रोहित वेमुला की आत्महत्या को लेकर देशभर में कई जगह विरोध प्रदर्शन हुए थे. (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
हैदराबाद यूनिवर्सिटी के छात्र रोहित वेमुला की मौत के बाद बनी जस्टिस अशोक रुपनवाल कमेटी की रिपोर्ट के सामने आने से पहले ही कई सवाल खड़े हो गए हैं. मीडिया में आई रिपोर्ट के मुताबिक कमेटी ने कहा है कि रोहित वेमुला दलित नहीं था, लेकिन अहम सवाल ये खड़ा हो रहा है कि क्या कमेटी को इस तथ्य के बारे में जांच करनी थी?
सूत्रों ने एनडीटीवी इंडिया को बताया कि रोहित की जाति के बारे में पता करना कमेटी का काम नहीं था. वह कहते हैं, 'ये (जाति के बारे में पता करना) कमेटी के टर्म ऑफ रेफरेंस में था ही नहीं. हमने रिपोर्ट नहीं देखी है मीडिया रिपोर्ट से हमें हैरानी हुई है. जहां तक हमें पता है कमेटी का काम तो रोहित की मौत से जुड़े तथ्य और संभावित कारणों का पता करना और यूनिवर्सिटी में छात्रों की प्रताणना निवारण के लिये क्या व्यवस्था है.'
यूजीसी में उच्च सूत्रों ने एनडीटीवी इंडिया से कहा कि रुपनवाल कमेटी की रिपोर्ट यूजीसी को नहीं दी गई है. 'हमें रिपोर्ट क्यों दी जाएगी. कमेटी का गठन (मानव संसाधन विकास) मंत्रालय ने किया है. रिपोर्ट उन्हीं को गई होगी. यूजीसी का काम तो बस इस मामले में जस्टिस रुपनवाल की मदद करना और उन्हें ज़रूरी सहूलियात मुहैया कराना भर था.'
जस्टिस रुपनवाल कमेटी की रिपोर्ट अगस्त के पहले हफ्ते में ही मंत्रालय को सौंप दी गई. हालांकि मानव संसाधन विकास मंत्री इसे 'संवेदनशील' और 'तकनीकी' मामला बता रहे हैं. उनका कहना है कि उन्होंने अब तक रिपोर्ट नहीं नहीं देखी है और अपने स्टाफ से इसका अध्ययन करने को कहा है.
इस वक्त रोहित वेमुला मामले में आई ये रिपोर्ट सरकार के लिए गले की फांस बन रही है. खुद सरकार के दो मंत्रियों सुषमा स्वराज और थावरचंद गहलोत ने रोहित की जाति पर सवाल उठाए थे और कहा था कि वह दलित नहीं था. अभी सरकार इस रिपोर्ट के राजनीतिक पहलू को भी तोल रही है. रोहित की दलित जाति पर कमेटी की ओर से उठाया गया सवाल न केवल कमेटी के टर्म ऑफ रेफरेंस को लेकर विवाद खड़ा करेगा और सवाल उठाएगा कि क्यों कमेटी ने अपने कार्यक्षेत्र से बाहर जाकर काम किया, बल्कि दलित समुदाय और सरकार के राजनैतिक विरोधियों को भी निशाना साधने का मौका देगा. शायद इसीलिए सरकार ने अगस्त में आई इस रिपोर्ट को अब तक सार्वजनिक नहीं किया है.
अगस्त के पहले हफ्ते में ही शुरू हुई (5 से 15 अगस्त) अहमदाबाद से उना तक दलितों की रैली और 21 अगस्त को आगरा में मायावती का चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत . कहा जा रहा है कि सरकार इस रिपोर्ट की बातें सामने लाकर अपने खिलाफ एक नई मुहिम शुरू नहीं करना चाहती थी.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का बुधवार को बीजेपी और सरकार पर किया गया हमला पार्टी के इस डर को सही साबित करता है. केजरीवाल ने कहा था कि सरकार वेमुला की आत्महत्या की जांच कराने की बजाये उनकी जाति की जांच करा रही है, जो कि बेहद दुखद है.
एचआरडी मंत्रालय से जुड़े एक सूत्र ने कहा, 'शायद पार्टी और सरकार को लगा कि जब प्रधानमंत्री को लाल किले से बोलना हो और उनकी पार्टी तिरंगा यात्रा निकाल कर अपने पक्ष में सभी समुदायों को एकजुट कर रही हो, तो ऐसे वक्त में इस रिपोर्ट का सामने आना उसके जनाधार को बांटने वाला ही साबित होता.'
सूत्रों ने एनडीटीवी इंडिया को बताया कि रोहित की जाति के बारे में पता करना कमेटी का काम नहीं था. वह कहते हैं, 'ये (जाति के बारे में पता करना) कमेटी के टर्म ऑफ रेफरेंस में था ही नहीं. हमने रिपोर्ट नहीं देखी है मीडिया रिपोर्ट से हमें हैरानी हुई है. जहां तक हमें पता है कमेटी का काम तो रोहित की मौत से जुड़े तथ्य और संभावित कारणों का पता करना और यूनिवर्सिटी में छात्रों की प्रताणना निवारण के लिये क्या व्यवस्था है.'
यूजीसी में उच्च सूत्रों ने एनडीटीवी इंडिया से कहा कि रुपनवाल कमेटी की रिपोर्ट यूजीसी को नहीं दी गई है. 'हमें रिपोर्ट क्यों दी जाएगी. कमेटी का गठन (मानव संसाधन विकास) मंत्रालय ने किया है. रिपोर्ट उन्हीं को गई होगी. यूजीसी का काम तो बस इस मामले में जस्टिस रुपनवाल की मदद करना और उन्हें ज़रूरी सहूलियात मुहैया कराना भर था.'
जस्टिस रुपनवाल कमेटी की रिपोर्ट अगस्त के पहले हफ्ते में ही मंत्रालय को सौंप दी गई. हालांकि मानव संसाधन विकास मंत्री इसे 'संवेदनशील' और 'तकनीकी' मामला बता रहे हैं. उनका कहना है कि उन्होंने अब तक रिपोर्ट नहीं नहीं देखी है और अपने स्टाफ से इसका अध्ययन करने को कहा है.
इस वक्त रोहित वेमुला मामले में आई ये रिपोर्ट सरकार के लिए गले की फांस बन रही है. खुद सरकार के दो मंत्रियों सुषमा स्वराज और थावरचंद गहलोत ने रोहित की जाति पर सवाल उठाए थे और कहा था कि वह दलित नहीं था. अभी सरकार इस रिपोर्ट के राजनीतिक पहलू को भी तोल रही है. रोहित की दलित जाति पर कमेटी की ओर से उठाया गया सवाल न केवल कमेटी के टर्म ऑफ रेफरेंस को लेकर विवाद खड़ा करेगा और सवाल उठाएगा कि क्यों कमेटी ने अपने कार्यक्षेत्र से बाहर जाकर काम किया, बल्कि दलित समुदाय और सरकार के राजनैतिक विरोधियों को भी निशाना साधने का मौका देगा. शायद इसीलिए सरकार ने अगस्त में आई इस रिपोर्ट को अब तक सार्वजनिक नहीं किया है.
अगस्त के पहले हफ्ते में ही शुरू हुई (5 से 15 अगस्त) अहमदाबाद से उना तक दलितों की रैली और 21 अगस्त को आगरा में मायावती का चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत . कहा जा रहा है कि सरकार इस रिपोर्ट की बातें सामने लाकर अपने खिलाफ एक नई मुहिम शुरू नहीं करना चाहती थी.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का बुधवार को बीजेपी और सरकार पर किया गया हमला पार्टी के इस डर को सही साबित करता है. केजरीवाल ने कहा था कि सरकार वेमुला की आत्महत्या की जांच कराने की बजाये उनकी जाति की जांच करा रही है, जो कि बेहद दुखद है.
एचआरडी मंत्रालय से जुड़े एक सूत्र ने कहा, 'शायद पार्टी और सरकार को लगा कि जब प्रधानमंत्री को लाल किले से बोलना हो और उनकी पार्टी तिरंगा यात्रा निकाल कर अपने पक्ष में सभी समुदायों को एकजुट कर रही हो, तो ऐसे वक्त में इस रिपोर्ट का सामने आना उसके जनाधार को बांटने वाला ही साबित होता.'
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