
अरविंद पनगढ़िया (फाइल फोटो)
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पीएम को पत्र लिख 31 अगस्त से सेवाओं से 'मुक्त' करने का आग्रह किया.
उन्होंने तीन महीने पहले ही सरकार को इस बाबत जानकारी दे दी थी.
सरकार ने उनके उत्तराधिकारी का नाम भी तय कर लिया है- सूत्र
सरकारी सूत्रों के मुताबिक, पनगढ़िया ने तीन महीने पहले ही सरकार को इस बाबत जानकारी दे दी थी. उन्होंने सरकार को बता दिया था कि वो अध्यापन के क्षेत्र में वापस जाना चाहते हैं. सूत्रों के अनुसार, सरकार ने उनके उत्तराधिकारी का नाम भी तय कर लिया है. सही समय पर नाम की घोषणा की जाएगी.
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पनगढ़िया ने तात्कालिक रूप से शिक्षा क्षेत्र में लौटने की बात कहकर इस्तीफा दिया और कहा कि कोलंबिया विश्वविद्यालय उनके अवकाश को बढ़ाने को तैयार नहीं है. इस वजह से वह नीति आयोग की जिम्मेदारी नहीं संभाल सकते.
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री पनगढ़िया आर्थिक उदारीकरण के पैरोकार माने जाते रहे हैं.
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भारतीय अमेरिकी मूल के अर्थशास्त्री और कोलंबिया विश्वविद्यालय में भारतीय राजनीतिक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर पनगढ़िया नीति आयोग के जनवरी, 2015 में पहले उपाध्यक्ष बने थे. उस समय योजना आयोग का समाप्त कर नीति आयोग बनाया गया था.
पनगढ़िया ने यहां मीडिया से कहा कि कोलंबिया विश्वविद्यालय उन्हें अवकाश का विस्तार देने को तैयार नहीं है. ऐसे में वह 31 अगस्त को नीति आयोग से निकल जाएंगे. पनगढ़िया ने बताया कि करीब दो महीने पहले उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से 31 अगस्त तक नीति आयोग के कार्यभार से मुक्त करने का आग्रह किया था. प्रधानमंत्री नीति आयोग के चेयरपर्सन भी हैं. 64 वर्षीय पनगढ़िया ने कहा कि विश्वविद्यालय में वह जो काम कर रहे हैं इस उम्र में ऐसा काम और कहीं पाना काफी मुश्किल है.
मार्च, 2012 में पनगढ़िया को पद्म भूषण सम्मान मिला था. यह देश का तीसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है.
वह इससे पहले एशियाई विकास बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री रहे हैं. इसके अलावा वह वर्ल्ड बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व व्यापार संगठन और अंकटाड में भी काम कर चुके हैं. उन्होंने प्रतिष्ठित प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री ली है.
पनगढ़िया ने तकरीबन 10 किताबें लिखी हैं. भारत के संदर्भ में उनकी किताब India: The Emerging Giant खासी चर्चित रही. यह पुस्तक 2008 में प्रकाशित हुई थी.
(इनपुट भाषा से भी)
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