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This Article is From Jul 22, 2012

पहले बंगाली राष्ट्रपति होंगे प्रणब मुखर्जी...

नई दिल्ली: एक कहावत थी कि जो बंगाल आज सोचता है, वह देश कल सोचता है। यह कहावत और कुछ नहीं औपनिवेशक दंभ की पैदाइश है। सब जानते हैं कि ब्रिटिश हुकूमत ने कोलकाता और बंगाल का पहले-पहल ठीक से औपनिविशिकरण किया। अपनी नौकरशाही की जरूरतों को पूरा करने के लिए बंगाल के लोगों को हिस्सा बनाया। देश के दूर-दराज के इलाकों में गोरे साहबों के साथ बंगाली साहब भी गए। शिक्षा-दीक्षा भी वहीं आई, इसलिए वहां के लोगों को दुनिया भर में जाने का मौका मिला।

इन सबके चलते एक किस्म का खास वर्ग पैदा हुआ, जिसे बंगाली भद्रलोक कहा गया, एलिट यानी कुलीन। प्रणब बाबू पहले बंगाली होंगे, जो देश के सर्वोच्च पद पर विराजमान होंगे। प्रणब पिछली बार जब अपने गांव मिराती गए, तो उनका गर्मजोशी से स्वागत हुआ। मिराती और उनका पूर्व संसदीय क्षेत्र जंगीपुर ही नहीं, बल्कि पूरा बंगाल इस बात का जश्न मना रहा है कि आखिरकार उनके राज्य का एक शख्स मुल्क के सबसे बड़े पद पर बैठेगा।

कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनकी नजर में किसी बंगाली के राष्ट्रपति बनने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। बहुत से लोगों को इस बात का मलाल जरूर है कि कैसे सीपीएम ने अपनी ही पार्टी के कद्दावर नेता ज्योति बसु को प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया था। कुछ का कहना है कि प्रणब मुखर्जी को प्रधानमंत्री बनाया जाता, तो बेहतर होता। फिर भी कुछ न होने से राष्ट्रपति बनना ज्यादा अच्छा है।

बंगाली राष्ट्रपति के बारे में कुछ भी कहने से प्रणब मुखर्जी खुद ही कतराते रहे हैं। लेकिन जब यह पूछा गया कि राष्ट्रपति बनने के बारे में उनका क्या ख्याल है, तो सारे बंगालियों की तरह उन्हें टैगोर ही याद आए। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद प्रणब मुखर्जी पहले बंगाली होंगे, जो देश का सबसे ऊंचा पद संभालेंगे। बंगाली भद्रलोक को लग रहा है कि आखिरकार एक बंगाली को वह जगह मिली है, जिसका वह हकदार था।

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