ये कहानी है पेट्रोल पंप पर काम करने वाले एक पिता की, जिसने बेटे की पढ़ाई के लिए अपना घर तक बेच दिया. साथ ही कहानी है उस परिश्रमी बेटे की जिसने अपनी लगन और मेहनत से इस त्याग के बदले माता-पिता को सिविल सर्विसेज की परीक्षा में अपने 93वें रैंक का तोहफा दिया. यूं तो हर साल सैकड़ों हजारों छात्र देशभर से सिविल सर्विसेज की तैयारी के लिए दिल्ली आते हैं लेकिन 2017 में इंदौर से IAS बनने का सपना लेकर दिल्ली आए प्रदीप सिंह की कहानी बिलकुल अलग थी. बिहार के मूल निवासी पिता इंदौर में एक पेट्रोल पंप पर कर्मचारी थे, बेटे की पढ़ाई लिखाई में जब संसाधनों की कमी पड़ने लगी तो अपना मकान बेच दिया.
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प्रदीप सिंह एनडीटीवी से बात करते हुए कहते है कि तैयारी के दौरान पिता उन्हें घर के हालातों की भनक तक नहीं लगने देते थे और लगातार प्रोत्साहिन दिया करते थे. सिविल की परीक्षा के दौरान उनकी मां की तबीयत बेहद खराब हो गई थी, फिर बेटे की पढ़ाई पर असर पड़ेगा ये सोचते हुए कुछ नहीं बताया. प्रदीप में दो साल दिल्ली में रहकर अपनी पूरी लगन से परीक्षा की तैयारी की. आज जब वे कामयाबी हासिल कर अपने सपने को साकार करने में सफल रहे हैं, अपने माता-पिता के संघर्षों को याद कर उनकी आंखें नम हो जाती हैं.
प्रदीप सिंह ने आगे कहते है की मुझे 3-4 चीजों पर बहुत ज्यादा काम करने की जरूरत दिखाई देती है. हेल्थ, एजुकेशन, लॉ ऐंड ऑर्डर और विमिन एम्पावरमेंट. ये चार चीजें समाज के खम्भा हैं. महिलाओं के लिए वैचारिक बदलाव के लिए प्रयास करूंगा, जिससे उनकी सम्मान में चार चांद लग जाए, क्योंकि अब तक महिलाए हाउस वाइफ, किसी के बेटी, किसी की बहू, बनकर रहती आयी है जिसके अगर इसमें सिस्टम में सुधर आ गया तो बहुत बड़ा बदलाव दिखाई देगा.'
प्रदीप को अफ़सोस है की उनकी कोई बहन नहीं है उनकी तमन्ना है कि उनका प्रयास रहेगा की देश की बहनों के लिए बेहतर तौर पर काम कर अच्छा भाई बनने का प्रयास करेंगे. प्रदीप शिक्षा के प्रति खास लगाव के साथ कुछ करने के बात करते हुए कहते है कि खास तौर पर राइट तो एजुकेशन पर फोकस करके शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव की कोशिश करेंगे, जहां पता चलेगा कि टीचर वक्त से नहीं पहुंचते वहां मै औचक निरक्षण करूंगा, टीचर के न होने के साथ टीचर की कमी, बिल्डिंग, बच्चों के लिए शौचालय के प्रति गंभीरता से कदम उठा कर निवारण करने का काम करूंगा.
ऑनलाइन पर खास ज़ोर देते हुए प्रदीप कहते है की मेरा फोकस ऑनलाइन पर भी होगा, ताकि लोग घर या आसपास से ही उन सुविधाओं के सीधे पहुंच सके. उनको मेरे घर या दफ्तर परेशान होकर कम आना पड़े, अगर जनता अपनी परेशानी मेरे यहां लेकर आती है तो उस शिकायत में जिम्मेदार लोगों पर जिम्मेदारी तय की जाएगी ताकि उनका सरकारी न्याय उन तक आसानी से पहुंच सके.
प्रदीप कहते है कि गरीबी का एहसास मुझको है इसलिए मैं जनता के लिए आसानी से उपलब्ध रहने की पूरी कोशिश करूंगा , इसलिए जन सुनवाई केंद्र की स्थापना कर जिले के कोने-कोने में कैम्प लगाकर समस्या का समाधान करने की योजना पर अमल किया जायेगा.
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