जल्दबाजी में जलविद्युत प्रोजेक्ट को मंजूरी देकर हिमालय से खिलवाड़ बंद हो : चंडी प्रसाद भट्ट

चिपको आंदोलन के नेता चंडी प्रसाद भट्ट नेजल विद्युत परियोजना की गुपचुप स्वीकृति देना ऐसी आपदाओं को दावत देने जैसा है. संवेदनशील क्षेत्र में इस परियोजना के लिए स्वीकृति कैसे दी गई.

जल्दबाजी में जलविद्युत प्रोजेक्ट को मंजूरी देकर हिमालय से खिलवाड़ बंद हो : चंडी प्रसाद भट्ट

गोपेश्वर:

अलकनंदा के ग्लेशियर टूटने (Glacier Burst) से उत्तराखंड में आई आपदा को लेकर पर्यावरणविद सवाल उठाने लगे हैं. चिपको आंदोलन के नेता एवं मैगसेसे पुरस्कार विजेता चंडी प्रसाद भट्ट ने सोमवार को कहा कि जल्दबाजी में गुपचुप तरीके से संवेदनशील क्षेत्र में जल विद्युत परियोजनाओं को मंजूरी दी दी जा रही है और ऐसे कामों से हिमालय के पारिस्थतिकी तंत्र (Himalayan Ecosystem)  से खिलवाड़ बंद किया जाए. 

भट्ट ने कहा कि चमोली के रैणी क्षेत्र में रविवार को ऋषिगंगा (Rishi Ganga) नदी में आई बाढ़ इसी का नतीजा है. अंतरराष्ट्रीय गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित भट्ट ने कहा कि ऋषिगंगा और धौली गंगा में जो हुआ वह प्रकृति से खिलवाड़ करने का ही परिणाम है.हिमालय नाजुक पर्वत है और टूटना बनना इसके स्वभाव में है. भूकंप, हिमस्खलन, भूस्खलन, बाढ़, ग्लेशियर, तालों का टूटना और नदियों का अवरूद्ध होना आदि इसके अस्तित्व से जुड़े हुए हैं. भट्ट ने कहा कि बढ़ता इंसानी दखल हिमालय का पारिस्थितिकीय तंत्र बर्दाश्त नहीं कर सकता है.

1970 की अलकनन्दा (Alak Nanda) की भयानक बाढ़ पर चिपको नेता ने कहा कि उस साल ऋषिगंगा घाटी समेत पूरी अलकनंदा घाटी में बाढ़ से भारी तबाही हुई थी जिसने हिमालय के टिकाउ विकास के बारे में सोचने को मजबूर किया था. इस बाढ़ के बाद लोगों ने ऋषिगंगा के मुहाने पर स्थित रैणी गांव के जंगल को बचाने के लिए सफलतापूर्वक चिपको आंदोलन आरम्भ किया. इसके फलस्वरूप तत्कालीन राज्य सरकार ने अलकनंदा के पूरे जलाशय के इलाके में पेड़ों की कटाई को प्रतिबंधित कर दिया था. भट्ट ने कहा कि पिछले कई दशकों से हिमालय के एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक बाढ़ और भूस्खलन की घटना तेजी से बढ़ रही है. 2013 में गंगा की सहायक नदियों में आई प्रलयंकारी बाढ़ से न केवल केदारनाथ बल्कि पूरे उत्तराखंड को गंभीर चिंतन करने के लिए मजबूर कर दिया.

भट्ट ने कहा कि ऋषिगंगा में घाटी की संवेदनशीलता को दरकिनार कर अल्प ज्ञान के आधार पर जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण को पर्यावरणीय स्वीकृति दे दी गई जबकि यह इलाका नन्दादेवी नेशनल पार्क के मुहाने पर है. 13 मेगावाट की जल विद्युत परियोजना की गुपचुप स्वीकृति देना ऐसी आपदाओं को दावत देने जैसा है. इस परियोजना के निर्माण की जानकारी मिलने पर दुख हुआ कि संवेदनशील क्षेत्र में इस परियोजना के लिए स्वीकृति कैसे दी गई. जबकि हमारे पास ऐसी परियोजनाओं को सुरक्षित संचालन के लिए इस क्षेत्र के पारिस्थितिकीय तंत्र के बारे में कारगर जानकारी अभी भी उपलब्ध नहीं है.

भट्ट ने सवाल उठाया कि परियोजनाओं को बनाने और चलाने की अनुमति और खासतौर पर पर्यावरणीय स्वीकृति (Environmental Clearance) तो बिना सवाल जवाब के मिल जाती है. लेकिन स्थानीय जरूरतों के लिए स्वीकृति मिलने पर सालों इंतजार करना पड़ता है.

पर्यावरणविद ने कहा कि गंगा और उसकी सहायक धाराओं में से अधिकांश ग्लेशियरों से निकलती हैं और उनके स्रोत पर ग्लेशियरों के साथ कई छोटे बड़े तालाब हैं जिनके बारे में ज्यादा जानकारी एकत्रित करने की जरूरत है. चिपको नेता ने कहा कि हिमालय की संवेदनशीलता को देखते हए अंतरिक्ष, भूगर्भीय ग्लेशियर से संबंधित विभागों के माध्यम से उसका अध्ययन किया जाना चाहिए और उनकी संस्तुतियों को कार्यान्वित किया जाना चाहिए.

बाढ़ की वजह से टनल में भरा मलबा
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