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This Article is From Oct 30, 2015

अलसाई पड़ी परियोजनाओं को महीने में एक बार पीएम मोदी लगाते हैं 'धक्का'...

अलसाई पड़ी परियोजनाओं को महीने में एक बार पीएम मोदी लगाते हैं 'धक्का'...
अफसरशाही और लालफीताशाही फाइलों को आगे बढ़ने से रोकती है
पीएम नरेंद्र मोदी निजी तौर पर भारत की लालफीता शाही पर लगाम कसते हुए सालों से अटके पड़े करोड़ो डॉलर के सार्वजनिक परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के काम में हिस्सा ले रहे हैं।

ऐसी उम्मीद की जा रही है कि उनके हस्तक्षेप से जंग खाती अफसरशाही में कुछ सुधार हो पाएगा। महीने में एक बार पीएम मोदी और राज्य तथा केंद्र के उच्चाधिकारियों के बीच बैठक होती है जिसमें लटकी हुई परियोजनाओं के भविष्य के बारे में फैसला लिया जाता है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने सितंबर के सरकारी आंकड़ों पर नज़र डालते हुऐ पाया कि मार्च महीने से पीएम के हस्तक्षेप से करीब 6 हज़ार करोड़ डॉलर (3.91 लाख करोड़ रुपए) की अलसाई पड़ी केंद्रीय और राज्य परियोजनाओं को हवा मिल पाई है।
 

कई परियोजनाएं लालफीताशाही की वजह से अधर में लटकी हुई हैं

हालांकि पीएम मोदी की इस पहल की काफी तारीफ की जा रही है लेकिन साथ ही आलोचकों का यह भी कहना है किएशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में सरकारी आलसपन इस हद तक  है कि देश के प्रधानमंत्री को निजी तौर पर मामले में दखल देना पड़ रहा है। कांग्रेस सरकार के सदस्य अरुण मायरा का कहना है कि यह व्यवस्थित समस्या है जिस पर  प्रधानमंत्री को काम करने की ज़रूरत है। प्रगति नाम की इस पहल की शुरुआत मार्च के महीने में पीएम मोदी ने की थी जिसे उन्होंने अपनी निजी वेबसाइट और ट्विटर पर भी शेयर किया था।

अखिलेश यादव ने भी भेजी चिट्ठी

इस कार्यक्रम के दौरान केंद्र और राज्य सरकार के अफसरों को पीएमओ के साथ वीडियो द्वारा लिंक किया जाता है। यह बैठक महीने के चौथे बुधवार को होती है और इसमें कानून, ज़मीन, पर्यावरण, परिवहन, ऊर्जा और वित्त मंत्रालय से जुड़े वे अधिकारी शामिल होते हैं जो परियोजना को आगे बढ़ाने की हरी झंडी देते हैं। ऐसी ही एक बैठक में शामिल हुए एक वरिष्ठ अधिकारी  का कहना है कि जब भी किसी परियोजना को मीटिंग में लाया जाता है तो पीएम मोदी उस मंत्रालय से जुड़े प्रतिनिधि की तरफ देखते हैं और उससे पूछते हैं प्लीज़ बताइए 'ये काम अभी तक क्यों नहीं हुआ है?'

इन अधिकारी की माने तो प्रगति को शुरु हुए काफी महीने हो गए हैं और अब आलम यह है कि चर्चा में आने से पहले ही कई परियोजनाओं को हरी झंडी दिखा दी जाती है। यहां तक की एनडीए के प्रतिद्वंदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी पीएमओ को एक चिट्ठी लिखकर लखनऊ के 100 करोड़ डॉलर के मेट्रो रेल प्रोजेक्ट को प्रगति बैठक में शामिल करने का निवदेन किया था। सितंबर की एक बैठक में इस परियोजना को मंजुरी मिल गई थी।

हालांकि आलोचकों का कहना है कि पीएम मोदी का इस तरह लालफीताशाही में दखल देना सराहनीय है लेकिन उनका यह तरीका फैसला लेने के अधिकार का केंद्रीकरण करता है जो कि भारत जैसे विशाल देश के लिए ठीक नहीं है।

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