नई दिल्ली:
निर्माण और विध्वंस (कंस्ट्रक्शन एंड डिमोलिशन वेस्ट) से पैदा हुए कचरे के निपटारे के लिए भारत, नार्वे के साथ मानव संसाधन के प्रशिक्षण के समझौता पत्र (एमओयू) पर दस्तखत करेगा। यह कदम स्वच्छ भारत अभियान के तहत उठाया जा रहा है।
नार्वे की लोक निर्माण कंपनी सिन्टेफ और भारत के केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग के बीच निर्माण कचरे के निपटारे के लिए मानव संसाधन विकास के क्षेत्र में क्षमता निर्माण में सहयोग संबंधी सहमति पत्र पर दस्तखत होगा। इसके अलावा नार्वे निर्माण और विध्वंस को पुनर्चक्र (रिसाइकिल) करने के क्षेत्र में वैज्ञानिक अनुसंधान संबंधी कार्यो में भारत को सहयोग देगा।
इस सिलसिले में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को प्रस्ताव पारित किया। मंत्रिमंडल की बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की।
भारत में निर्माण क्षेत्र से सालाना करीब एक करोड़ टन से लेकर सवा करोड़ टन तक अपशिष्ट सामग्री (कन्सट्रक्शन वेस्ट) निकलती है। आवास और सड़क क्षेत्रों में इनकी जबरदस्त मांग है लेकिन मांग और आपूर्ति में अच्छा-खासा अंतराल है। इसे इन्हीं सामग्रियों के पुनर्चक्र से काफी हद तक कम किया जा सकता है।
ईंट, लकड़ी की टाइलें, धातु जैसी कुछ वस्तुओं का पुनर्चक्र होता है और निर्माण के दूसरे कार्यो में भी इनसे मदद मिलती है। लेकिन, इस समय भारत में 'कन्सट्रक्शन-डिमोलिशन वेस्ट' के 50 प्रतिशत से ज्यादा का पुनर्चक्र नहीं हो रहा है।
नार्वे की लोक निर्माण कंपनी सिन्टेफ और भारत के केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग के बीच निर्माण कचरे के निपटारे के लिए मानव संसाधन विकास के क्षेत्र में क्षमता निर्माण में सहयोग संबंधी सहमति पत्र पर दस्तखत होगा। इसके अलावा नार्वे निर्माण और विध्वंस को पुनर्चक्र (रिसाइकिल) करने के क्षेत्र में वैज्ञानिक अनुसंधान संबंधी कार्यो में भारत को सहयोग देगा।
इस सिलसिले में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को प्रस्ताव पारित किया। मंत्रिमंडल की बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की।
भारत में निर्माण क्षेत्र से सालाना करीब एक करोड़ टन से लेकर सवा करोड़ टन तक अपशिष्ट सामग्री (कन्सट्रक्शन वेस्ट) निकलती है। आवास और सड़क क्षेत्रों में इनकी जबरदस्त मांग है लेकिन मांग और आपूर्ति में अच्छा-खासा अंतराल है। इसे इन्हीं सामग्रियों के पुनर्चक्र से काफी हद तक कम किया जा सकता है।
ईंट, लकड़ी की टाइलें, धातु जैसी कुछ वस्तुओं का पुनर्चक्र होता है और निर्माण के दूसरे कार्यो में भी इनसे मदद मिलती है। लेकिन, इस समय भारत में 'कन्सट्रक्शन-डिमोलिशन वेस्ट' के 50 प्रतिशत से ज्यादा का पुनर्चक्र नहीं हो रहा है।
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