नई दिल्ली:
दूध, कपास और चीनी के निर्यात पर प्रतिबंध से खफा कृषि मंत्री शरद पवार ने इस बारे में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर अपना विरोध जताया है। उन्होंने कहा कि सरकार की नीतियां किसानों को नुकसान पहुंचा रही हैं और उन्हें उद्योग के लिए ‘सब्सिडी’ देनी पड़ रही है।
कृषिमंत्री ने मंगलवार को प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। इससे एक दिन पहले ही मंत्रियों के समूह ने चालू विपणन वर्ष में 1.3 करोड़ गांठ से अधिक के कपास निर्यात की अनुमति देने से इनकार किया था।
पवार ने विशेष रूप से के वी थॉमस की अगुवाई वाले खाद्य मंत्रालय और आनंद शर्मा की अगुवाई वाले कपड़ा मंत्रालय को आड़े हाथ लेते हुए कहा है कि उनकी नीतियों किसानों के खिलाफ हैं।
कपास निर्यात पर ‘रोक’ को प्रतिगामी कदम बताते हुए कृषि मंत्री ने कहा कि भारतीय कपास की खेती करने वाले किसान से यह नहीं कहा जा सकता कि वह कपड़ा मिलों के लिए सब्सिडी का बोझ उठाए। उन्होंने कहा कि कपड़ा उद्योगपतियों के लाभ के लिए छोटे कपास किसानों के हितों के साथ समझौता उचित नहीं है।
पवार ने कहा कि इसी तरह खाद्य मंत्रालय के चीनी निर्यात की अनुमति पर नकारात्मक रुख से निर्यात आमदनी का भारी नुकसान हुआ है। इस आमदनी का इस्तेमाल गन्ना किसानों के बकाये के भुगतान के लिए किया जा सकता था, जो 8,000 करोड़ रुपये से अधिक हो गया है।
कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा कि मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह के मिलों के बीच निर्यात के लिए कोटा प्रणाली को समाप्त किए जाने के निर्देश के बावजूद खाद्य मंत्रालय चीनी निर्यात बढ़ाने को लेकर कोई नया तरीका लेकर नहीं आया है। उन्होंने कहा कि हमें 2006-07 और 2007-08 की गलतियों से सबक सीखना चाहिए, जब हमें चीनी उद्योग और गन्ना किसानों को राहत के लिए निर्यात और बफर सब्सिडी पर 1,500 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े थे।
घरेलू स्तर पर अधिक उत्पादन के मद्देनजर सरकार ने इस साल के लिए तीन किस्तों में 30 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति दी है। खाद्य मंत्रालय ने तीसरी किस्त के निर्यात फैसले को अभी तक अधिसूचित नहीं किया है।
पवार ने कहा कि केंद्र की दूध और दूध उत्पादों पर नीति भी इसी तरह की है। उन्होंने स्किम्ड मिल्ड पाउडर और कैसेन के निर्यात को जल्द खोलने की मांग की।
अपने पत्र में पवार ने कहा है कि देश में खाद्यान्न, कपास, गन्ने और तिलहन का रिकार्ड उत्पादन हुआ है। यह उपलब्धि बढ़ती उत्पादन लागत के बावजूद हासिल हुई है। सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य से सभी लागत को निकालना संभव नहीं है और ऐसे में हमें मुक्त बाजार और व्यापार व्यवस्था की जरूरत है, जिससे किसानों को लाभकारी मूल्य मिल सके।
कृषिमंत्री ने मंगलवार को प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। इससे एक दिन पहले ही मंत्रियों के समूह ने चालू विपणन वर्ष में 1.3 करोड़ गांठ से अधिक के कपास निर्यात की अनुमति देने से इनकार किया था।
पवार ने विशेष रूप से के वी थॉमस की अगुवाई वाले खाद्य मंत्रालय और आनंद शर्मा की अगुवाई वाले कपड़ा मंत्रालय को आड़े हाथ लेते हुए कहा है कि उनकी नीतियों किसानों के खिलाफ हैं।
कपास निर्यात पर ‘रोक’ को प्रतिगामी कदम बताते हुए कृषि मंत्री ने कहा कि भारतीय कपास की खेती करने वाले किसान से यह नहीं कहा जा सकता कि वह कपड़ा मिलों के लिए सब्सिडी का बोझ उठाए। उन्होंने कहा कि कपड़ा उद्योगपतियों के लाभ के लिए छोटे कपास किसानों के हितों के साथ समझौता उचित नहीं है।
पवार ने कहा कि इसी तरह खाद्य मंत्रालय के चीनी निर्यात की अनुमति पर नकारात्मक रुख से निर्यात आमदनी का भारी नुकसान हुआ है। इस आमदनी का इस्तेमाल गन्ना किसानों के बकाये के भुगतान के लिए किया जा सकता था, जो 8,000 करोड़ रुपये से अधिक हो गया है।
कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा कि मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह के मिलों के बीच निर्यात के लिए कोटा प्रणाली को समाप्त किए जाने के निर्देश के बावजूद खाद्य मंत्रालय चीनी निर्यात बढ़ाने को लेकर कोई नया तरीका लेकर नहीं आया है। उन्होंने कहा कि हमें 2006-07 और 2007-08 की गलतियों से सबक सीखना चाहिए, जब हमें चीनी उद्योग और गन्ना किसानों को राहत के लिए निर्यात और बफर सब्सिडी पर 1,500 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े थे।
घरेलू स्तर पर अधिक उत्पादन के मद्देनजर सरकार ने इस साल के लिए तीन किस्तों में 30 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति दी है। खाद्य मंत्रालय ने तीसरी किस्त के निर्यात फैसले को अभी तक अधिसूचित नहीं किया है।
पवार ने कहा कि केंद्र की दूध और दूध उत्पादों पर नीति भी इसी तरह की है। उन्होंने स्किम्ड मिल्ड पाउडर और कैसेन के निर्यात को जल्द खोलने की मांग की।
अपने पत्र में पवार ने कहा है कि देश में खाद्यान्न, कपास, गन्ने और तिलहन का रिकार्ड उत्पादन हुआ है। यह उपलब्धि बढ़ती उत्पादन लागत के बावजूद हासिल हुई है। सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य से सभी लागत को निकालना संभव नहीं है और ऐसे में हमें मुक्त बाजार और व्यापार व्यवस्था की जरूरत है, जिससे किसानों को लाभकारी मूल्य मिल सके।
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