माओवाद के गढ़ में चल रहा है आदिवासियों का अपना टी-20 टूर्नामेंट

माओवाद के गढ़ में चल रहा है आदिवासियों का अपना टी-20 टूर्नामेंट

जगदलपुर से कोई 70 किलोमीटर दूर पेंदरनार गांव में कुछ लड़के हाथों में क्रिकेट बैट लिए मैच से पहले वॉर्मअप कर रहे हैं। दक्षिण बस्तर के इस अंदरूनी गांव में यह नाजारा हैरान करने वाला है। इन लड़कों ने जंगल के बीचोंबीच एक क्रिकेट पिच तैयार की है। चूने से बाउंड्री लाइन की मार्किंग की है और कमेंट्री के लिए बड़े-बड़े दो स्पीकर रखे गए हैं।

पेंदरनार में एक क्रिकेट टूर्नामेंट की तैयारी है। 32 टीमों का टूनामेंट। जी हां, 32 टीमें। जो आसपास के गांव की हैं। खिलाड़ियों में आदिवासी और गैर-आदिवासी सभी शामिल हैं। इस टूर्नामेंट को किसी भी लिहाज से मजाक मत समझिये। जीतने वाली टीम के लिए 11 हज़ार रुपये का इनाम है। रनरअप के लिए साढ़े पांच हज़ार रुपये। टूर्नामेंट के लिए पैसा कहां से आया पूछने पर ये लड़के बताते हैं कि गांव के लोगों ने पैसे इकट्ठे किए हैं।

कमेंट्री हिन्दी में होगी। पेंदलनार टूर्नामेंट में शामिल एक टीम के कप्तान मूढ़ाराम मंडावी हमें बताते हैं।  

पेंदलनार नक्सलवाद के लिए बदनाम इलाका है। पिछले कुछ वक्त में यहां और आसपास के गांव नक्सली-पुलिस मुठभेड़, माओवादियों की धरपकड़ और कई बार फर्जी एनकाउंटर और गिरफ्तारी के लिए चर्चा में रहे हैं। आसपास के कई गांवों की ओर जाने वाली सड़के नक्सलियों ने काट दी हैं। ऐसे में क्रिकेट टूर्नामेंट के आयोजकों और खिलाड़ियों के लिए दिक्कतें हैं।

“नक्सलियों को हमारे इस टूर्नामेंट से कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन कई बार सड़कें कटी होने से टीमें समय पर मैच के लिए नहीं पहुंच पातीं। इससे काफी नुकसान होता है।” एक टीम के सदस्य तुलसी राम यादव कहते हैं। वैसे तो उम्र की कोई पाबंदी नहीं, लेकिन टूर्नामेंट में शामिल ज्यादातर खिलाड़ी 16 से 25 साल के हैं। टी-20 की तर्ज पर यहां आयोजित हो रहे इस टूर्नामेंट में हर मैच 12-12 ओवर का है। यानी टी-12 टूर्नामेंट।
 

एक खिलाड़ी लेखन ने हमें बताया कि मैच 12 ओवर का है, लेकिन यही हमारा टी-20 है। पिछले तीन साल से यहां यह टूर्नामेंट आयोजित हो रहा है। हर साल शामिल हो रहे लड़कों का कोई न कोई फेवरेट होता ही है। इस साल के फवरेट का अंदाजा लगाना कठिन नहीं है।

मेरे पूछने पर सब एक साथ चिल्लाते हैं – विराट कोहली

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

माओवाद से परेशान इन गांवों में खुशी के कुछ पल और उम्मीद की एक किरण बाकी है।