
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (फाइल फोटो)
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कांग्रेस अध्यक्ष को भी पता है कि पार्टी अभी बुरे दौर से गुजर रही है
यदि पार्टी में संजीवनी फूंकनी है तो वो संजीवनी जनता ही होगी
कांग्रेस के साथ दिक्कत यह है कि हरेक राज्य में पार्टी में कई गुट हैं
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इस बदलाव से जहां राहुल को यह जानने का मौका मिलेगा कि हरेक राज्य की समस्या क्या है और इस बारे में वहां के स्थानीय नेता क्या चाहते हैं. इससे राहुल गांधी को कम से कम ये तो पता चलेगा कि किन राज्यों में संगठन के लिए क्या किया जाना चाहिए. कांग्रेस के साथ दिक्कत यह है कि हरेक राज्य में पार्टी में कई गुट हैं जो एक दूसरे पर हावी होने की कोशिश करते रहते हैं. इनमें से हरेक गुट की बात राहुल गांधी तक नहीं पहुंच पाती है जिससे आखिरकार पार्टी को ही नुकसान होता है.
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शायद अब जब राहुल गांधी पार्टी दफ्तर में रहेंगे तब हो सकता कि हरेक राज्य के नेताओं से उनकी मुलाकात हो और वो समस्याओं को सही ढंग से समझ सकें. कांग्रेस अध्यक्ष को भी पता है कि पार्टी अभी बुरे दौर से गुजर रही है. लोकसभा की उसके पास इतनी कम सीटें हैं कि उसे मुख्य विपक्षी दल का भी दर्जा नहीं दिया गया है. ऐसे में यदि पार्टी में संजीवनी फूंकनी है तो वो संजीवनी जनता ही होगी. तो फिर जनता के पास ही पार्टी को ले जाया जाए, बजाए इसके कि जनता पार्टी के पास आए.
सोनिया गांधी के पास ये समस्या नहीं थी क्योंकि उस वक्त पार्टी सत्ता में थी और जब पार्टी सत्ता में होती है तो कार्यकर्ताओं का मनोबल वैसे ही ऊंचा रहता है क्योंकि सरकार की वजह से कार्यकर्ताओं के काम होते रहते हैं चाहे वो ठेके से लेकर ट्रांसफर पोस्टिंग की पैरवी ही क्यों न हो. मगर सत्ता न रहने के बाद कार्यकर्ताओं के मनोबल पर असर पड़ता है. तब उनके मनोबल को बनाए रखने के लिए उनसे मिलना, उनकी बात सुनना जरूरी हो जाता है.
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राहुल का कांग्रेस दफ्तर में बैठने का फैसला तो सही है मगर यह कब तक कायम रहता है यह देखना होगा. यदि यह लंबे समय तक चला और कार्यकर्ताओं के फीडबैक का वो सही इस्तेमाल कर पाते हैं, तो यह खुद राहुल और पार्टी के हित में होगा.
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