नागपुर:
सीने पर हाथ रखकर समर्पण का वचन देते राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के स्वयंसेवकों ने मंगलवार को विजयदशमी के अवसर पर 90 वर्षों से पहनी जा रही खाकी रंग की हाफपैंट, यानी नेकर को अलविदा कहकर भूरी फुलपैंट पहन ली.
आरएसएस के स्थापना दिवस, यानी दशहरा के अवसर पर गणवेश में स्वीकार किए गए इस बदलाव के केंद्र में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के वैचारिक संरक्षक कहे जाने वाले संगठन में नए युग का सूत्रपात हो गया है. खाकी नेकर से भूरी फुलपैंट की तरफ जाने के अलावा आरएसएस ने अपने स्वयंसेवकों द्वारा पही जाने वाली जुराबों के रंग को भी खाकी से बदलकर गहरा भूरा कर दिया है, जबकि हमेशा से पहनी जा रही सफेद कमीज़ और काली टोपी के साथ-साथ लाठी अब भी गणवेश का हिस्सा बनी रहेगी.
गणवेश में बदलाव नागपुर में आयोजित समारोह के दौरान लाया गया, जहां सरसंघचालक, यानी संघ प्रमुख मोहन भागवत स्वयं भी नया गणवेश पहने मौजूद थे.
उत्तरी तथा पूर्वी राज्यों में, जहां सर्दी का प्रकोप ज़्यादा होता है, स्वयंसेवक गणवेश के ऊपर गहरे भूरे रंग के स्वेटर भी पहना करेंगे, और इस तरह के एक लाख स्वेटरों का ऑर्डर पहले ही दिया जा चुका है.
संघ के संचार विभाग के प्रमुख मनमोहन वैद्य ने कहा, "भले ही अलग-अलग मुद्दों पर संघ के साथ मिलकर काम करने को लेकर समाज में स्वीकार्यता बढ़ी है, गणवेश में बदलाव काम करने के दौरान आराम तथा सुविधा को ध्यान में रखते हुए किया गया है... यह बदलाव संघ के भी समय के साथ बदलने का प्रतीक है..."
उन्होंने बताया कि आठ लाख से ज़्यादा पैंट बांटी जा चुकी हैं, जिनमें छह लाख पैंट सिलवाकर दी गईं, तथा बाकी दो लाख के लिए कपड़ा देशभर में फैले आरएसएस कार्यालयों में पहुंचाया गया.
मनमोहन वैद्य के अनुसार, गणवेश में बदलाव का प्रस्ताव सबसे पहले वर्ष 2009 में किया गया था, लेकिन उसके बाद कुछ नहीं हो पाया. इसके बाद इस प्रस्ताव को वर्ष 2015 में फिर लाया गया, और फिर विचार-विमर्श के बाद आरएसएस के नेताओं तथा स्वयंसेवकों ने सर्वसम्मति से तय किया कि गणवेश में परिवर्तन आवश्यक है. इसके बाद अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने इस निर्णय का अनुमोदन किया.
पोशाक में आया यह बदलाव उस युग के समापन का द्योतक है, जिसके अंतर्गत कई दशक से अब तक आरएसएस स्वयंसेवकों की पहचान ही खाकी नेकर से हुआ करती थी, जो ब्रिटिश पुलिस की वर्दी से प्रभावित थी. यह भी माना जा रहा है कि गणवेश में लाए गए परिवर्तन के पीछे संघ की इस इच्छा का भी हाथ है, जिसके अंतर्गत वह चाहता है कि युवा वर्ग उनसे जुड़े.
यह बदलाव दरअसल संघ की उस इच्छा का परिणाम है, जिसमें वह चाहता था कि समय के साथ बदलाव किया जाए, और मौजूदा समय के मुताबिक कोई सुविधाजनक गणवेश तय किया जाए.
संघ के एक वरिष्ठ नेता ने बताया, "संघ के दशकों पुराने गणवेश को बदल देने के मुद्दे पर लंबे अरसे से चर्चा हो रही थी, और संघ की निर्णय लेने वाली शीर्ष संस्था अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने नई पोशाक को कुछ महीने पहले ही स्वीकृति दी थी..."
आरएसएस के एक अन्य नेता राजीव तुली ने कहा कि संघ समय के साथ बदलने के लिहाज़ से हमेशा ही लचीला संगठन रहा है, इसीलिए "गणवेश में परिवर्तन किया गया है..."
आरएसएस के स्थापना दिवस, यानी दशहरा के अवसर पर गणवेश में स्वीकार किए गए इस बदलाव के केंद्र में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के वैचारिक संरक्षक कहे जाने वाले संगठन में नए युग का सूत्रपात हो गया है. खाकी नेकर से भूरी फुलपैंट की तरफ जाने के अलावा आरएसएस ने अपने स्वयंसेवकों द्वारा पही जाने वाली जुराबों के रंग को भी खाकी से बदलकर गहरा भूरा कर दिया है, जबकि हमेशा से पहनी जा रही सफेद कमीज़ और काली टोपी के साथ-साथ लाठी अब भी गणवेश का हिस्सा बनी रहेगी.
गणवेश में बदलाव नागपुर में आयोजित समारोह के दौरान लाया गया, जहां सरसंघचालक, यानी संघ प्रमुख मोहन भागवत स्वयं भी नया गणवेश पहने मौजूद थे.
उत्तरी तथा पूर्वी राज्यों में, जहां सर्दी का प्रकोप ज़्यादा होता है, स्वयंसेवक गणवेश के ऊपर गहरे भूरे रंग के स्वेटर भी पहना करेंगे, और इस तरह के एक लाख स्वेटरों का ऑर्डर पहले ही दिया जा चुका है.
संघ के संचार विभाग के प्रमुख मनमोहन वैद्य ने कहा, "भले ही अलग-अलग मुद्दों पर संघ के साथ मिलकर काम करने को लेकर समाज में स्वीकार्यता बढ़ी है, गणवेश में बदलाव काम करने के दौरान आराम तथा सुविधा को ध्यान में रखते हुए किया गया है... यह बदलाव संघ के भी समय के साथ बदलने का प्रतीक है..."
उन्होंने बताया कि आठ लाख से ज़्यादा पैंट बांटी जा चुकी हैं, जिनमें छह लाख पैंट सिलवाकर दी गईं, तथा बाकी दो लाख के लिए कपड़ा देशभर में फैले आरएसएस कार्यालयों में पहुंचाया गया.
मनमोहन वैद्य के अनुसार, गणवेश में बदलाव का प्रस्ताव सबसे पहले वर्ष 2009 में किया गया था, लेकिन उसके बाद कुछ नहीं हो पाया. इसके बाद इस प्रस्ताव को वर्ष 2015 में फिर लाया गया, और फिर विचार-विमर्श के बाद आरएसएस के नेताओं तथा स्वयंसेवकों ने सर्वसम्मति से तय किया कि गणवेश में परिवर्तन आवश्यक है. इसके बाद अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने इस निर्णय का अनुमोदन किया.
पोशाक में आया यह बदलाव उस युग के समापन का द्योतक है, जिसके अंतर्गत कई दशक से अब तक आरएसएस स्वयंसेवकों की पहचान ही खाकी नेकर से हुआ करती थी, जो ब्रिटिश पुलिस की वर्दी से प्रभावित थी. यह भी माना जा रहा है कि गणवेश में लाए गए परिवर्तन के पीछे संघ की इस इच्छा का भी हाथ है, जिसके अंतर्गत वह चाहता है कि युवा वर्ग उनसे जुड़े.
यह बदलाव दरअसल संघ की उस इच्छा का परिणाम है, जिसमें वह चाहता था कि समय के साथ बदलाव किया जाए, और मौजूदा समय के मुताबिक कोई सुविधाजनक गणवेश तय किया जाए.
संघ के एक वरिष्ठ नेता ने बताया, "संघ के दशकों पुराने गणवेश को बदल देने के मुद्दे पर लंबे अरसे से चर्चा हो रही थी, और संघ की निर्णय लेने वाली शीर्ष संस्था अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने नई पोशाक को कुछ महीने पहले ही स्वीकृति दी थी..."
आरएसएस के एक अन्य नेता राजीव तुली ने कहा कि संघ समय के साथ बदलने के लिहाज़ से हमेशा ही लचीला संगठन रहा है, इसीलिए "गणवेश में परिवर्तन किया गया है..."
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
आरएसएस, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, खाकी नेकर, खाकी हाफपैंट, भूरी फुलपैंट, मोहन भागवत, RSS, Rashtriya Swayamsevak Sangh, RSS Shorts, Khaki Shorts, Brown Trousers, Mohan Bhagwat