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This Article is From Feb 11, 2018

चंद्रधर शर्मा गुलेरी की अमर कहानी पर आधारित जीवंत मूक फिल्म 'उसने कहा था द ट्रॉथ' का मंचन

इस विश्वयुद्ध में करीब 13 लाख भारतीयों ने हिस्सा लिया था जिसके सौ साल पूरे हो गए, “उसने कहा था” एक भारतीय सिख सैनिक सरदार लहना सिंह की कहानी है जो अपने प्रेम के ख़ातिर अपने वचन को पूरा करने के लिए देता है, 26 जनवरी को जयपुर साहित्य उत्सव में इसका पहली बार मंचन हुआ था. जबलपुर, भोपाल, कुरुक्षेत्र और अब दिल्ली में हुआ. 13 तारीख़ को राष्ट्रपति भवन में इसके मंचन के साथ ही ग्रुप का भारत दौरा समाप्त होगा.

चंद्रधर शर्मा गुलेरी की अमर कहानी पर आधारित जीवंत मूक फिल्म 'उसने कहा था द ट्रॉथ' का मंचन
चंद्रधर शर्मा गुलेरी की अमर कहानी पर आधारित मूक फिल्म 'उसने कहा था द ट्रॉथ' का मंचन
चंद्रधर शर्मा गुलेरी की अमर कहानी 'उसने कहा था' पर आधारित जीवंत मूक फिल्म “उसने कहा था द ट्रॉथ” का शनिवार को दिल्ली में मंचन किया गया, भारत-ब्रिटन संस्कृति वर्ष तथा रिइमैजिन इंडिया के तहत इसकी प्रस्तुति ब्रिटेन की एकेडमी द्वारा की गई है. इसमें पहले विश्वयुद्ध के दुर्लभ  फुटेज का इस्तेमाल किया गया है. इस विश्वयुद्ध में करीब 13 लाख भारतीयों ने हिस्सा लिया था जिसके सौ साल पूरे हो गए, “उसने कहा था” एक भारतीय सिख सैनिक सरदार लहना सिंह की कहानी है जो अपने प्रेम के ख़ातिर अपने वचन को पूरा करने के लिए देता है, 26 जनवरी को जयपुर साहित्य उत्सव में इसका पहली बार मंचन हुआ था. जबलपुर, भोपाल, कुरुक्षेत्र और अब दिल्ली में हुआ. 13 तारीख़ को राष्ट्रपति भवन में इसके मंचन के साथ ही ग्रुप का भारत दौरा समाप्त होगा.

गुलेरी की कहानी को सौ साल हो चुके हैं. पंजाब के ग्रामीण इलाक़ों से यह कहानी प्रथम विश्व युद्ध के दौरान बेल्जियम के बंकरों तक चलती है. गुलेरी की इस कहानी का एक संवाद- “तेरी कुड़माई हो गई? धत्त!” हमेशा के लिए पाठकों के ज़हन में बस चुका है. प्रथम विश्व युद्ध के सौ साल पूरे होने के मौके पर कोरियोग्राफ़र गैरी क्लार्क इस सशक्त कथानक को प्रेरक संगीत और आर्काइव फिल्म के माध्यम से बयान करते हैं. इसमें ब्रिटन के बेहद प्रतिभाशाली युवा नर्तकों ने हिस्सा लिया है और अपने बेहतरीन अभिनय से इस कहानी को रंगमंच पर जीवंत कर दिया है.
 
usne kaha tha
प्रथम विश्वयुद्ध में करीब तेरह लाख भारतीयों ने हिस्सा लिया था. यह स्वयंसेवी योद्धाओं की सबसे बड़ी फ़ौज थी. इस नाटक में भारतीय सैनिकों के युद्ध के दौरान जीवन का सजीव चित्रण है. दिलचस्प बात यह है कि क्रिएटिव टीम को तब की पोशाक, संगीत, फ़ौजी तौर-तरीक़ों के बारे में ब्रिटिश सेना की ओर से जानकारी तथा सलाह दी गई है. कलाकारों में कथक नर्तकी विद्या पटेल शामिल हैं जो बीबीसी के 2015 के लिए यंग डांसर्स में शामिल रही हैं. हाल ही में रिचर्ड एलेस्टेयर डांस कंपनी में उनके प्रदर्शन को खूब सराहा गया.

द ट्रॉथ तीन महत्वपूर्ण घटनाओं के सौ वर्ष पूरे होने पर मनाया जा रहा है. प्रथम विश्व युद्ध (1914-15) भारतीय सिनेमा (1913) और प्रथम भारतीय लघु कहानी (1915). इसके लिए गहन शोध किया गया है.जाने-माने इतिहासकारों और शैक्षणिक विद्वानों से विचार-विमर्श किया गया. इनमें अमरजीत चंदन (कवि व शिक्षाविद), डॉक्टर शान्तनु दास (किंग्स कॉलेज लंदन में इतिहासकार), त्रिपुरारी शर्मा (राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली) और अशोक सागर भगत शामिल हैं.

अकादमी का निदेशक मीरा कौशिक कहती हैं-उसने कहा था भारतीय साहित्य की वह अनमोल धरोहर है जिसे करोड़ों लोगों ने सराहा. हमारा मंचन एक जीवंत मूक फिल्म है जो कि अकादमी द्वारा करीब 20 साल बाद आउटडोर पर्फोमेंस है. भारत और ब्रिटन की कलात्मक साझेदारी के इस कार्य में आर्ट कौंसिल इंग्लैंड, ब्रिटिश कौंसिल, भारत सरकार के संस्कृति और विदेश मंत्रालय तथा ब्रिटिश सेना शामिल है.

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