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This Article is From Oct 05, 2016

पतंजलि के सीईओ बालकृष्ण 'सबसे रईस', लेकिन शानोशौकत के नाम पर सिर्फ रेंजरोवर कार और आईफोन

पतंजलि के सीईओ बालकृष्ण 'सबसे रईस', लेकिन शानोशौकत के नाम पर सिर्फ रेंजरोवर कार और आईफोन
पतंजलि आयुर्वेद के प्रमुख आचार्य बालकृष्ण भारत के अमीरों में से एक हैं...
हरिद्वार: आचार्य बालकृष्ण को देखकर कहीं से भी नहीं लगता कि वह एक बड़ी कंपनी के सीईओ हो सकते हैं, लेकिन इतना तो मानना पड़ेगा कि किसी ऐसी कंपनी के टॉप बॉस के लिए उनकी लुंगी और कुर्ता ही उपयुक्त पोशाक हैं, जिसकी जड़ें योग और आयुर्वेद में हों...

वर्ष 1995 में हरिद्वार में दिव्य फार्मेसी के रूप में शुरू किए गए पतंजलि ग्रुप के प्रमुख की हैसियत से बालकृष्ण हाल ही में फोर्ब्स की रईसों की सूची में शामिल किए गए हैं, जिनकी निजी संपदा 25,000 करोड़ रुपये आंकी गई है... 50 करोड़ रुपये के ऋण से शुरू की गई पतंजलि का सालाना कारोबार अगले साल 10,000 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है, लेकिन बालकृष्ण के मुताबिक वह वेतन नहीं लेते हैं... वैसे, उनका काम वेतन लिए भी बिना चल सकता है, क्योंकि पतंजलि में 97 फीसदी हिस्सेदारी उनके ही नाम है...

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पतंजलि की स्थापना योगगुरु बाबा रामदेव के सहयोग से वर्ष 2006 में की गई, जो शैम्पू से लेकर दंतमंजन (टूथपेस्ट भी) तक सब कुछ बनाती है... पिछले साल 5,000 करोड़ रुपये के कारोबार का आंकड़ा पार कर लेने वाले आयुर्वेद के इस साम्राज्य में बाबा रामदेव की भले ही कोई हिस्सेदारी नहीं है, लेकिन इसका चेहरा वही हैं...
 
पतंजलि के चेहरे बाबा रामदेव की बालकृष्ण के इस कारोबार में कोई हिस्सेदारी नहीं

अगर शान-ओ-शौकत की बात करें, तो दफ्तर में मौजूद बालकृष्ण के आसपास सिर्फ काले-सफेद रंग की एक रेंजरोवर कार नज़र आती है, जिससे वह घर से दफ्तर आते-जाते हैं, या पतंजलि परिसर के एक हिस्से से दूसरे में जाया करते हैं, क्योंकि हरिद्वार में बना यह परिसर 150 एकड़ में फैला हुआ है...

यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें आरामदायक सवारी में आनंद आता है, उनका जवाब था, "कार के बारे में नहीं सोचा, सुरक्षा के बारे में सोचना बेहतर था..." इस पर बाबा रामदेव ने कहा, "मैंने उन्हें मजबूर किया था कि यही कार खरीदें... हम बहुत यात्रा करते हैं, और मजबूत कार की सुरक्षा में रहना बेहतर होता है... हम महंगी चीज़ों की परवाह नहीं करते..." इसी के साथ उन्होंने बेहद साधारण-सा मोबाइल फोन भी निकालकर दिखाया, जो उनके मुताबिक 2,000 रुपये का था... हालांकि बालकृष्ण ने स्वीकार किया कि उनके पास आईफोन है...

दोनों मित्रों की पहली मुलाकात आज से 30 साल पहले हरियाणा के गुरुकुल में हुई थी, जहां वे पढ़ते थे, और जल्द ही वे एक दूसरे के करीब आ गए थे...
 

बालकृष्ण शर्मीले हैं, बाबा रामदेव मीडिया-फ्रेंडली हैं... बालकृष्ण कुछ मोटे हैं, जबकि बाबा रामदेव सैकड़ों-हज़ारों लोगों या टीवी कैमरे के सामने अपने पतले-दुबले शरीर की मदद से कठिन से कठिन आसन भी आसानी से कर लिया करते हैं... उनका कामकाजी रिश्ता भी बिल्कुल अनूठा है... बाबा रामदेव अपने सबसे करीबी सहयोगी को 'बिज़नेस पार्टनर नहीं, आध्यात्मिक दोस्त' कहकर पुकारते हैं, जबकि बालकृष्ण कहते हैं, "हमारे बीच बोर्ड मीटिंग जैसा कुछ नहीं होता... कभी-कभी वह मेरे पास कोई आइडिया लेकर आते हैं, और वह पहले से जानते हैं कि मुझे क्या चाहिए..."

वैसे आइडिया तो कभी भी यूं ही चलते-फिरते मिल जाया करते हैं... अब जीन्स को डिज़ाइन करने और उन्हें बनाने के बारे में ही लीजिए... बालकृष्ण के अनुसार, "हुआ यू था कि एक पत्रकार रामदेव जी का इंटरव्यू ले रहा था, और उसने जीन्स पहनी थी... उन्होंने उस पर कुछ कहा, तो पत्रकार ने मज़ाक में कहा कि आप लोग इन्हें क्यों नहीं बनाते, तो हमने भी सोचा - क्यों नहीं...?"

बस, तभी से जाने-माने और ट्रेंडी कहलाने वाले ब्रांडों की तरफ से संयुक्त उपक्रम लगाने के लिए पेशकशों की बाढ़-सी आई हुई है... दरअसल, पतंजलि की कामयाबी के पीछे स्वदेशी या स्वदेश-निर्मित पर ज़ोर देना रहा है... वैसे, जीन्स में क्या स्वदेशी है, पूछे जाने पर बालकृष्ण ने हंसते हुए कहा, "उन्हें स्थानीय सब्ज़ियों से रंग लेकर रंगा जा सकता है..."
 
पतंजलि के प्रमुख बालकृष्ण के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने एक भी दिन छुट्टी नहीं ली

'आचार्य' की सम्मानसूचक उपाधि बालकृष्ण को बाबा रामदेव ने ही प्रदान की, और यह पतंजलि की परम्परा का हिस्सा है... इसके अलावा यह भी मशहूर है कि बालकृष्ण कभी एक दिन की भी छुट्टी नहीं लिया करते... जिस वक्त हम उनसे इंटरव्यू कर रहे थे, वह तब भी हरिद्वार स्थित मुख्यालय में एक नया हर्बल पार्क और म्यूज़ियम तैयार करवाने में व्यस्त थे...

अपनी बिल्कुल नई प्रयोगशाला दिखाते हुए बालकृष्ण ने कहा, "मैं चाहता हूं कि हमारे रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक सहायता उपलब्ध हो..." और उसी समय बाहर उन ट्रकों की लाइन लगी हुई थी, जो मक्खन को हरिद्वार ले जाएंगे, जहां उसमें से घी निकाला जाएगा. वैसे, पतंजलि का सबसे ज़्यादा बिकने वाला उत्पाद यह घी ही है...

आलोचकों का कहना है कि बालकृष्ण के खिलाफ फर्ज़ी पासपोर्ट (क्योंकि उनके माता-पिता नेपाल से हैं) और शैक्षिक योग्यताओं (डिग्रियों) से जुड़े मामले बंद करवाने में बाबा रामदेव का साथ तथा उनके द्वारा भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का प्रचार किया जाना काम आया, जबकि एक मामले में तो जांच सीबीआई के हवाले थी... निंदा करने वालों का यह भी कहना है कि यह मात्र संयोग नहीं हो सकता कि केंद्र में बीजेपी की सरकार के बनने के साथ ही पतंजलि ने तरक्की के आसमान को छूना शुरू कर दिया... लेकिन बालकृष्ण का कहना है, "इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि केंद्र सरकार हमारे पक्ष में है... हमें राज्य सरकार की ज़्यादा ज़रूरत पड़ती है, जो हमेशा से हमारे खिलाफ हैं..." उत्तराखंड में सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार के बारे में बात करते हुए बालकृष्ण ने बताया, "हर छोटी से छोटी चीज़ के लिए, हर अनापत्ति प्रमाणपत्र के लिए वे हमें परेशान करते हैं..."

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