नई दिल्ली:
देश की संसदीय राजनीति में लगभग पांच दशकों तक प्रभावी भूमिका निभाने के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने अब सक्रिय राजनीति को अलविदा कहने का संकेत दिया है। उन्होंने कहा है कि वे 2014 के आम चुनाव में प्रत्याशी नहीं बनने जा रहे हैं।
एक निजी समाचार चैनल को दिए गए साक्षात्कार के दौरान प्रधानमंत्री बनने के बारे में पूछे जाने पर पवार ने बड़ी बेबाकी से कहा कि वे ऐसे सपने नहीं देखते जो कभी सच न हो पाएं। राज्य की राजनीति से लेकर देश की भावी सरकार की संभावनाओं पर पवार ने खुलकर बात की।
किसी गठबंधन सरकार का प्रधानमंत्री बनने की अपनी संभावना को खारिज करते हुए पवार ने कहा, "मैं लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ने जा रहा हूं। मैंने यह फैसला ले लिया है। दूसरा, मैं अपनी सीमाएं जानता हूं। प्रधानमंत्री बनने का सपना देखने वाले व्यक्ति को अपनी पार्टी से कम से कम 40 सांसद होना होना चाहिए। मेरी पार्टी इतनी संख्या में प्रत्याशी नहीं उतारने जा रही है। इसलिए हम जो साकार नहीं हो सकता वैसे सपने ही नहीं देखते।"
महाराष्ट्र के बारामती विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से 1967 में कांग्रेस के विधायक के रूप में चुने जाने के साथ ही शरद पवार ने संसदीय राजनीति में कदम रखा। इससे पहले छात्र जीवन में भी वह राजनीति से जुड़े रहे और गोवा मुक्ति संघर्ष में हिस्सेदारी की थी। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार में मंत्री के रूप में देश की राजनीति में चर्चित रहे पवार के राजनीतिक संरक्षक यशवंत बलवंत राव चव्हाण थे।
पवार का कांग्रेस के साथ रिश्ता बनता बिगड़ता रहा है। आपातकाल लागू करने के कारण पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लोगों की नाराजगी को देखते हुए पवार ने कांग्रेस छोड़ दी थी।
पवार वर्ष 1987 में कांग्रेस में वापस हुए थे, मगर सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठाते हुए 1999 में उन्होंने फिर कांग्रेस छोड़ दी और पीए संगमा के साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) का गठन किया। वर्ष 2004 के आम चुनाव के बाद पवार संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन और केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी शामिल हुए।
एक निजी समाचार चैनल को दिए गए साक्षात्कार के दौरान प्रधानमंत्री बनने के बारे में पूछे जाने पर पवार ने बड़ी बेबाकी से कहा कि वे ऐसे सपने नहीं देखते जो कभी सच न हो पाएं। राज्य की राजनीति से लेकर देश की भावी सरकार की संभावनाओं पर पवार ने खुलकर बात की।
किसी गठबंधन सरकार का प्रधानमंत्री बनने की अपनी संभावना को खारिज करते हुए पवार ने कहा, "मैं लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ने जा रहा हूं। मैंने यह फैसला ले लिया है। दूसरा, मैं अपनी सीमाएं जानता हूं। प्रधानमंत्री बनने का सपना देखने वाले व्यक्ति को अपनी पार्टी से कम से कम 40 सांसद होना होना चाहिए। मेरी पार्टी इतनी संख्या में प्रत्याशी नहीं उतारने जा रही है। इसलिए हम जो साकार नहीं हो सकता वैसे सपने ही नहीं देखते।"
महाराष्ट्र के बारामती विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से 1967 में कांग्रेस के विधायक के रूप में चुने जाने के साथ ही शरद पवार ने संसदीय राजनीति में कदम रखा। इससे पहले छात्र जीवन में भी वह राजनीति से जुड़े रहे और गोवा मुक्ति संघर्ष में हिस्सेदारी की थी। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार में मंत्री के रूप में देश की राजनीति में चर्चित रहे पवार के राजनीतिक संरक्षक यशवंत बलवंत राव चव्हाण थे।
पवार का कांग्रेस के साथ रिश्ता बनता बिगड़ता रहा है। आपातकाल लागू करने के कारण पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लोगों की नाराजगी को देखते हुए पवार ने कांग्रेस छोड़ दी थी।
पवार वर्ष 1987 में कांग्रेस में वापस हुए थे, मगर सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठाते हुए 1999 में उन्होंने फिर कांग्रेस छोड़ दी और पीए संगमा के साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) का गठन किया। वर्ष 2004 के आम चुनाव के बाद पवार संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन और केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी शामिल हुए।
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