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This Article is From Dec 15, 2020

नितिन गडकरी ने NDTV से कहा- सरकार की किसानों से सहानुभूति, संवाद से ही समाधान होगा

केंद्रीय मंत्री ने कहा- कुछ लोग किसान आंदोलन का उपयोग करके एजेंडे को दूसरी तरफ ले जाने की कोशिश कर रहे, किसानों को उनसे सावधान रहना चाहिए

कृषि कानूनों को लेकर चल रहे आंदोलन के मुद्दे पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने NDTV से खास बातचीत की.

नई दिल्ली:

''किसानों (Farmers) का शोषण न हो और उनकी उपज को सही दाम मिले, यही उद्देश्य है. आप फार्मेसी की दुकान में जाते हैं तो दवा पर जो दाम लिखा होता है, वही देना पड़ता है. आप रेस्टोरेंट में जाकर चाय लेते हैं तो उसका भाव रेस्टोरेंट वाला तय करता है. हवाई जहाज से जाएं तो उसके टिकट का रेट हवाई जहाज की कंपनी तय करती है. रेलवे के टिकट का भाव रेलवे तय करती है. लेकिन किसान की जो उपज है उसका भाव किसान तय नहीं करता. यह अपवाद है और किसान के साथ अन्याय है. किसान मंडी में अनाज लेकर जाता है तो उसका भाव बिचौलिए और व्यापारी तय करते हैं. क्या यह उचित है? हमने यही निर्णय किया है कि किसान को कहीं भी माल बेचने का अधिकार हो, ज्यादा से ज्यादा कीमत मिलेगी. आज भी पंजाब-हरियाणा में जिसको मंडी में बेचना हो तो मंडी में बेचे. जिसको किसी और को बेचना है तो जो सबसे ज्यादा भाव दे उसको बेचे.'' कृषि कानूनों (Farm Laws) को लेकर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) ने NDTV से खास बातचीत में यह बात कही. 

नितिन गडकरी ने कहा कि ''तीनों बिलों को निकालो और उन तीनों में कौन सा हिस्सा किसानों के विरुद्ध है, इस पर चर्चा करो. यदि किसान या किसान संगठन उसमें कुछ शामिल करना चाहते हैं तो हम ओपन माइंडेड हैं, हम तैयार हैं. ये कार्पोरेट की बात हो रही है, यह कैसी बात है? अगर एमएसएमई में कोई इंडस्ट्री अच्छी नहीं चल रही है, बंद पड़ गई तो दूसरा आदमी आता है, वर्किंग कैपिटल डालता है, इंडस्ट्री चालू होती है, फिर उसका कर्जा भी चुकाता है, रोजगार भी चालू होता है.'' 

उन्होंने कहा कि ''मैं विदर्भ से आया हूं जहां दस हजार किसानों ने आत्महत्या की. वहां किसानों के पास जमीन को तैयार करने के लिए ट्रैक्टर नहीं है, बीज भी नहीं है, खाद नहीं है और पानी भी नहीं है. जमीन बंजर पड़ी हुई है. कोई दूसरा किसान आता है और कहता है कि मैं जमीन तैयार करूंगा, खाद,बीज और पानी भी लाऊंगा और 10-15 हजार रुपये प्रति एकड़ आपको दूंगा. कोई और आता है और कहता है कि हम सब करेंगे और बेचे जाने के बाद जो प्राफिट आएगा उसमें से आधा तुम्हारा होगा, आधा मेरा होगा. जमीन तुम्हारी होगी, फसल के लिए मैंने कर्जा किया. मुझे बताइए, किसान को इससे फायदा मिलेगा... बंजर जमीन पड़ी है, किसान की पेइंग कैपिसटी नहीं है, उसका वर्किंग कैपिटल खत्म हो गया है पूरा. किसान यदि किसी का सहयोग लेता है तो क्या जमीन बेचता है? यदि आप ओला-उबर टैक्सी में थोड़ी देर के लिए बैठ जाते हो तो क्या आप टैक्सी के मालिक बन जाते हो? कॉन्ट्रेक्ट पर जमीन देने पर कोई मालिक नहीं बनता, ऐसा कोई कानून नहीं है. किसान की जमीन कोई नहीं ले सकता.''

यह कानून आने के बाद बातचीत हो रही है, किसानों से पहले बातचीत क्यों नहीं की गई? इस सवाल पर गडकरी ने कहा कि ''पार्लियामेंट के दोनों सदनों में इस पर चर्चा हुई. लोगों ने अपनी बातें रखीं, कुछ सुझाव लिए गए. आज भी कृषि मंत्री कह रहे हैं कि आप कुछ बदलाव करना चाहते हैं तो कन्वेंस करें, हम तैयार हैं. सभी किसान संगठनों के बारे में नहीं कहूंगा लेकिन हमारे विदर्भ में गड़चिरोली जिले में नक्सलाइट मूवमेंट को सपोर्ट करने वाले एक व्यक्ति पर कार्रवाई हुई. उसकी जमानत नहीं हुई. उसका फोटो इस आंदोलन में कहां से आया, उसका क्या संबंध खेती से और किसान से. जिसने एंटी नेशनल भाषण दिए, जिनका किसान से कोई डायरेक्ट या इनडायरेक्ट सबंध नहीं है, उनके फोटो कहां से आए? कुछ एलिमेंट किसान आंदोलन का उपयोग करके, उसे बदनाम करके एजेंडे को दूसरी तरफ ले जाने की कोशिश कर रहे हैं. जो किसानों और किसान संगठनों का एजेंडा नहीं है उससे किसानों को सावधान रहना चाहिए.'' 

सवाल- सिर्फ कुछ पोस्टरों को लेकर कहना कि आंदोलन किसी और दिशा में जा रहा है और किसानों को टुकड़े-टुकड़े गैंग कहना क्या उचित है? पर नितिन गडकरी ने कहा कि ''आपका आकलन सही है और सरकार इससे सहमत है. हम इतना ही कह रहे हैं कि कुछ गलत तत्व हैं जो आंदोलन का फायदा लेकर इसमें घुसने की कोशिश कर रहे हैं. सभी किसान संगठन ऐसे हैं, यह बात न तो सरकार ने कभी कही है, न ही सरकार का यह मत है.'' 

क्या सरकार किसानों का विश्वास जीतने में पीछे रह गई? सवाल पर गडकरी ने कहा कि ''मैं गन्ना उत्पादक किसान हूं और तीन चीनी मिलें चलाता हूं. मेरे क्षेत्र में किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं. मुझे बताइए छह साल में गन्ने के जूस से, बाद में मोलाइसिस से एथेनॉल बनाकर किसानों को ज्यादा भाव देने का काम किस सरकार ने किया. छह साल में मोदी जी के नेतृत्व में हमारी सरकार ने किया. अभी हमारे पास 280 लाख टन चावल है. गोदाम में रखने के लिए जगह नहीं है. चावल से, मक्के से एथेनॉल बनाने की अनुमति दी. हम दो लाख करोड़ की इकानामी बनाकर एक लाख करोड़ किसानों के पास पहुंचाएंगे. आठ लाख करोड़ का पेट्रोल-डीजल का इम्पोर्ट कम करेंगे. दो लाख करोड़ की बॉयो-फ्यूल की इकानामी बनाएंगे. यह क्या किसानों के हित में नहीं है?'' 

केंद्राय मंत्री ने कहा कि ''पहले कांग्रेस की सरकार में क्या हुआ. राम नाईक और अटलबिहारी वाजपेयी का शुरू किया गया एथेनॉल बंद पड़ा था. शरद पवार साहब कृषि मंत्री थे, मैं उनसे मिलता था. वे सहमत थे लेकिन उनकी बात यूपीए सरकार में नहीं मानी गई. मोदी जी के आने के बाद हमारी सरकार ने यह करके दिखाया. इतना बड़ी चेंज किया, हवाई जहाज का ईंधन भी किसान तैयार करेगा. हम बातों में नहीं, यह करके दिखा रहे हैं. हम यह सब चेंजेस लाकर एग्रीकल्चर रिफॉर्म लाकर किसानों को सैटेल कर रहे हैं. शक्कर की इंटरनेशनल प्राइज 22 रुपये किलो है और हम 34 रुपये किलो के हिसाब से गन्ने का भाव दे रहे हैं. पिछले साल हमने 60 लाख टन शुगर एक्सपोर्ट करने के लिए 6000 करोड़ रुपये का इंसेटिव दिया, 10 रुपये किलो का, ताकि किसानों को अच्छा भाव मिले. जो भी रिफॉर्म किए उसके केंद्र में किसान ही रहा. यदि चर्चा करेंगे तो बात बनेगी. जब संवाद नहीं होता तो विसंवाद होता है. और जब विसंवाद होता है तो वितंडवाद होता है, यानी झगड़े होते हैं.'' 

गडकरी ने कहा कि ''एमएसपी कैसे तय होती है? कृषि मूल्य आयोग, नीति आयोग और कृषि मंत्रालय, तीनों मिलकर एक्सपेंडीचर कास्ट निकालते हैं. प्रोडक्शन कास्ट कितनी है, फिर उसमें ट्रेक्टर से लेकर एक-एक खर्चा जोड़ा जाता है. फिर उसके आधार पर कीमत तय करते हैं कि प्रति एकड़ में कितना उत्पादन मिलता है. फिर प्रस्ताव कैबिनेट में आता है. पिछले छह साल में हर बार हमने एमएसपी बढ़ाई है. एमएसपी बढ़ाने के बाद कैबिनेट से उसकी नोटिफिकेशन निकलता है. इसका मतलब वह कानून ही है. वह सरकार का कमिटमेंट है, कटिबद्धता है. जो हमने एमएसपी दी है, उस पर खरीदना सरकार के लिए बंधनकारक है. राज्य सरकार के सहयोग से वह माल सरकार को खरीदना पड़ता है. यह कानून ही है, लीगल सिस्टम है.'' 

विपक्ष के रुख को लेकर किए गए सवाल पर नितिन गडकरी ने कहा कि ''गांव, गरीब और किसान का राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए. मैंने पिछले कई साल किसानों के लिए खर्च किए हैं. मैं राजनीतिक पार्टियां से आह्वान करता हूं कि हमारे साथ बैठकर किसानों के हित में निर्णय करें. बाकी बहुत सारे सब्जेक्ट हैं जिस पर हम राजनीति कर सकते हैं. राजनीति करने का उनका अधिकार है और डेमेक्रेसी में यह होना भी चाहिए. पर जहां गरीब और किसान का हित है, उसमें सबने मिलकर काम किया तो कल्याण होगा. यही मेरा उनसे अनुरोध है.'' 
  
सवाल- ठंड में 19 दिन से किसान बैठे हैं. किसानों का यह आंदोलन खत्म कैसे होगा? पर गडकरी ने कहा कि ''किसान अपने 15-20 लोगों का डेलिगेशन तय करें और कृषि मंत्री तोमर जी के साथ बैठें. तीनों एक्ट के बारे में एक-एक बात रीजनल लैंग्वेज में समझाई जाएगी. उसके बाद चर्चा होगी. तीनों एक्ट में जो भी उनका विरोध है, हमें कहें. हम भी सरकार में विचार करेंगे और किसानों के अच्छे सुझावों को स्वीकार करेंगे. हमारा किसान, हमारा अन्नदाता आज हाई-वे पर बैठा है. मैंने कहा है कि उनको कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए. निश्चित रूप से हम दुखी हैं कि इतनी ठंड में उनको रोड पर आना पड़ा. चर्चा के दरवाजे खुले हैं, वे हमारे कृषि मंत्री के पास आएं. निश्चित रूप से समाधान निकलेगा, ऐसा मेरा विश्वास है.

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