राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (President Ram Nath Kovind) ने निर्भया सामूहिक दुष्कर्म (Nirbhaya Case) और हत्या मामले के चार दोषियों में एक अक्षय कुमार सिंह की दया याचिका खारिज कर दी है. गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने बुधवार को इस बारे में बताया. सिंह ने कुछ दिन पहले राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दाखिल की थी. एक अधिकारी ने बताया कि राष्ट्रपति ने सिंह की दया याचिका खारिज कर दी. राष्ट्रपति कोविंद मामले में दो अन्य आरोपियों मुकेश सिंह और विनय कुमार शर्मा की दया याचिका पहले ही खारिज कर चुके हैं. पवन ने यह याचिका अभी नहीं दाखिल की है.
बुधवार को ही दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने केंद्र सरकार की दोषियों को अलग-अलग फांसी देने की अर्जी ठुकरा दी थी. कोर्ट ने निचली कोर्ट का आदेश रद्द करने से इनकार कर दिया. हाईकोर्ट ने कहा, ''हम पटियाला हाउस कोर्ट के फैसले से सहमत नहीं हैं. हमें ये कहने में कोई झिझक नहीं है कि दोषियों ने मामले को लंबा खींचा. अपील और पुनर्विचार याचिका दाखिल करने में भी देरी की. दोषी लगातार जीने के अधिकार का हवाला देकर बचते रहने की कोशिश करते रहे.'' जज ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि निर्भया के साथ दोषियों ने जो कुछ किया, वो बेहद अमानवीय था. हाईकोर्ट ने कहा, दोषी एक हफ्ते में अपने सारे उपाय पूरे करें. दिल्ली हाईकोर्ट ने जांच एजेंसी और संबंधित विभाग के कार्रवाई से नाखुशी जाहिर की. कोर्ट ने कहा कि जब मई 2017 में सुप्रीम कोर्ट दोषियों की याचिका को खारिज करता है तो कोई भी संबंधी विभाग ने डेथ वारंट जारी कराने की कोशिश नहीं की, जिसका फायदा दोषियों ने बखूबी उठाया.
बता दें, केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले में चार दोषियों की फांसी पर रोक को चुनौती दी थी. न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत ने शनिवार और रविवार को विशेष सुनवाई के बाद दो फरवरी को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था. गौरतलब है कि केंद्र और दिल्ली सरकार ने निचली अदालत के 31 जनवरी के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसके जरिए मामले में चार दोषियों की फांसी पर "अगले आदेश तक" रोक लगा दी गई थी.
पटियाला हाउस कोर्ट ने 31 जनवरी को फांसी की सजा स्थगित कर दी क्योंकि दोषियों के वकील ने अदालत से फांसी पर अमल को "अनिश्चित काल" के लिए स्थगित करने की अपील की और कहा कि उनके कानूनी उपचार के मार्ग अभी बंद नहीं हुए हैं. शीर्ष न्यायालय ने 2017 के अपने फैसले में दिल्ली उच्च न्यायालय और निचली अदालत द्वारा दोषियों को सुनाई गई फांसी की सजा को बरकरार रखा था.
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