कांग्रेस नेता कमल नाथ (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
कांग्रेस में अपनी मध्यस्थता के गुर के लिए पहचाने जाने वाले कमल नाथ को अरुणाचल प्रदेश से खाली हाथ लौटकर आना पड़ा। गौरतलब है कि राज्य में पार्टी के बीच मतभेद की वजह से सरकार गिर गई थी और कमलनाथ इसी मसले को सुलझाने के लिए उपाध्यक्ष राहुल गांधी की ओर से मध्यस्थता के लिए भेजे गए थे। मामला नबम तुकी और उनके कट्टर प्रतिद्वंदी कलिखो पुल के बीच है और सूत्रों ने एनडीटीवी को बताया है कि पुल चाहते हैं कि तुकी की जगह उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री बनाया जाए।
संवैधानिक संकट की शुरुआत बीते साल हुई जब 60 सदस्यों वाली अरुणाचल विधानसभा में तब की कांग्रेस सरकार के 47 विधायकों में से 21 विधायकों ने अपनी ही पार्टी और मुख्यमंत्री के खिलाफ बगावत कर दी। इसके बाद 26 जनवरी 2016 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। बता दें कि सिर्फ पुल का आक्रमक रवैया ही कांग्रेस के लिए बाधा पैदा नहीं कर रहा है। पार्टी के कानूनी जानकार जैसे कि वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने इस मामले में सावधानी बरतने की सलाह दी है क्योंकि फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में राज्य के इस मुद्दे से संबंधित सभी मामलों की सुनवाई चल रही है। इसमें विधानसभा से 14 बागियों को अयोग्य घोषित करने का मामला भी शामिल है।
अल्पमत या बहुमत
15 दिसबंर को कांग्रेस ने दावा किया था कि पूर्व विधानसभा स्पीकर नबम रेबिया ने 14 विधायकों को अयोग्य करार दिया था। पार्टी बागियों ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। पुल का दावा है कि 60 सदस्यीय विधानसभा में 47 में से 21 विधायकों के बागियों के होने के बाद टुकी की कांग्रेस सरकार अब अल्पमत में है। पुल ने यह भी कहा है कि कांग्रेस विद्रोहियों के साथ साथ बीजेपी के 11 सदस्यों की वजह से अब टुकी के खिलाफ 32 विधायक खड़े हैं।
वहीं कांग्रेस ने जवाब में कहा है कि 14 विधायकों की अयोग्यता और 2 के इस्तीफे के बाद विधानसभा की संख्या अब सिर्फ 44 ही रह गई है। इस हिसाब से तुकी फिलहाल अच्छे खासे बहुमत में है। पार्टी ने यह भी आरोप लगाया है कि राज्यपाल जेपी राजखौवा 'बीजेपी के एजेंट' की तरह काम किया है और वक्त से पहले विधानसभा सत्र का आयोजन करके कांग्रेस के बागी सांसदों की सरकार गिराने में मदद की है। फिलहाल राज्य के भविष्य का फैसला सुप्रीम कोर्ट के हाथ में है जहां अरुणाचल प्रदेश के इस संकट से जुड़ी सभी मामलों के सुनवाई चल रही है।
संवैधानिक संकट की शुरुआत बीते साल हुई जब 60 सदस्यों वाली अरुणाचल विधानसभा में तब की कांग्रेस सरकार के 47 विधायकों में से 21 विधायकों ने अपनी ही पार्टी और मुख्यमंत्री के खिलाफ बगावत कर दी। इसके बाद 26 जनवरी 2016 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। बता दें कि सिर्फ पुल का आक्रमक रवैया ही कांग्रेस के लिए बाधा पैदा नहीं कर रहा है। पार्टी के कानूनी जानकार जैसे कि वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने इस मामले में सावधानी बरतने की सलाह दी है क्योंकि फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में राज्य के इस मुद्दे से संबंधित सभी मामलों की सुनवाई चल रही है। इसमें विधानसभा से 14 बागियों को अयोग्य घोषित करने का मामला भी शामिल है।
अल्पमत या बहुमत
15 दिसबंर को कांग्रेस ने दावा किया था कि पूर्व विधानसभा स्पीकर नबम रेबिया ने 14 विधायकों को अयोग्य करार दिया था। पार्टी बागियों ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। पुल का दावा है कि 60 सदस्यीय विधानसभा में 47 में से 21 विधायकों के बागियों के होने के बाद टुकी की कांग्रेस सरकार अब अल्पमत में है। पुल ने यह भी कहा है कि कांग्रेस विद्रोहियों के साथ साथ बीजेपी के 11 सदस्यों की वजह से अब टुकी के खिलाफ 32 विधायक खड़े हैं।
वहीं कांग्रेस ने जवाब में कहा है कि 14 विधायकों की अयोग्यता और 2 के इस्तीफे के बाद विधानसभा की संख्या अब सिर्फ 44 ही रह गई है। इस हिसाब से तुकी फिलहाल अच्छे खासे बहुमत में है। पार्टी ने यह भी आरोप लगाया है कि राज्यपाल जेपी राजखौवा 'बीजेपी के एजेंट' की तरह काम किया है और वक्त से पहले विधानसभा सत्र का आयोजन करके कांग्रेस के बागी सांसदों की सरकार गिराने में मदद की है। फिलहाल राज्य के भविष्य का फैसला सुप्रीम कोर्ट के हाथ में है जहां अरुणाचल प्रदेश के इस संकट से जुड़ी सभी मामलों के सुनवाई चल रही है।
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