छावनी में तब्दील हो गया है एनआईटी श्रीनगर का कैंपस
श्रीनगर:
श्रीनगर के NIT कैम्पस में तनाव बरक़रार है। शुक्रवार को बस एक बाहरी बच्चे ने एनआईटी श्रीनगर का कैंपस छोड़ने का फ़ैसला किया। उसे सुरक्षित बाहर निकाला गया। एनडीटीवी इंडिया ने उससे जब बात करनी चाही तो उसे रोक दिया गया। उसे कॉलेज प्रशासन के लोग दौड़ाते हुए ले गए।
कॉलेज में सबसे कहा गया है कि जो जाना चाहें, वे जा सकते हैं। लेकिन सुरक्षा और करियर के कशमकश में फंसे छात्र तय नहीं कर पा रहे। एक छात्र ने कहा, "हम सब इम्तिहान देना चाहते हैं लेकिन क्या हो रहा है समझ नहीं आ रहा।" वैसे कई स्थानीय छात्र भी अपने घर इम्तिहान की तैयारी के लिए गए। एक स्थानीय छात्र ने कहा, "कॉलेज में आप देख रहे हो कैसा माहौल है, यहां कैसे पढ़ाई होगी इसीलिए घर जा रहे हैं।"
दूसरे छात्र ने कहा, "अंदर क्लासेस हो रही हैं। हम सब अब परीक्षा की तैयारी में लगे हुए हैं।" वैसे 11 अप्रैल की परीक्षाएं टल भी सकती हैं। हालांकि प्रशासन ने साफ़ किया है कि अगर परीक्षाएं न टलीं तो बाहर गए बच्चों के परचे बाद में हो जाएंगे। फिर ये इम्तिहान बाहरी लोगों की निगरानी में होंगे।
इतनी सारी तसल्ली के बीच अभिभावकों के अपने सवाल हैं। एक चिंतित मां ने एनडीटीवी को कैम्पस के बाहर बताया, "हम अपनी बच्ची से मिल कर आए हैं, रोज़ अख़बारों और टीवी में जो देख रहे हैं उससे डर गए थे।" उधर एनआईटी श्रीनगर जैसे फौजी शिविर में तब्दील हो गया है। बाहर वाले छात्रों के डर अलग हैं तो स्थानीय छात्रों के अलग। शुक्रवार को वो भी कैंपस में दाखिल नहीं हो पाए। एक स्थानीय छात्र ने बताया, "अंदर इतनी पुलिस है कि क्या बोलूं, बुरा लगता है, हमें ख़ुद अंदर कई जगह जाने नहीं दिया जा रहा, हमारे ख़ुद के कॉलेज में हम पर शक कर रहे हैं।"
इस तनाव के बीच मामला स्थानीय और बाहरी लोगों के टकराव का होता जा रहा है। शिक्षक मायूस हैं कि उनपर भरोसा नहीं किया जा रहा। वो याद दिला रहे हैं कि बाढ़ जैसे संकट में इन लोगों की मदद स्थानीय लोगों ने ही की।
शेख़ मुबाशिर जो बी-टेक पढ़ाते हैं, उन्होंने बताया, "हम लोगों ने इन्हें अपने बच्चों की तरह रखा, अब हम पर इल्ज़ाम लग रहा है, बहुत दुःख हो रहा है।"
यही शिकायत जम्मू-कश्मीर पुलिस की है। उसने शुक्रवार को बाक़ायदा अपने फेसबुक पेज पर लिखा, 'जम्मू-कश्मीर पुलिस को राष्ट्रवाद या निष्पक्षता के किसी सर्टिफिकेट की ज़रूरत नहीं है। वो भी उन लोगों से, जिनकी बहादुरी उनके कीपैड से बाहर नहीं जाती। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने इस राज्य को आतंकवाद नाम के पागलपन से बाहर निकाला है।'
लेकिन जम्मू से लेकर जयपुर तक छात्रों के अभिभावक प्रदर्शन कर रहे हैं। छात्र चाहते हैं कि उनके ऊपर लगी एफआईआर ख़ारिज कर दी जाए। ये बड़ी बात नहीं है। ज़्यादा बड़ा सवाल ये है कि एक छोटे से विवाद से पैदा हुआ ये बड़ा संकट कब तक ख़त्म होगा। जब नेता और मीडिया यहां से निकल जाएंगे तो आखिरकार छात्रों को ही साथ रहना होगा।
कॉलेज में सबसे कहा गया है कि जो जाना चाहें, वे जा सकते हैं। लेकिन सुरक्षा और करियर के कशमकश में फंसे छात्र तय नहीं कर पा रहे। एक छात्र ने कहा, "हम सब इम्तिहान देना चाहते हैं लेकिन क्या हो रहा है समझ नहीं आ रहा।" वैसे कई स्थानीय छात्र भी अपने घर इम्तिहान की तैयारी के लिए गए। एक स्थानीय छात्र ने कहा, "कॉलेज में आप देख रहे हो कैसा माहौल है, यहां कैसे पढ़ाई होगी इसीलिए घर जा रहे हैं।"
दूसरे छात्र ने कहा, "अंदर क्लासेस हो रही हैं। हम सब अब परीक्षा की तैयारी में लगे हुए हैं।" वैसे 11 अप्रैल की परीक्षाएं टल भी सकती हैं। हालांकि प्रशासन ने साफ़ किया है कि अगर परीक्षाएं न टलीं तो बाहर गए बच्चों के परचे बाद में हो जाएंगे। फिर ये इम्तिहान बाहरी लोगों की निगरानी में होंगे।
इतनी सारी तसल्ली के बीच अभिभावकों के अपने सवाल हैं। एक चिंतित मां ने एनडीटीवी को कैम्पस के बाहर बताया, "हम अपनी बच्ची से मिल कर आए हैं, रोज़ अख़बारों और टीवी में जो देख रहे हैं उससे डर गए थे।" उधर एनआईटी श्रीनगर जैसे फौजी शिविर में तब्दील हो गया है। बाहर वाले छात्रों के डर अलग हैं तो स्थानीय छात्रों के अलग। शुक्रवार को वो भी कैंपस में दाखिल नहीं हो पाए। एक स्थानीय छात्र ने बताया, "अंदर इतनी पुलिस है कि क्या बोलूं, बुरा लगता है, हमें ख़ुद अंदर कई जगह जाने नहीं दिया जा रहा, हमारे ख़ुद के कॉलेज में हम पर शक कर रहे हैं।"
इस तनाव के बीच मामला स्थानीय और बाहरी लोगों के टकराव का होता जा रहा है। शिक्षक मायूस हैं कि उनपर भरोसा नहीं किया जा रहा। वो याद दिला रहे हैं कि बाढ़ जैसे संकट में इन लोगों की मदद स्थानीय लोगों ने ही की।
शेख़ मुबाशिर जो बी-टेक पढ़ाते हैं, उन्होंने बताया, "हम लोगों ने इन्हें अपने बच्चों की तरह रखा, अब हम पर इल्ज़ाम लग रहा है, बहुत दुःख हो रहा है।"
यही शिकायत जम्मू-कश्मीर पुलिस की है। उसने शुक्रवार को बाक़ायदा अपने फेसबुक पेज पर लिखा, 'जम्मू-कश्मीर पुलिस को राष्ट्रवाद या निष्पक्षता के किसी सर्टिफिकेट की ज़रूरत नहीं है। वो भी उन लोगों से, जिनकी बहादुरी उनके कीपैड से बाहर नहीं जाती। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने इस राज्य को आतंकवाद नाम के पागलपन से बाहर निकाला है।'
लेकिन जम्मू से लेकर जयपुर तक छात्रों के अभिभावक प्रदर्शन कर रहे हैं। छात्र चाहते हैं कि उनके ऊपर लगी एफआईआर ख़ारिज कर दी जाए। ये बड़ी बात नहीं है। ज़्यादा बड़ा सवाल ये है कि एक छोटे से विवाद से पैदा हुआ ये बड़ा संकट कब तक ख़त्म होगा। जब नेता और मीडिया यहां से निकल जाएंगे तो आखिरकार छात्रों को ही साथ रहना होगा।
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