
प्रतीकात्मक फोटो
चंडीगढ़:
एक ताजा सर्वे के मुताबिक, परदेस जाने वाले पंजाबियों में 81 फीसदी गांव के रहने वाले होते हैं। आमतौर पर माना जाता है कि ज्यादातर पंजाबी कनाडा जाते हैं, लेकिन सर्वे से पता चला कि खाड़ी के देशों की तरफ जाने वालों की संख्या ज्यादा है।
पंजाब के छोटे शहरों और गांवों तक में इमीग्रेशन एजेंसी और इंग्लिश सिखाने की दुकानें खुल चुकी हैं। नतीजतन शहरों के मुकाबले गांवों से पलायन ज्यादा बढ़ा है। ये खुलासे पेरिस के नेशनल जनसांख्यिकी अध्ययन संस्थान और चंडीगढ़ के क्रीड के सर्वे में सामने आए हैं। देश में केरल से सबसे ज्यादा पलायन होता है। विदेश जाने वाले सिर्फ नौकरी की तलाश में वतन छोड़ते हैं और कमाई घर भेजते हैं, लेकिन ज्यादातर पंजाबी विदेश में बसने के लिए जाते हैं।
आ रहे एजेंटों के झांसे में
क्रीड के अस्विनी कुमार नंदा बताते हैं कि अगर शहर के साथ तुलना करेंगे तो गांव में बाहर जाने की प्रथा ज्यादा है। गांव में लोग थोड़ा जल्दी जाना चाहते हैं और पढ़ाई की है या नहीं इसकी परवाह नहीं करते, इसलिए ये लोग इमीग्रेशन एजेंट्स पर ज्यादा निर्भर हैं। गांव से सीधे सात समंदर पार जाने का ख्वाब संजोए पंजाबी इमीग्रेशन एजेंटों के झांसे में फंस रहे हैं।
संगरूर के 26 साल सुखवंत के साथ कुछ ऐसा ही हुआ। उसने पिछले साल मोहाली के इस इमीग्रेशन एजेंट को न्यूजीलैंड के वीसा के लिए ढाई लाख रुपए दिए, लेकिन जालसाज के कारण उसकी जान चली गई।
सुखवंत के दोस्त बलजिंदर सिंह ने बताया कि जहर खाने के बाद उसने अपने सीनियर को फोन करके बताया कि उसे न्यूजीलैंड का वीसा मिल गया है और वो बाहर जा रहा है। उसने कहा कि ये बात उसके घरवालों को न बताई जाए।
सरकारी एजेंसी नहीं
इमीग्रेशन मामलों के जानकार अधिवक्ता नीरज चौधरी कहते हैं कि गांव के लोग किसी भी तरह विदेश जाने की फिराक में रहते हैं और मुश्किल में फंसते हैं। ट्रेवल एजेंट उन्हें आसानी से उल्लू बना लेते हैं। इतनी बड़ी संख्या में पंजाब हर साल विदेश जाते हैं, लेकिन उन्हें गाइड करने के लिए कोई भरोसेमंद सरकारी एजेंसी नहीं है।
इस सबके बावजूद, परदेस में ब्याह रचाने में पंजाबी पूरे देश में सबसे आगे हैं और मध्य वर्ग ही नहीं रसूखदार परिवार भी एनआरआई दूल्हे ज्यादा पसंद करते हैं।
पंजाब के छोटे शहरों और गांवों तक में इमीग्रेशन एजेंसी और इंग्लिश सिखाने की दुकानें खुल चुकी हैं। नतीजतन शहरों के मुकाबले गांवों से पलायन ज्यादा बढ़ा है। ये खुलासे पेरिस के नेशनल जनसांख्यिकी अध्ययन संस्थान और चंडीगढ़ के क्रीड के सर्वे में सामने आए हैं। देश में केरल से सबसे ज्यादा पलायन होता है। विदेश जाने वाले सिर्फ नौकरी की तलाश में वतन छोड़ते हैं और कमाई घर भेजते हैं, लेकिन ज्यादातर पंजाबी विदेश में बसने के लिए जाते हैं।
आ रहे एजेंटों के झांसे में
क्रीड के अस्विनी कुमार नंदा बताते हैं कि अगर शहर के साथ तुलना करेंगे तो गांव में बाहर जाने की प्रथा ज्यादा है। गांव में लोग थोड़ा जल्दी जाना चाहते हैं और पढ़ाई की है या नहीं इसकी परवाह नहीं करते, इसलिए ये लोग इमीग्रेशन एजेंट्स पर ज्यादा निर्भर हैं। गांव से सीधे सात समंदर पार जाने का ख्वाब संजोए पंजाबी इमीग्रेशन एजेंटों के झांसे में फंस रहे हैं।
संगरूर के 26 साल सुखवंत के साथ कुछ ऐसा ही हुआ। उसने पिछले साल मोहाली के इस इमीग्रेशन एजेंट को न्यूजीलैंड के वीसा के लिए ढाई लाख रुपए दिए, लेकिन जालसाज के कारण उसकी जान चली गई।
सुखवंत के दोस्त बलजिंदर सिंह ने बताया कि जहर खाने के बाद उसने अपने सीनियर को फोन करके बताया कि उसे न्यूजीलैंड का वीसा मिल गया है और वो बाहर जा रहा है। उसने कहा कि ये बात उसके घरवालों को न बताई जाए।
सरकारी एजेंसी नहीं
इमीग्रेशन मामलों के जानकार अधिवक्ता नीरज चौधरी कहते हैं कि गांव के लोग किसी भी तरह विदेश जाने की फिराक में रहते हैं और मुश्किल में फंसते हैं। ट्रेवल एजेंट उन्हें आसानी से उल्लू बना लेते हैं। इतनी बड़ी संख्या में पंजाब हर साल विदेश जाते हैं, लेकिन उन्हें गाइड करने के लिए कोई भरोसेमंद सरकारी एजेंसी नहीं है।
इस सबके बावजूद, परदेस में ब्याह रचाने में पंजाबी पूरे देश में सबसे आगे हैं और मध्य वर्ग ही नहीं रसूखदार परिवार भी एनआरआई दूल्हे ज्यादा पसंद करते हैं।
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