60 रिटायर्ड अधिकारियों ने राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखी है.
नई दिल्ली:
राफ़ेल बनाने वाली कंपनी दसॉ के सीईओ ने मंगलवार को एक इंटरव्यू में कहा है कि कंपनी ने रिलायंस के साथ अपनी मर्ज़ी से समझौता किया है, किसी दबाव में नहीं. उनका दावा है कि इस सौदे में रफ़ाल की क़ीमत कम हुई है. कांग्रेस ने उनके इस बयान को रटा-रटाया इंटरव्यू बताया है. जबकि बीजेपी कह रही है कि अब राहुल माफ़ी मांगें. राफ़ेल बनाने वाली कंपनी दसॉ के सीईओ ने मंगलवार को दिए लंबे इंटरव्यू में दावा किया कि उसका सौदा बेहद साफ़-सुथरा है. ये भी जोड़ा कि 2012 से ही रिलायंस से उनकी बात चल रही थी.
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दसॉल्ट के सीईओ एरिक ट्रैपियर (Eric Trappier, Dassault CEO) ने कहा, "हमने अंबानी का, रिलायंस समूह का, ख़ुद चुनाव किया....और ये सिर्फ़ रिलायंस नहीं है, हमारे साथ पहले से ही 30 साझेदार हैं..भारतीय वायुसेना इस सौदे का समर्थन कर रही है क्योंकि उन्हें अपनी रक्षा के लिए इन लड़ाकू विमानों की ज़रूरत है. जब हमने बीते साल साझा उपक्रम बनाया तो ये फ़ैसला 2012 के हमारे समझौते का हिस्सा था, लेकिन हम समझौते पर दस्तख़त होने का इंतज़ार कर रहे थे. हमें इस कंपनी में 50-50 की साझेदारी के आधार पर 800 करोड़ रुपये डालने थे. साझा उपक्रम में दसॉ का हिस्सा 49% का है और रिलायंस का 51% का".
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एरिक ट्रैपियर के इस दावे पर कांग्रेस ने सवाल खड़े किए हैं और सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि वो राफ़ेल से जुड़े दस्तावेज़ ज़ब्त कर ले. जबकि बीजेपी कह रही है, कांग्रेस माफ़ी मांगे. उधर, अहम पदों पर काम कर चुके 60 रिटायर्ड अधिकारियों ने रफाल डील और नोटबंदी पर सीएजी की ऑडिट रिपोर्ट में हो रही देरी का सवाल राष्ट्रपति के सामने रख दिया है.
एनसी सक्सेना, रिटायर्ड IAS अधिकारी ने कहा, “ राफेल डील को साइन किए हुए साढ़े तीन साल हो गए हैं, लेकिन कैग अभी तक ऑडिट नहीं कर पाया है. ऐसा लगता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रेशर पड़ा हो कैग पर रिपोर्ट नहीं लाने के लिए. नोटबंदी पर आरबीआई ने कहा है कि कोई लाभ नहीं हुआ. दो साल हो गए, लेकिन कैग ने अभी तक ऑडिट नहीं किया. इस पर हमारी चिंता है.
VIDEO: राफेल और नोटबंदी पर ऑडिट रिपोर्ट में हो रही देरी पर राष्ट्रपति को चिट्ठी
पहला रफाल सितंबर में भारत को मिलेगा, लेकिन उसके पहले के चुनावों में भी इस सौदे पर हो रही राजनीति का असर दिख सकता है. सुप्रीम कोर्ट के बाद अब सीएजी से भी मांग हो रही है कि वो इसकी जांच करे.
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दसॉल्ट के सीईओ एरिक ट्रैपियर (Eric Trappier, Dassault CEO) ने कहा, "हमने अंबानी का, रिलायंस समूह का, ख़ुद चुनाव किया....और ये सिर्फ़ रिलायंस नहीं है, हमारे साथ पहले से ही 30 साझेदार हैं..भारतीय वायुसेना इस सौदे का समर्थन कर रही है क्योंकि उन्हें अपनी रक्षा के लिए इन लड़ाकू विमानों की ज़रूरत है. जब हमने बीते साल साझा उपक्रम बनाया तो ये फ़ैसला 2012 के हमारे समझौते का हिस्सा था, लेकिन हम समझौते पर दस्तख़त होने का इंतज़ार कर रहे थे. हमें इस कंपनी में 50-50 की साझेदारी के आधार पर 800 करोड़ रुपये डालने थे. साझा उपक्रम में दसॉ का हिस्सा 49% का है और रिलायंस का 51% का".
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एरिक ट्रैपियर के इस दावे पर कांग्रेस ने सवाल खड़े किए हैं और सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि वो राफ़ेल से जुड़े दस्तावेज़ ज़ब्त कर ले. जबकि बीजेपी कह रही है, कांग्रेस माफ़ी मांगे. उधर, अहम पदों पर काम कर चुके 60 रिटायर्ड अधिकारियों ने रफाल डील और नोटबंदी पर सीएजी की ऑडिट रिपोर्ट में हो रही देरी का सवाल राष्ट्रपति के सामने रख दिया है.
एनसी सक्सेना, रिटायर्ड IAS अधिकारी ने कहा, “ राफेल डील को साइन किए हुए साढ़े तीन साल हो गए हैं, लेकिन कैग अभी तक ऑडिट नहीं कर पाया है. ऐसा लगता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रेशर पड़ा हो कैग पर रिपोर्ट नहीं लाने के लिए. नोटबंदी पर आरबीआई ने कहा है कि कोई लाभ नहीं हुआ. दो साल हो गए, लेकिन कैग ने अभी तक ऑडिट नहीं किया. इस पर हमारी चिंता है.
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पहला रफाल सितंबर में भारत को मिलेगा, लेकिन उसके पहले के चुनावों में भी इस सौदे पर हो रही राजनीति का असर दिख सकता है. सुप्रीम कोर्ट के बाद अब सीएजी से भी मांग हो रही है कि वो इसकी जांच करे.
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