तिरुमला:
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने रविवार को जल्दी लोकसभा चुनाव की संभावनाओं के सवालों को टालते हुए कहा कि यह पार्टियां और नेताओं के रवैये पर निर्भर करता है। उनका यह बयान तब आया है जब कुछ दिन पहले ही संसद का मॉनसून सत्र लगातार बाधित रहने के बाद स्थगित हुआ है।
प्रणब ने राजनीतिक दलों से अनुरोध किया कि वे सदन में कामकाज सुनिश्चित करने के लिए मतभेदों को सुलझाने वाली प्रणाली पर काम करें।
मॉनसूत्र सत्र में हंगामे के चलते कार्यवाही ठप रहने के मद्देनजर जल्दी चुनाव की संभावना के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘‘यह इस पर निर्भर करता है कि नेता, सदस्य और पार्टियां किस तरह का रवैया अपनाते हैं।’’ राष्ट्रपति से यह भी पूछा गया कि क्या वह इस तरह की संभावना देखते हैं कि संसद का एक और सत्र इसी तरह बेकार जा सकता है।
संसद के मॉनसून सत्र में कोयला ब्लॉक आवंटन को लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस्तीफे की भाजपा की मांग के चलते हुए हंगामे के कारण कार्यवाही ठप रही।
मॉनसून सत्र के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि अलग अलग राजनीतिक दलों के नेताओं को मतभेद सुलझाने की प्रणाली पर काम करना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि संसद में कामकाज हो सके।
उन्होंने याद करते हुए कहा कि पहले भी एक पूरा सत्र (जेपीसी की मांग को लेकर 2010 का शीतकालीन सत्र) बरबाद हो गया।
लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक समय पर कराने के वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी के सुझावों के बारे में पूछे जाने पर प्रणब ने कहा कि यह फैसला राजनीतिक दलों को करना है क्योंकि अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग दल सरकार चला रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘चुनाव कैसे होंगे, यह बहुत कुछ अनेक पहलुओं पर निर्भर करता है। संविधान में जब भी किसी राज्य में सरकार गिर जाती है तो छह महीने के अंदर चुनाव कराने होंगे या अगर राष्ट्रपति शासन है तो एक साल से ज्यादा समय नहीं लगा सकते। संविधान में इस तरह की संभावना को लेकर कैसे आगे बढ़ेंगे।’’
प्रणब ने कहा कि अगर चुनाव के तरीकों में बदलाव करना है तो संविधान में संशोधन करना होगा और यह एक दल द्वारा किया जाना संभव नहीं है। राजनीतिक दल एक साथ चुनाव कराना पसंद करेंगे या नहीं इस पर उन्हें सहमति जतानी है। जब तक इसका फैसला नहीं होता यह कैसे संभव है। जब एक संवाददाता ने कहा कि कल मद्रास चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री में उनका भाषण प्रधानमंत्री के उद्बोधन की तरह लग रहा था तो प्रणब ने कहा, ‘‘मैं अपने भाषण की तुलना या उसका मूल्यांकन नहीं कर सकता।’’
प्रणब ने राजनीतिक दलों से अनुरोध किया कि वे सदन में कामकाज सुनिश्चित करने के लिए मतभेदों को सुलझाने वाली प्रणाली पर काम करें।
मॉनसूत्र सत्र में हंगामे के चलते कार्यवाही ठप रहने के मद्देनजर जल्दी चुनाव की संभावना के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘‘यह इस पर निर्भर करता है कि नेता, सदस्य और पार्टियां किस तरह का रवैया अपनाते हैं।’’ राष्ट्रपति से यह भी पूछा गया कि क्या वह इस तरह की संभावना देखते हैं कि संसद का एक और सत्र इसी तरह बेकार जा सकता है।
संसद के मॉनसून सत्र में कोयला ब्लॉक आवंटन को लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस्तीफे की भाजपा की मांग के चलते हुए हंगामे के कारण कार्यवाही ठप रही।
मॉनसून सत्र के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि अलग अलग राजनीतिक दलों के नेताओं को मतभेद सुलझाने की प्रणाली पर काम करना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि संसद में कामकाज हो सके।
उन्होंने याद करते हुए कहा कि पहले भी एक पूरा सत्र (जेपीसी की मांग को लेकर 2010 का शीतकालीन सत्र) बरबाद हो गया।
लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक समय पर कराने के वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी के सुझावों के बारे में पूछे जाने पर प्रणब ने कहा कि यह फैसला राजनीतिक दलों को करना है क्योंकि अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग दल सरकार चला रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘चुनाव कैसे होंगे, यह बहुत कुछ अनेक पहलुओं पर निर्भर करता है। संविधान में जब भी किसी राज्य में सरकार गिर जाती है तो छह महीने के अंदर चुनाव कराने होंगे या अगर राष्ट्रपति शासन है तो एक साल से ज्यादा समय नहीं लगा सकते। संविधान में इस तरह की संभावना को लेकर कैसे आगे बढ़ेंगे।’’
प्रणब ने कहा कि अगर चुनाव के तरीकों में बदलाव करना है तो संविधान में संशोधन करना होगा और यह एक दल द्वारा किया जाना संभव नहीं है। राजनीतिक दल एक साथ चुनाव कराना पसंद करेंगे या नहीं इस पर उन्हें सहमति जतानी है। जब तक इसका फैसला नहीं होता यह कैसे संभव है। जब एक संवाददाता ने कहा कि कल मद्रास चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री में उनका भाषण प्रधानमंत्री के उद्बोधन की तरह लग रहा था तो प्रणब ने कहा, ‘‘मैं अपने भाषण की तुलना या उसका मूल्यांकन नहीं कर सकता।’’
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