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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक सुनवाई के दौरान बहस उस समय रोचक हो गई जब जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ (Justice DY Chandrachud) ने पूर्व अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी (Mukul Rohatgi) के पीछे लगी ऐतिहासिक पेंटिंग का जिक्र किया. खास बात ये है कि बॉम्बे हाईकोर्ट में लगी बाल गंगाधर तिलक (Bal Gangadhar Tilak) के ट्रायल की पेंटिंग को ना केवल जस्टिस चंद्रचूड़ ने पहचाना बल्कि तिलक ने 1908 में हुए ट्रायल के दौरान जो आखिरी शब्द कहे वो, अक्षरश: सुना दिए, "जूरी के फैसले के बावजूद मैं मानता हूं कि मैं बेगुनाह हूं. उच्च शक्तियां हैं जो पुरुषों और राष्ट्रों की नियति को नियंत्रित करती हैं और यह विधाता की इच्छा हो सकती है कि मैं जिस कारण का प्रतिनिधित्व करता हूं वह अधिक समृद्ध हो सकता है जब मैं पीड़ित रहूं, बजाए कि मैं छूट जाऊं.”
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गौरतलब है कि जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने लंबे समय तक बॉम्बे हाईकोर्ट में बतौर वकील प्रैक्टिस की है. बाद में लंबे समय तक वो इस ऐतिहासिक हाईकोर्ट में बतौर जज भी नियुक्त रहे. वो वकील के तौर पर रोजाना हाईकोर्ट में लगी तिलक के बयानों की पट्टी को पढ़ते थे, जो उनको याद हो गई.
दरअसल लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1908 में अपने ऐतिहासिक ट्रायल में भाग लिया था. यह बॉम्बे हाई कोर्ट की दूसरी मंजिल पर है, केंद्रीय अदालत के बाहर जहां लोकमान्य तिलक का मुकदमा हुआ था. उन दिनों उस अदालत में सेशन ट्रायल होते थे. इसमें एक जूरी बॉक्स भी है. दरबार में अद्भुत वास्तुकला है. उच्च न्यायालय के विरासत संरक्षण के दौरान इसे बहाल किया गया है. एक बहुत प्रसिद्ध संरक्षण वास्तुकार आभा लांबा ने 2012 में जीर्णोद्धार किया. इसमें महात्मा गांधी और डॉ बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की तस्वीरें भी हैं.
लोकमान्य तिलक की तस्वीर तो है ही, एक ब्रिटिश जज की भी पेंटिंग है जिसने तत्कालीन गवर्नर को हाईकोर्ट के एक आदेश की अवज्ञा करने पर अदालत को बंद करने की धमकी दी थी.
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