चौधरी ने बीएसपी सुप्रीमो मायावती पर टिकट बेचने के आरोप लगाए हैं।
लखनऊ:
करीब हफ्तेभर के अंदर मायावती को दूसरा बड़ा झटका लगा है। बीएसपी में पासियों के सबसे बड़े नेता माने जाने वाले आरके चौधरी ने मायावती पर टिकट बेचने का इल्जाम लगाकर इस्तीफा दे दिया। उन्होंने कहा कि बीएसपी अब मायावती की रियल एस्टेट कंपनी बन गई है। मायावती के खिलाफ शक्ति प्रदर्शन के लिए चौधरी 11 जुलाई को कार्यकर्ता सम्मेलन करेंगे।
कभी मायावती भाईचारा कमेटियां बना रही थीं जो ब्राह्मणों और दलितों के बीच पुल का काम कर रही थी। तभी ये नारे बने कि 'हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा, विष्णु महेश है। लेकिन अब मायावती के अपने घर में ही फूट पड़ी है। 35 साल पहले कांशी राम के संगठन डीएस4 के साथ जुड़े आरके चौधरी दूसरी बार बीएसपी से जुदा हुए मायावती पर अमीरों को टिकट बेचने का इल्जाम लगा कर।
'टिकट बेचने की मंड़ी बन गई है बसपा'
चौधरी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि इस समय बहुजन समाज पार्टी टिकट बेचने की मंडी बन गई है। बहुजन समाज पार्टी में जमीनी नेताओं को, मिशिनरी कार्यकर्ताओं को तरजीह नहीं मिल रही है। बल्कि प्रॉपर्टी वाले, पैसे वाले, भूमाफिया और ठेकेदार हावी होते जा रहे हैं। निश्चित तौर पर दुखी होकर यह सोचा कि अब पार्टी समाजिक परिवर्तन का आंदोलन नहीं रह गई, बल्कि सुश्री मायावती जी का व्यक्तिगत रियल एस्टेट कंपनी बनकर रह गई है।
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देखें, स्वामी प्रसाद मौर्य ने छोड़ी बीएसपी, मायावती ने कहा- नहीं छोड़ते तो हम निकाल देते
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आरके चौधरी 1981 में कांशी राम की डीएस-4 से जुड़े थे। साल 1993 में सपा-बसपा की मिली-जुली सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। 21 जुलाई 2001 को उन्होंने बीएसपी छोड़ दी थी, 12 साल तक वह डीएस4 की तर्ज पर बीएस4 नाम का संगठन चलाते रहे। उन्होंने राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी नाम से राजनीतिक दल भी बनाया, उससे चुनाव लड़े और विधायक भी बने। इसके लिए उन्होंने बीजेपी, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी से अलग-अलग वक्त में सहयोग भी लिया। अप्रैल 2013 में उनकी बीएसपी में घर वापसी हुई। वह लखनऊ की मोहनलालगंज सीट से टिकट मांग रहे थे, लेकिन मायावती ने नहीं दिया।
यह है यूपी में दलित वोटों का पूरा आंकड़ा
चौधरी कहते हैं, 'उनको पता नहीं है... उन्होंने अपना इतना तेवर रख रखा है कि किसी कार्यकर्ता की हिम्मत नहीं है कि सही बात कह सके। मायावती जी ऐसी नेता हैं कि सही बात सुनना नहीं चाहती हैं।' आरके चौधरी दलितों की दूसरी सबसे बड़ी उपजती पासी जाति से हैं। उनकी जाति में उनका अच्छा असर है। यूपी में दलित वोट 21 फीसद हैं, जिनकी 66 उपजातियां हैं। इनमें से 56 फीसद जाटव, 16 फीसद पासी, 15 फीसद धोबी, कोरी, बाल्मिकी वगैरह और 5 फीसद गोंड, धानुक, खातिक आदि हैं।
'पार्टी पर नहीं पड़ेगा कोई असर'
बीजेपी गैर जाटव दलित वोट को मायावती से तोड़ने की कोशिश में है। लेकिन बीएसपी कहती है कि चौधरी के जाने का कोई असर नहीं होगा। चौधरी के पार्टी छोड़ते ही उनका जवाब देने की जिम्मेदारी मायावती ने पार्टी के पूर्व सांसद ब्रिजेश पाठक को दी, जिन्होंने कहा 'निजी स्वार्थवश वे पार्टी से मोहनलालगंज विधानसभा सीट से टिकट मांग रहे थे, इसी कारण वो नाराज थे और पार्टी छोड़कर चले गए। बहुजन समाज पार्टी पर इनके छोड़ने से कोई असर नहीं पड़ेगा।'
एक दौर था जब मायावती ब्राह्मणों को पार्टी से जोड़कर सोशल इंजीनियरिंग कर रही थीं और एक दौर है कि पिछड़े व दलित नेता भी मायावती को छोड़कर जा रहे हैं। मायावती अपनी पार्टी की चाहे जितनी बड़ी नेता हों, लेकिन राजनीति में परसेप्शन की भी लड़ाई है और जाहिर है कि यह मायावती के लिए शुभ संकेत नहीं है।
कभी मायावती भाईचारा कमेटियां बना रही थीं जो ब्राह्मणों और दलितों के बीच पुल का काम कर रही थी। तभी ये नारे बने कि 'हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा, विष्णु महेश है। लेकिन अब मायावती के अपने घर में ही फूट पड़ी है। 35 साल पहले कांशी राम के संगठन डीएस4 के साथ जुड़े आरके चौधरी दूसरी बार बीएसपी से जुदा हुए मायावती पर अमीरों को टिकट बेचने का इल्जाम लगा कर।
'टिकट बेचने की मंड़ी बन गई है बसपा'
चौधरी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि इस समय बहुजन समाज पार्टी टिकट बेचने की मंडी बन गई है। बहुजन समाज पार्टी में जमीनी नेताओं को, मिशिनरी कार्यकर्ताओं को तरजीह नहीं मिल रही है। बल्कि प्रॉपर्टी वाले, पैसे वाले, भूमाफिया और ठेकेदार हावी होते जा रहे हैं। निश्चित तौर पर दुखी होकर यह सोचा कि अब पार्टी समाजिक परिवर्तन का आंदोलन नहीं रह गई, बल्कि सुश्री मायावती जी का व्यक्तिगत रियल एस्टेट कंपनी बनकर रह गई है।
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आरके चौधरी 1981 में कांशी राम की डीएस-4 से जुड़े थे। साल 1993 में सपा-बसपा की मिली-जुली सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। 21 जुलाई 2001 को उन्होंने बीएसपी छोड़ दी थी, 12 साल तक वह डीएस4 की तर्ज पर बीएस4 नाम का संगठन चलाते रहे। उन्होंने राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी नाम से राजनीतिक दल भी बनाया, उससे चुनाव लड़े और विधायक भी बने। इसके लिए उन्होंने बीजेपी, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी से अलग-अलग वक्त में सहयोग भी लिया। अप्रैल 2013 में उनकी बीएसपी में घर वापसी हुई। वह लखनऊ की मोहनलालगंज सीट से टिकट मांग रहे थे, लेकिन मायावती ने नहीं दिया।
यह है यूपी में दलित वोटों का पूरा आंकड़ा
चौधरी कहते हैं, 'उनको पता नहीं है... उन्होंने अपना इतना तेवर रख रखा है कि किसी कार्यकर्ता की हिम्मत नहीं है कि सही बात कह सके। मायावती जी ऐसी नेता हैं कि सही बात सुनना नहीं चाहती हैं।' आरके चौधरी दलितों की दूसरी सबसे बड़ी उपजती पासी जाति से हैं। उनकी जाति में उनका अच्छा असर है। यूपी में दलित वोट 21 फीसद हैं, जिनकी 66 उपजातियां हैं। इनमें से 56 फीसद जाटव, 16 फीसद पासी, 15 फीसद धोबी, कोरी, बाल्मिकी वगैरह और 5 फीसद गोंड, धानुक, खातिक आदि हैं।
'पार्टी पर नहीं पड़ेगा कोई असर'
बीजेपी गैर जाटव दलित वोट को मायावती से तोड़ने की कोशिश में है। लेकिन बीएसपी कहती है कि चौधरी के जाने का कोई असर नहीं होगा। चौधरी के पार्टी छोड़ते ही उनका जवाब देने की जिम्मेदारी मायावती ने पार्टी के पूर्व सांसद ब्रिजेश पाठक को दी, जिन्होंने कहा 'निजी स्वार्थवश वे पार्टी से मोहनलालगंज विधानसभा सीट से टिकट मांग रहे थे, इसी कारण वो नाराज थे और पार्टी छोड़कर चले गए। बहुजन समाज पार्टी पर इनके छोड़ने से कोई असर नहीं पड़ेगा।'
एक दौर था जब मायावती ब्राह्मणों को पार्टी से जोड़कर सोशल इंजीनियरिंग कर रही थीं और एक दौर है कि पिछड़े व दलित नेता भी मायावती को छोड़कर जा रहे हैं। मायावती अपनी पार्टी की चाहे जितनी बड़ी नेता हों, लेकिन राजनीति में परसेप्शन की भी लड़ाई है और जाहिर है कि यह मायावती के लिए शुभ संकेत नहीं है।
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