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This Article is From May 26, 2019

कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में राहुल गांधी की टीम में शामिल ऑक्सफोर्ड-हावर्ड से पढ़े लोगों पर भी उठे सवाल

जब राहुल गांधी अपने इस्तीफ़े की बात कह रहे थे तब सबकी नज़रें सोनिया गांधी पर गई जो उस बैठक में मौजूद थीं मगर सोनिया गांधी ने कोई जवाब नहीं दिया किसी भी तरह की दिलचस्पी नहीं दिखाई.

कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में राहुल गांधी की टीम में शामिल ऑक्सफोर्ड-हावर्ड से पढ़े लोगों पर भी उठे सवाल
कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में टीम राहुल पर भी उठे सवाल
नई दिल्ली:

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कांग्रेस कार्यसमिति  की बैठक में कई ऐसी जानकारियां दीं जिससे की बैठक में मौजूद कई नेताओं को आश्चर्य हुआ. राहुल गांधी ने कुछ नेताओं पर इशारा करते हुए कहा कि कुछ नेता अपने बेटों को ही टिकट दिलाने के दबाव डालते रहे. राहुल ने बताया कि एक नेता ने यहां तक कह दिया कि अगर उनके बेटे को टिकट नहीं मिला तो वह पार्टी छोड़ने पर विचार कर सकते हैं. राहुल गांधी ने कार्यसमिति की बैठक में कहा कि गांधी परिवार के अलावा भी यदि कोई पार्टी की अध्यक्षता कर सकता है उन्हें इसमें कोई दिक़्क़त नहीं है. लेकिन कई वरिष्ठ नेता जैसे डॉ. मनमोहन सिंह, अहमद पटेल, एके एंटनी और ग़ुलाम नबी आज़ाद ने उन्हें ऐसा करने से रोका. लेकिन राहुल गांधी अपने इस्तीफ़े को लेकर के अड़े हुए हैं और उनका कहना है कि पार्टी पर उन्होंने सोच विचारकर अपनी राय रखी है और पार्टी भी खुले मन से इस पर विचार कर फैसला ले. कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में राहुल की टीम के ख़िलाफ़ भी कुछ बातें कहीं गई. कुछ सदस्यों ने इस ओर इशारा किया कि राहुल की टीम में ऑक्सफोर्ड और हावर्ड के पढ़े लोग हैं भले ही वह बेहद क़ाबिल हों लेकिन वो और राजनीतिक लोग नहीं है.. लोगों का इशारा जाहिर है सैम पित्रोदा की तरफ था. लोगों का मानना है कि 1984 के सिख दंगों पर दिए गए बयान 'हुआ तो हुआ' से कांग्रेस को काफी नुकसान हुआ है.राहुल गांधी को यह भी सलाह दी गई कि वह अपनी टीम में राजनीति की समझ रखने वाले लोगों को भी शामिल करें जिससे टीम बैलेंस लगे और राजनीतिक फ़ैसले लेने में उन्हें आसानी हो. 

अगर राहुल इस्तीफा देते हैं तो वह बीजेपी के जाल में फंस जाएंगे : प्रियंका गांधी

जब राहुल गांधी अपने इस्तीफ़े की बात कह रहे थे तब सबकी नज़रें सोनिया गांधी पर गई जो उस बैठक में मौजूद थीं मगर सोनिया गांधी ने कोई जवाब नहीं दिया किसी भी तरह की दिलचस्पी नहीं दिखाई. लेकिन उत्तर प्रदेश के प्रभारी महासचिव प्रियंका गांधी ने कहा कि यदि राहुल गांधी इस्तीफ़ा देते हैं तो यह एकतरह से BJP के जाल में फंसने जैसा होगा क्योंकि बीजेपी यही चाहती है. 

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लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या राहुल गांधी कांग्रेस में बड़ा बदलाव कर सकते हैं. हार की ज़िम्मेदारी उन राज्यों के मुख्यमंत्रियों को दी जा सकती है जहां कांग्रेस का खाता नहीं खुला या फिर उन्हें एक या दो सीटें आई हैं. इन राज्यों में दिसंबर में ही कांग्रेस ने इतना अच्छा प्रदर्शन किया था और अपनी सरकार बनाई. 4 महीनों में यहां ऐसा क्या बदल गया जिससे लोकसभा के चुनाव में पार्टी का या तो खाता नहीं खुला या फिर 1 या दो सीटें आई हैं. सवाल इस बात का है कि क्या मुख्यमंत्री इसकी ज़िम्मेदारी लेने के लिए तैयार हैं या फिर उनके पास इसका कोई जवाब है. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री तो कार्य समिति की बैठक में आए तक नहीं उन्होंने यह बहाना कर दिया कि वहां पर विधायक दल की बैठक उन्होंने बुलायी है इसलिए उनका भोपाल में रहना आवश्यक है क्योंकि BJP उनके सरकार को और स्थिर करने में लगी हुई है.

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कार्य समिति की बैठक में कई वरिष्ठ नेताओं ने राहुल गांधी को यह समझाने की कोशिश की कि यह पार्टी की पहली हार नहीं है इससे पहले भी इंदिरा गांधी से लेकर के बाक़ी कांग्रेस अध्यक्षों के ज़माने में भी पार्टी को ऐसी ही हार का सामना करना पड़ा था. मगर इसका मुक़ाबला नई रणनीति के साथ करने की ज़रूरत है क्योंकि अब वक़्त काफ़ी बदल गया है और पार्टी को उसी वक़्त के साथ बदलने की ज़रूरत है. 

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सुझाव यह भी आया कि पार्टी में कॉडर कैसे बनाया जाए सेवा दल का क्या रोल हो, युवाओं में कांग्रेस की नीतियों को लेकर कैसे भरोसा पैदा किया जाए. यह भी कहा गया कि कांग्रेस की न्याय योजना जिनके लिए थी उन्हीं तक पार्टी अपनी बात पहुंचाने में विफल रही है. अब इन सब चीजों के बीच राहुल गांधी के लिए की ज़िम्मेदारी काफ़ी बढ़ जाती है कि वह क्या नए बदलाव करते हैं. पार्टी में युवाओं और बुजुर्गों के बीच समन्वय होगा और अनुभव के साथ युवा को जोड़ कर किस तरह से आम लोगों को स्थान दिया जाएगा.

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क्या केरल के नेताओं और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के अनुभवों का भी लाभ लिया जाएगा. क्या  राहुल गांधी उनसे मिलकर कुछ टिप्स लेने की कोशिश करेंगे कि आख़िर जो मुद्दा बीजेपी के लिए पूरे देश भर में चला वह पंजाब में क्यों नहीं चल पाया. क्या राहुल स्टालिन के पास जाएंगे कि DMK ने किस तरह से तमिलनाडु में AIADMKऔर BJP गठबंधन को ख़त्म कर दिया. मगर सबकी निगाहें इस पर होंगी कि राहुल आने वाले दिनों में किस तरह का फेरबदल पार्टी में करते हैं और प्रियंका गांधी की भूमिका बढ़ती है या उत्तर प्रदेश तक ही सीमित रहती है. यही नहीं कांग्रेस की नीतियां क्या होगीं साथ ही पार्टी को सही मौके और मुद्दे का इंतजार करना होगा जैसे कि इंदिरा गांधी ने बेलछी कांड का किया था. साथ ही राहुल को अपने सहयोगी दलों को भी भरोसा और दिलासा देना होगा खासकर आरजेडी के तेजस्वी यादव को और कनार्टक में कुमारस्वामी से भी बात करनी होगी कि उनकी सरकार को कोई खतरा नहीं है. राहुल को ऐसी टीम बनानी होगी जो नए जोश से काम कर सके.

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(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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