आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन (फाइल फोटो).
नई दिल्ली:
अर्थव्यवस्था की दिशा और दशा को लेकर सरकार और आरबीआई के बीच मतभेद बरकरार हैं. इस बीच उद्योग संघ एसोचौम ने आरबीआई से अपील की है कि छोटे और मझौले उद्योगों में लिक्विडीटी संकट को दूर करने के लिए फौरी तौर पर सेन्ट्रल बैंक को 30,000 से 40,000 करोड़ की लिक्विडिटी क्रेडिट लाइन मुहैया करानी चाहिये. अहम आर्थिक नीतियों पर सरकार और आरबीआई में गतिरोध के बीच आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने एक न्यूज़ चैनल को इंटरव्यू में कहा है कि अगर सरकार और आरबीआई एक दूसरे की सोच (Intent) और स्वायत्तता का सम्मान करें तो ये विवाद सुलझ सकता है. आरबीआई बोर्ड को राहुल द्रविड़ की तरह खेलना होगा, नवजोत सिंह सिद्धू की तरह नहीं. आरबीआई को ज़्यादा स्वायत्तता देना बेहद ज़रूरी है और स्वतंत्र और मज़बूत आरबीआई से देश को फायदा होगा. ये बयान ऐसे वक्त पर आया है जब सरकार आरबीआई बोर्ड की 19 नवंबर को होने वाली बैठक में अपने मसलों पर उसे घेरने की तैयारी कर रही है.
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आरबीआई के पूर्व निदेशक विपिन मलिक ने एनडीटीवी से कहा, "सरकार का ये कहना कि आरबीआई उसे 2 लाख करोड़ या 3 लाख करोड़ दे दे ये नहीं हो सकता है. मेरी राय में में सरकार का जो बजटरी इस्टीमेट्स थे मार्केट बॉरोइंग को लेकर वो पूरा नहीं हो पा रहा है. 11 पब्लिक सेक्टर बैंक लेन्ड नहीं कर सकते हैं बाकि बैंकों में भी लिक्विडिटी की शार्टेज़ है." सरकार और आरबीआई के बीच विवाद की एक बड़ी वजह नॉन-बैंकिंग फाइनेन्स कंपनियों में कैश की कमी... और लेन्डिंग पर आरबीआई की सख्ती है.
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एसोचैम के सेक्रेटरी जनरल उदय वर्मा ने एनडीटीवी से कहा, "लिक्विडिटी का संकट एक गंभीर मुद्दा है. आरबीआई को नॉन-बैंकिंग फाइनेन्स कंपनियों के लिए एक 30,000 करोड़ से 40,000 करोड़ की लिक्विडिटी क्रेडिट लाइन मुहैया करानी चाहिये. इससे लघु और मध्यम उद्योगों में संकट से फौरी तौर पर निपटने में मदद मिलेगी." साफ है कि संकट बड़ा है और अब ये देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार और आरबीआई कितनी जल्दी आपसी मसलों को सुलझाकर इस संकट से निपटने में कामयाब हो पाते हैं.
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