प्रतीकात्मक तस्वीर
जम्मू/नई दिल्ली:
सेना के भारी भरकम बचाव अभियान के बाद उत्तरी सियाचिन ग्लेशियर से पोर्टर का एक शव बरामद कर लिया गया। बीते 27 फऱवरी को एक पोर्टर 200 फीट गहरी खाई में गिर गए थे। इसके तुरंत बाद बड़े पैमाने पर बचाव अभियान सेना की विशेष टीम ने चलाया लेकिन पोर्टर को जीवित नहीं बचाया जा सका था।
मरने वाले पोर्टर का नाम थुकजे ग्यासकेट है। ये लेह के आये गांव के रहने वाले हैं। थुकजे उस वक्त बर्फीली खाई में जा गिरा जब उत्तरी ग्लेशियर में मौजूद सेना की चौकी के लिये समान लेकर जा रहे थे।
चार दिनों तक चले राहत अभियान में सेना के बचाव दल के 80 सदस्य 19 हजार फीट के ऊंचाई पर अपनी जान जोखिम में डालकर 130 फीट तक नीचे गये लेकिन उनके हाथ पोर्टर का शव ही लगा। यहां के मुश्किल हालात को देखते हुए बचाव अभियान चलाना अपने आप में चुनौती है। एक तो तापमान माइनस 40 डिग्री के नीचे चला जाता है और मौसम का मिजाज कब बदल जाए कुछ कहा नहीं जा सकता।
सियाचिन जैसी कठिन जगहों में सेना के साथ ऐसे कई आम लोग पोर्टर के तौर पर होते हैं जो उनकी मदद करते हैं। सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग ने कह है कि किसी सिविलयन पोर्टर को सेना के साथ और सियाचिन जैसे माहौल में काम करने के लिये अदम्य साहस, शारीरिक दमखम और मानसिक ताकत की जरूरत होती है। मेरे लिये वो हममें में ही एक है। सेना के उत्तरी आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल बीएस हुड्डा ने दुख व्यक्त करते हुए उनके परिजनों को भविष्य में हर संभव मदद का भरोसा दिया। उनके परिवार में उनकी मां, पत्नी और दो बेटियां हैं।
यह हादसा सियाचिन में तीन फरवरी को आए बर्फ की तूफान के बाद हुई है जिसमें दस जवानों की जान चली गई थी।
मरने वाले पोर्टर का नाम थुकजे ग्यासकेट है। ये लेह के आये गांव के रहने वाले हैं। थुकजे उस वक्त बर्फीली खाई में जा गिरा जब उत्तरी ग्लेशियर में मौजूद सेना की चौकी के लिये समान लेकर जा रहे थे।
चार दिनों तक चले राहत अभियान में सेना के बचाव दल के 80 सदस्य 19 हजार फीट के ऊंचाई पर अपनी जान जोखिम में डालकर 130 फीट तक नीचे गये लेकिन उनके हाथ पोर्टर का शव ही लगा। यहां के मुश्किल हालात को देखते हुए बचाव अभियान चलाना अपने आप में चुनौती है। एक तो तापमान माइनस 40 डिग्री के नीचे चला जाता है और मौसम का मिजाज कब बदल जाए कुछ कहा नहीं जा सकता।
सियाचिन जैसी कठिन जगहों में सेना के साथ ऐसे कई आम लोग पोर्टर के तौर पर होते हैं जो उनकी मदद करते हैं। सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग ने कह है कि किसी सिविलयन पोर्टर को सेना के साथ और सियाचिन जैसे माहौल में काम करने के लिये अदम्य साहस, शारीरिक दमखम और मानसिक ताकत की जरूरत होती है। मेरे लिये वो हममें में ही एक है। सेना के उत्तरी आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल बीएस हुड्डा ने दुख व्यक्त करते हुए उनके परिजनों को भविष्य में हर संभव मदद का भरोसा दिया। उनके परिवार में उनकी मां, पत्नी और दो बेटियां हैं।
यह हादसा सियाचिन में तीन फरवरी को आए बर्फ की तूफान के बाद हुई है जिसमें दस जवानों की जान चली गई थी।
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