पीए संगमा (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पी.ए संगमा का शुक्रवार को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वह 68 साल के थे। संगमा मेघालय के तुरा से नौ बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए और पूर्वोत्तर क्षेत्र से आने वाले लोकसभा के पहले अध्यक्ष बने। उन्होंने शुक्रवार सुबह यहां अपनी अंतिम सांसें लीं।
लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने सदन में उनके निधन की जानकारी दी। सदन ने संगमा को श्रद्धांजलि दी और उनके सम्मान के तौर पर लोकसभा की बैठक दिनभर के लिए स्थगित कर दी गयी।
बाद में प्रोटोकॉल को दरकिनार करते हुए दोपहर के भोजनावकाश के बाद राज्यसभा की बैठक भी स्थगित कर दी गयी ताकि सदस्य संगमा को श्रद्धांजलि दे सकें। संगमा का पार्थिव शरीर मेघायल स्थित उनके घर ले जाया जाएगा। आमतौर पर उसी सदन की कार्यवाही स्थगित की जाती है, जिस सदन से सदस्य का देहांत होता है।
संगमा के परिवार में उनकी पत्नी सारोदिनी, बेटे कोनराड और जेम्स एवं बेटी अगाथा हैं। कोनराड मेघालय के पूर्व वित्त मंत्री हैं, जेम्स एक निवर्तमान विधायक हैं और अगाथा 2009 में मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल की सबसे युवा मंत्री बनी थीं।
अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद 11वीं लोकसभा में संख्या में कमी के कारण भाजपा को कांग्रेस उम्मीदवार संगमा को लोकसभा अध्यक्ष के तौर पर स्वीकारना पड़ा था। तब वाजपेयी सरकार केवल 13 दिन तक सत्ता में रही थी।
मिलनसार और खुशनुमा व्यक्तित्व वाले संगमा के सभी राजनीतिक दलों में दोस्त थे। कांग्रेस में रहते हुए 1984 में वह राजीव गांधी सरकार में राज्य मंत्री बने और बाद में नरसिंह राव की मंत्रिमंडल में श्रम मंत्री बने।
उन्होंने पिछले दो दशकों में अपने राजनीतिक करियर में लगातार राजनीतिक पाले बदले थे।
1999 में सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे के खिलाफ विद्रोह करने वाले नेताओं में संगमा भी शामिल थे। उन्होंने, शरद पवार और तारिक अनवर ने कांग्रेस छोड़कर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) का गठन किया। बाद में संगमा राकांपा छोड़कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए। बाद में संगमा ने तृणमूल कांग्रेस छोड़कर अपनी खुद की नेशनल पीपुल्स पार्टी का गठन किया। वह पार्टी के टिकट पर वर्तमान 16वीं लोकसभा में निर्वाचित हुए थे। 2012 में संगमा ने राकांपा छोड़ दी और राष्ट्रपति पद के चुनाव में प्रणब मुखर्जी के खिलाफ भाजपा के आधिकारिक उम्मीदवार बने। वह 1988 से 1990 तक मेघालय के मुख्यमंत्री और 1990 से 1991 तक विधानसभा में नेता विपक्ष भी रहे।
संगमा के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि सदन की कार्यवाही आनंदपूर्ण माहौल में कैसे चलाते हैं, सच कहें तो इसके बारे में उन्हें संगमा से सीखने को मिला।
अध्यक्ष ने कहा, ‘‘जन नेता संगमा ने लगातार वंचित तबकों के उत्थान के लिए काम किया।’’ संगमा के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि वह ‘‘एक स्वनिर्मित नेता थे जिनका पूर्वोत्तर के विकास में बड़ा योगदान है। उनके निधन से दुखी हूं।’’ उन्होंने कहा कि लोकसभा अध्यक्ष के रूप में संगमा का कार्यकाल ‘‘अविस्मरणीय है। जमीन से जुड़े उनके व्यक्तित्व तथा मिलनसार व्यवहार से बहुत सारे लोग उनके मुरीद बन गए।’’ उन्होंने कहा, ‘‘संगमा जी नेताजी बोस से काफी प्रभावित थे।’’ मेघालय के वेस्ट गारो हिल्स के चापाहती गांव में जन्मे संगमा इस छोटे से आदिवासी गांव में पले बढ़े और जीवन में आगे बढ़ने के लिए संघर्ष किया।
सेंट एंथनी कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह अंतरराष्ट्रीय संबंध विषय में स्नातकोत्तर उपाधि हासिल करने असम के डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय गए। उन्होंने इसके बाद विधि विषय में भी डिग्री हासिल की।
संगमा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के संस्थापक सदस्य थे लेकिन जुलाई 2012 में राकांपा से निष्कासित किए जाने के बाद उन्होंने जनवरी 2013 में नेशनल पीपुल्स पार्टी का गठन किया था।
भारत के राष्ट्रपति पद की दौड़ से हटने से इंकार करने के चलते राकांपा ने उन्हें पार्टी से निष्कासित किया था। बहुमुखी प्रतिभा के धनी संगमा 2004 में राकांपा से अलग हो गए और अपने गुट को राष्ट्रवादी तृणमूल कांग्रेस का नाम देकर उसका ममता बनर्जी की अगुवाई वाली तृणमूल कांग्रेस में विलय कर दिया। लोकसभा अध्यक्ष के तौर पर वह आक्रोशित सदस्यों को अपनी सहज बुद्धिमता से नियंत्रित करने, अपने मिलनसार स्वभाव और निष्पक्षता के लिए जाने जाते थे।
मेघालय के एक छोटे से आदिवासी गांव में साधारण पृष्ठभूमि से आने वाले संगमा 1977 में कांग्रेस के टिकट पर पहली बार तुरा निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुए। तब उनकी उम्र 30 साल थी। उस समय आजादी के बाद से कांग्रेस के पहली बार सत्ता से बाहर जाने के साथ देश एक बड़े राजनीतिक उथल पुथल का सामना कर रहा था।
दो साल के बाद जनता पार्टी की सरकार सत्ता से बाहर चली गयी और चरण सिंह की सरकार आयी और कुछ महीने ही सत्ता में रही।
1980 में हुए मध्यावधि लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस केंद्र की सत्ता में लौटी और संगमा उसी लोकसभा क्षेत्र से पुनर्निर्वाचित हुए।
कौन थे पीए संगमा
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने सदन में उनके निधन की जानकारी दी। सदन ने संगमा को श्रद्धांजलि दी और उनके सम्मान के तौर पर लोकसभा की बैठक दिनभर के लिए स्थगित कर दी गयी।
बाद में प्रोटोकॉल को दरकिनार करते हुए दोपहर के भोजनावकाश के बाद राज्यसभा की बैठक भी स्थगित कर दी गयी ताकि सदस्य संगमा को श्रद्धांजलि दे सकें। संगमा का पार्थिव शरीर मेघायल स्थित उनके घर ले जाया जाएगा। आमतौर पर उसी सदन की कार्यवाही स्थगित की जाती है, जिस सदन से सदस्य का देहांत होता है।
संगमा के परिवार में उनकी पत्नी सारोदिनी, बेटे कोनराड और जेम्स एवं बेटी अगाथा हैं। कोनराड मेघालय के पूर्व वित्त मंत्री हैं, जेम्स एक निवर्तमान विधायक हैं और अगाथा 2009 में मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल की सबसे युवा मंत्री बनी थीं।
अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद 11वीं लोकसभा में संख्या में कमी के कारण भाजपा को कांग्रेस उम्मीदवार संगमा को लोकसभा अध्यक्ष के तौर पर स्वीकारना पड़ा था। तब वाजपेयी सरकार केवल 13 दिन तक सत्ता में रही थी।
मिलनसार और खुशनुमा व्यक्तित्व वाले संगमा के सभी राजनीतिक दलों में दोस्त थे। कांग्रेस में रहते हुए 1984 में वह राजीव गांधी सरकार में राज्य मंत्री बने और बाद में नरसिंह राव की मंत्रिमंडल में श्रम मंत्री बने।
उन्होंने पिछले दो दशकों में अपने राजनीतिक करियर में लगातार राजनीतिक पाले बदले थे।
1999 में सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे के खिलाफ विद्रोह करने वाले नेताओं में संगमा भी शामिल थे। उन्होंने, शरद पवार और तारिक अनवर ने कांग्रेस छोड़कर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) का गठन किया। बाद में संगमा राकांपा छोड़कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए। बाद में संगमा ने तृणमूल कांग्रेस छोड़कर अपनी खुद की नेशनल पीपुल्स पार्टी का गठन किया। वह पार्टी के टिकट पर वर्तमान 16वीं लोकसभा में निर्वाचित हुए थे। 2012 में संगमा ने राकांपा छोड़ दी और राष्ट्रपति पद के चुनाव में प्रणब मुखर्जी के खिलाफ भाजपा के आधिकारिक उम्मीदवार बने। वह 1988 से 1990 तक मेघालय के मुख्यमंत्री और 1990 से 1991 तक विधानसभा में नेता विपक्ष भी रहे।
संगमा के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि सदन की कार्यवाही आनंदपूर्ण माहौल में कैसे चलाते हैं, सच कहें तो इसके बारे में उन्हें संगमा से सीखने को मिला।
अध्यक्ष ने कहा, ‘‘जन नेता संगमा ने लगातार वंचित तबकों के उत्थान के लिए काम किया।’’ संगमा के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि वह ‘‘एक स्वनिर्मित नेता थे जिनका पूर्वोत्तर के विकास में बड़ा योगदान है। उनके निधन से दुखी हूं।’’ उन्होंने कहा कि लोकसभा अध्यक्ष के रूप में संगमा का कार्यकाल ‘‘अविस्मरणीय है। जमीन से जुड़े उनके व्यक्तित्व तथा मिलनसार व्यवहार से बहुत सारे लोग उनके मुरीद बन गए।’’ उन्होंने कहा, ‘‘संगमा जी नेताजी बोस से काफी प्रभावित थे।’’ मेघालय के वेस्ट गारो हिल्स के चापाहती गांव में जन्मे संगमा इस छोटे से आदिवासी गांव में पले बढ़े और जीवन में आगे बढ़ने के लिए संघर्ष किया।
सेंट एंथनी कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह अंतरराष्ट्रीय संबंध विषय में स्नातकोत्तर उपाधि हासिल करने असम के डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय गए। उन्होंने इसके बाद विधि विषय में भी डिग्री हासिल की।
संगमा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के संस्थापक सदस्य थे लेकिन जुलाई 2012 में राकांपा से निष्कासित किए जाने के बाद उन्होंने जनवरी 2013 में नेशनल पीपुल्स पार्टी का गठन किया था।
भारत के राष्ट्रपति पद की दौड़ से हटने से इंकार करने के चलते राकांपा ने उन्हें पार्टी से निष्कासित किया था। बहुमुखी प्रतिभा के धनी संगमा 2004 में राकांपा से अलग हो गए और अपने गुट को राष्ट्रवादी तृणमूल कांग्रेस का नाम देकर उसका ममता बनर्जी की अगुवाई वाली तृणमूल कांग्रेस में विलय कर दिया। लोकसभा अध्यक्ष के तौर पर वह आक्रोशित सदस्यों को अपनी सहज बुद्धिमता से नियंत्रित करने, अपने मिलनसार स्वभाव और निष्पक्षता के लिए जाने जाते थे।
मेघालय के एक छोटे से आदिवासी गांव में साधारण पृष्ठभूमि से आने वाले संगमा 1977 में कांग्रेस के टिकट पर पहली बार तुरा निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुए। तब उनकी उम्र 30 साल थी। उस समय आजादी के बाद से कांग्रेस के पहली बार सत्ता से बाहर जाने के साथ देश एक बड़े राजनीतिक उथल पुथल का सामना कर रहा था।
दो साल के बाद जनता पार्टी की सरकार सत्ता से बाहर चली गयी और चरण सिंह की सरकार आयी और कुछ महीने ही सत्ता में रही।
1980 में हुए मध्यावधि लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस केंद्र की सत्ता में लौटी और संगमा उसी लोकसभा क्षेत्र से पुनर्निर्वाचित हुए।
कौन थे पीए संगमा
- 1 सितंबर 1947 को मेघालय में जन्म
- राष्ट्रवादी कांग्रेस के सह संस्थापक रहे
- कुल 9 बार सांसद रहे
- 1977 में पहली बार कांग्रेस की टिकट पर तुरा से सांसद
- 1988-1990 तक मेघालय के सीएम रहे
- 1996-1998 तक लोकसभा के स्पीकर रहे
- 1999 में कांग्रेस से निष्कासित
- शरद पवार के साथ एनसीपी की स्थापना की
- 2012 में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बने
- 2013 में नेशनल पीपल्स पार्टी की स्थापना की
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
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