्वदेश जाने के चिश्ती के आग्रह पर सुनवाई के लिए सहमति जताई थी और केंद्र से इस पर जवाब मांगा था। शीर्ष अदालत ने 9 अप्रैल को चिश्ती को जमानत प्रदान की थी। उन्हें 20 साल पुराने हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था और वह राजस्थान की अजमेर जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे थे। न्यायालय ने चिश्ती को मानवीय आधार पर जमानत प्रदान की थी, लेकिन उनसे कहा था कि अगले आदेश तक वह अजमेर नहीं छोड़ें।
केंद्र ने हालांकि, यह कहकर चिश्ती के अस्थायी रूप से पाकिस्तान जाने पर आपत्ति जताई थी कि हो सकता है कि वह वापस नहीं लौटें, लेकिन न्यायालय ने उन्हें पाकिस्तान जाने की अनुमति दे दी थी। चिश्ती 1992 में अपनी मां को देखने अजमेर आए थे। इस दौरान वह एक झगड़े में उलझ गए, जिसमें उनके एक पड़ोसी की गोली मारकर हत्या कर दी गई, जबकि उनका भतीजा घायल हो गया। अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की देखरेख करने वाले समृद्ध परिवार में जन्मे चिश्ती ने 1947 में देश के बंटवारे के बाद पाकिस्तान में रहने का विकल्प चुना, क्योंकि उस समय वह वहीं पढ़ रहे थे।
18 साल तक चले मुकदमे के बाद चिश्ती को अजमेर की सत्र अदालत ने हत्या के मामले में दोषी ठहराते हुए पिछले साल 31 जनवरी को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। उन्हें पूर्व में मुकदमे के दौरान भी निचली अदालत से जमानत मिल गई थी, लेकिन निर्देश दिया गया था कि वह अजमेर नहीं छोड़ें। दोषी ठहराए जाने के बाद उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया था, ताकि वह सजा काट सकें। हृदय संबंधी, श्रवण संबंधी तथा अन्य बीमारियों से ग्रस्त चिश्ती अपनी दोषसिद्धि तक अपने भाई के मुर्गी फार्म में रह रहे थे।
उनका मामला तब प्रकाश में आया था, जब सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि पाकिस्तानी नागरिक को मानवीय आधार पर माफ कर दिया जाना चाहिए। कराची मेडिकल कॉलेज के जाने-माने प्रोफेसर चिश्ती एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी से पीएचडी हैं।
सुप्रीम कोर्ट अदालत ने हालांकि, जानबूझकर नुकसान पहुंचाने के मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 324 के तहत उनकी दोषसिद्धि में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया और उतनी ही सजा सुनाई, जितनी कि वह जेल में पहले ही काट चुके हैं।
न्यायमूर्ति पी सदाशिवम और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की पीठ ने उल्लेख किया कि चिश्ती भारत में प्रवास के दौरान लगभग एक साल जेल में रहे और न्याय का उद्देश्य उन्हें जेल में बिताई गई अवधि के बराबर ही सजा सुनाकर पूरा हो जाएगा। न्यायालय ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे चिश्ती को उनके पासपोर्ट सहित सभी दस्तावेज वापस कर दें। इसने कहा कि चिश्ती बिना किसी प्रतिबंध के पाकिस्तान लौटने को स्वतंत्र हैं।
पीठ ने चिश्ती की उम्र और योग्यता पर भी विचार किया और अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे चिश्ती की बाधा रहित स्वदेश वापसी के लिए हरसंभव कदम उठाएं। कोर्ट ने 10 मई के अपने आदेश का भी उल्लेख किया और कहा कि चूंकि चिश्ती के खिलाफ आगे किसी कार्यवाही की जरूरत नहीं है, इसलिए पांच लाख रुपये की जमानत राशि उन्हें या उनके द्वारा नामांकित किए गए व्यक्ति को वापस कर दी जानी चाहिए।
शीर्ष अदालत ने 10 मई को चिश्ती से दो हफ्ते के भीतर उच्चतम न्यायालय रजिस्ट्री के समक्ष अपना पासपोर्ट और पांच लाख रुपये की नकद जमानत राशि जमा करने को कहा था। मामले के दो अन्य आरोपियों को भी केवल धारा 324 के तहत ही दोषी ठहराया गया और उन्हें तत्काल रिहा करने के आदेश दिए गए। न्यायालय ने कहा कि मामले में कोई विश्वसनीय साक्ष्य सामने नहीं आया। अभियोजन पक्ष अपराध और सबूतों से जुड़े दो सेट दस्तावेज लेकर आए, जो आपस में विरोधाभासी थे।
इससे पूर्व, 4 मई को सुप्रीम कोर्ट ने स्वदेश जाने के चिश्ती के आग्रह पर सुनवाई के लिए सहमति जताई थी और केंद्र से इस पर जवाब मांगा था। शीर्ष अदालत ने 9 अप्रैल को चिश्ती को जमानत प्रदान की थी। उन्हें 20 साल पुराने हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था और वह राजस्थान की अजमेर जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे थे। न्यायालय ने चिश्ती को मानवीय आधार पर जमानत प्रदान की थी, लेकिन उनसे कहा था कि अगले आदेश तक वह अजमेर नहीं छोड़ें।
केंद्र ने हालांकि, यह कहकर चिश्ती के अस्थायी रूप से पाकिस्तान जाने पर आपत्ति जताई थी कि हो सकता है कि वह वापस नहीं लौटें, लेकिन न्यायालय ने उन्हें पाकिस्तान जाने की अनुमति दे दी थी। चिश्ती 1992 में अपनी मां को देखने अजमेर आए थे। इस दौरान वह एक झगड़े में उलझ गए, जिसमें उनके एक पड़ोसी की गोली मारकर हत्या कर दी गई, जबकि उनका भतीजा घायल हो गया। अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की देखरेख करने वाले समृद्ध परिवार में जन्मे चिश्ती ने 1947 में देश के बंटवारे के बाद पाकिस्तान में रहने का विकल्प चुना, क्योंकि उस समय वह वहीं पढ़ रहे थे।
18 साल तक चले मुकदमे के बाद चिश्ती को अजमेर की सत्र अदालत ने हत्या के मामले में दोषी ठहराते हुए पिछले साल 31 जनवरी को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। उन्हें पूर्व में मुकदमे के दौरान भी निचली अदालत से जमानत मिल गई थी, लेकिन निर्देश दिया गया था कि वह अजमेर नहीं छोड़ें। दोषी ठहराए जाने के बाद उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया था, ताकि वह सजा काट सकें। हृदय संबंधी, श्रवण संबंधी तथा अन्य बीमारियों से ग्रस्त चिश्ती अपनी दोषसिद्धि तक अपने भाई के मुर्गी फार्म में रह रहे थे।
उनका मामला तब प्रकाश में आया था, जब सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि पाकिस्तानी नागरिक को मानवीय आधार पर माफ कर दिया जाना चाहिए। कराची मेडिकल कॉलेज के जाने-माने प्रोफेसर चिश्ती एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी से पीएचडी हैं।
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