नई दिल्ली:
13 जून, 1997 की शाम थी, और शुक्रवार का दिन... नई दिल्ली के ग्रीन पार्क स्थित उपहार सिनेमाहॉल में फिल्म 'बॉर्डर' का मैटिनी शो (दोपहर 3 से शाम 6 बजे तक) अपने आख़िरी दौर में था, और हॉल खचाखच भरा था... तभी हॉल के एक कोने से धुआं निकलना शुरू हुआ, और देखते ही देखते आग ने पूरे हॉल को चपेट में ले लिया... 59 लोग इसमें झुलसकर या दम घुटकर मारे गए, और 100 से ज़्यादा भगदड़ में घायल भी हुए... हॉल मालिकों सुशील और गोपाल अंसल को हादसे के बाद कुछ महीने तो जेल में रहना पड़ा था, लेकिन अब बुधवार, 19 अगस्त, 2015 को 18 साल बाद आए आखिरी फैसले में हॉल के मालिकान के पास रिहाई की राहत मौजूद है...
बताया जाता है, आग लगने के बाद प्रबंधकों ने सिनेमाहॉल के दरवाज़े बंद करवा दिए थे, और हॉल में जहां इमरजेंसी एग्ज़िट होने चाहिए थे, वहां भी सीटें लगा दी गई थीं... लेकिन अब अंसल भाइयों को जेल नहीं जाना होगा... दोनों को सिर्फ 30-30 करोड़ रुपये का जुर्माना देना होगा, और 60 करोड़ रुपये की यह रकम तीन महीने में जमा की जानी है, लेकिन पीड़ित परिवार पूछ रहे हैं कि क्या ये 60 करोड़ रुपये 59 लोगों की जान की कीमत हैं...? उनका कहना है, इस पैसे से उनका इंसाफ नहीं हुआ...
उस मनहूस दिन नीलम कृष्णमूर्ति ने एक बेटा और एक बेटी खो दिए थे... वह कहती हैं, "18 साल पहले मेरा भगवान से विश्वास उठ गया था, अब न्यायपालिका से भी उठ गया है..." हादसे में नवीन साहनी ने भी अपनी बेटी खोई थी, और वह भी फैसले से मायूस हैं...
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सारे तथ्यों को ध्यान में रखते हुए सिनेमाहॉल के मालिकों गोपाल और सुशील अंसल को दोषी माना है और हाइकोर्ट के फैसले पर ही मुहर लगाई है, लेकिन 18 साल लंबे इस कानूनी सफर के दौरान...
सो, ज़ाहिर है, गोपाल और सुशील अंसल के लिए यह फैसला बड़ी राहत है... दरअसल, कानून के मुताबिक जो कुछ भी मुमकिन था, वह सुप्रीम कोर्ट ने किया है, लेकिन यह सवाल दीगर है कि ऐसे मामलों में कानून कितना सख़्त होना चाहिए...
बताया जाता है, आग लगने के बाद प्रबंधकों ने सिनेमाहॉल के दरवाज़े बंद करवा दिए थे, और हॉल में जहां इमरजेंसी एग्ज़िट होने चाहिए थे, वहां भी सीटें लगा दी गई थीं... लेकिन अब अंसल भाइयों को जेल नहीं जाना होगा... दोनों को सिर्फ 30-30 करोड़ रुपये का जुर्माना देना होगा, और 60 करोड़ रुपये की यह रकम तीन महीने में जमा की जानी है, लेकिन पीड़ित परिवार पूछ रहे हैं कि क्या ये 60 करोड़ रुपये 59 लोगों की जान की कीमत हैं...? उनका कहना है, इस पैसे से उनका इंसाफ नहीं हुआ...
उस मनहूस दिन नीलम कृष्णमूर्ति ने एक बेटा और एक बेटी खो दिए थे... वह कहती हैं, "18 साल पहले मेरा भगवान से विश्वास उठ गया था, अब न्यायपालिका से भी उठ गया है..." हादसे में नवीन साहनी ने भी अपनी बेटी खोई थी, और वह भी फैसले से मायूस हैं...
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सारे तथ्यों को ध्यान में रखते हुए सिनेमाहॉल के मालिकों गोपाल और सुशील अंसल को दोषी माना है और हाइकोर्ट के फैसले पर ही मुहर लगाई है, लेकिन 18 साल लंबे इस कानूनी सफर के दौरान...
- निचली अदालत ने दोनों भाइयों को दो-दो साल की जेल की सज़ा सुनाई थी...
- 2008 में दिल्ली हाइकोर्ट ने इसे घटाकर एक-एक साल कर दिया था...
- सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की बेंच की राय इस मामले में अलग-अलग रही...
- जस्टिस टीएस ठाकुर ने हाइकोर्ट की सज़ा बहाल रखी, जबकि जस्टिस ज्ञानसुधा मिश्रा ने कहा, उन्हें दो साल की सज़ा होनी चाहिए...
- दूसरे साल के विकल्प के तौर पर 100 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया...
- अब तीन जजों की बेंच ने 60 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है...
सो, ज़ाहिर है, गोपाल और सुशील अंसल के लिए यह फैसला बड़ी राहत है... दरअसल, कानून के मुताबिक जो कुछ भी मुमकिन था, वह सुप्रीम कोर्ट ने किया है, लेकिन यह सवाल दीगर है कि ऐसे मामलों में कानून कितना सख़्त होना चाहिए...
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