यह ख़बर 29 अगस्त, 2012 को प्रकाशित हुई थी

एनडीटीवी की जांच : कोयला आवंटन में किसे क्या मिला?

खास बातें

  • कोयला आवंटन को लेकर सीएजी की रिपोर्ट के बाद संसद में जो हंगामा हो रहा है उसमें असली सवाल खो गया है। वे कौन-सी कंपनियां हैं, किनकी कंपनियां हैं और किन−किन नेताओं के हित उनसे जुड़े हैं, जिन्हें कोयले के ये ब्लॉक मिले।
नई दिल्ली:

कोयला आवंटन को लेकर सीएजी की रिपोर्ट के बाद संसद में जो हंगामा हो रहा है उसमें असली सवाल खो गया है। वे कौन-सी कंपनियां हैं, किनकी कंपनियां हैं और किन−किन नेताओं के हित उनसे जुड़े हैं, जिन्हें कोयले के ये ब्लॉक मिले।

एनडीटीवी की टीम ने इसकी पूरी पड़ताल की और पाया कि कोयले के सौदे में सभी राजनीतिक दलों के हाथ काले हैं।  

दिल्ली के अजमेरी गेट के पास बनाई गई पुष्प स्टील एंड माइनिंग नाम की इस कंपनी ने काफी कम समय में बड़ा सफ़र तय किया। ये कंपनी 2004 में रजिस्टर हुई, सिर्फ एक लाख रुपये की पूंजी के साथ। उसी दिन इसने छत्तीसगढ़ में लौह अयस्क की खान के लिए अर्जी दी। राज्य सरकार ने उसे लीज़ दे दी। अक्तूबर 2006 में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में इसके ख़िलाफ एक केस भी हुआ, लेकिन 2007 में इसे मध्य प्रदेश में 55 मिलियन टन कोयले के ब्लॉक आवंटित कर दिए गए।

कांग्रेस का आरोप है इस कंपनी के पीछे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह हैं। यह बात छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रवक्ता शैलेश नाथ त्रिवेदी ने कही।

रमन सिंह इस आरोप से इनकार करते हैं। उल्टे इस कंपनी के पक्ष में मोतीलाल वोरा की एक चिट्ठी मिलती है। जुलाई 2007 की इस चिट्ठी में कहा गया है, 'अगर ये लीज़ दी गई तो इससे छत्तीसगढ़ के दुर्ग में रोज़गार के मौके पैदा होंगे और औद्योगिक विकास होगा, कांकेर के पिछड़े इलाकों की भी तरक्की होगी। इससे सरकारी ख़ज़ाने को भी फ़ायदा होगा। इसलिए मैं अनुरोध करता हूं कि इस लीज़ को अंतिम शक्ल देने को प्राथमिकता दी जाए जिसको लेकर राज्य सरकार काफी पहले अपनी सिफ़ारिश दे चुकी है।'

ये मामला दिल्ली हाइकोर्ट तक पहुंचा जिसने पुष्प स्टील को लीज देने पर हैरानी जताई। हाइकोर्ट ने कहा, ' ये अकल्पनीय है कि कैसे ऐसी कंपनी को पीएल (लीज़) देने के बारे में सोचा जा सकता है, जब तय पैमाने बताते हैं कि आवेदक को पहले से कुछ अनुभव होना चाहिए। कैसे एक कंपनी दिल्ली में बनने के कुछ ही घंटों के भीतर छत्तीसगढ़ में इस तरह आवेदन कर सकती है।'

अब सवाल है कि इस कंपनी के पीछे किसकी ताकत थी छत्तीसगढ़ सरकार की या कांग्रेस नेताओं की। कंपनी इस मामले में सिर्फ ये बता रही है कि छत्तीसगढ़ में वो प्लांट शुरू करने वाली है। ऐसी कंपनियां और भी हैं जिन्हें कोयला ब्लॉक मिलने पर सवाल उठाए जा सकते हैं।

इन कंपनियों में प्रकाश इंडस्ट्रीज़ भी एक है। प्रकाश इंडस्ट्रीज़ को 2003 में छत्तीसगढ़ में 34 मिलियन टन का कोल ब्लॉक आवंटित किया गया। ये कोयला खुले बाज़ार में निकालने के आरोप के बाद सीबीआई ने यहां छापे मारे। इस कंपनी के मालिक वेद प्रकाश अग्रवाल हैं जो जय प्रकाश अग्रवाल के भाई हैं। जयप्रकाश अग्रवाल के बीजेपी और आरएसएस से लिंक हैं। जयप्रकाश अग्रवाल बीजेपी की नैचुरोपैथी विंग के प्रमुख हैं।

हालांकि इस मामले में प्रकाश इंडस्ट्रीज़ ने कहा है, 'सूर्या लाइटिंग के जयप्रकाश अग्रवाल और बीजेपी की नैचुरोपैथी सेल का प्रकाश इंडस्ट्रीज़ से कोई लेना-देना नहीं है और उनके भाई से कोई कारोबारी संबंध नहीं हैं। इस बात का सवाल ही नहीं उठता कि कंपनी ने बाज़ार में बेचने के लिए अतिरिक्त कोयला निकाला। कंपनी सीबीआई के साथ पूरा सहयोग कर रही है।'

सवाल उठता है क्या प्रकाश इंडस्ट्रीज़ को फायदा पहुंचाया गया। कंपनी ने क्षमता विस्तार का दावा करते हुए भारी मात्रा में कोयला आवंटन हासिल किया, लेकिन कंपनी का कोई विस्तार दिखाया नहीं गया। 2006−08 में अतिरिक्त कोयला उत्पादन शुरू किया गया और 2006−08 में तीन अतिरिक्त कोयला ब्लॉक दिए गए।

क्या प्रकाश इंडस्ट्रीज़ ने अतिरिक्त कोयला निकाला? शिकायत के मुताबिक, 'पहले नौ महीनों में प्रकाश ने नौ लाख टन कोयला निकाला। अगले साल 10 लाख टन कोयला निकाला। इनमें से सिर्फ चार से पांच लाख टन का इस्तेमाल हुआ। फिर बाकी कोयला कहां गया?

अब बात एसकेएस इस्पात और पावर लिमिटेड की। इस कंपनी के लिए सीधे केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी। 5 फरवरी 2008 को केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री एसकेएस को दो ब्लॉक दिलाने के लिए सीधे दखल दें। प्रधानमंत्री कार्यालय ने चिट्ठी कोयला मंत्रालय को भेज दी। एक दिन बाद कोयला मंत्रालय ने छत्तीसगढ़ फतेहपुर ब्लॉक में 73 मिलियन टन कोल ब्लॉक उसे आवंटित कर दिया। प्रकाश इंडस्ट्रीज़ इसके खिलाफ़ अदालत चली गई। इसमें दावा किया कि सुबोधकांत सहाय के भाई सुधीरकांत सहाय ने स्क्रीनिंग कमिटी में कंपनी की नुमाइंदगी की।

अब तीसरी कंपनी का ज़िक्र। ये ग्रीन इन्फ्रा नाम की कंपनी है जो चयन के पैमानों पर खरी नहीं उतरी फिर भी इसे कोयला दिया गया। यहां भी साफ दिखाई पड़ता है कि इसके पीछे नेताओं की ताकत है। इस बार कांग्रेस−बीजेपी से बाहर तेलुगू देशम के तार दिख रहे हैं।

2008 में ग्रीन इन्फ्रा नाम की कंपनी को छत्तीसगढ़ में पॉवर प्लांट लगाने के लिए फतेहपुर ईस्ट कोल ब्लॉक में नौ करोड़ 90 लाख टन कोयले का आवंटन किया गया। जबकि 2008 में यह उन नौ कंपनियों से एक थी जिसे इस बिना पर ख़ारिज कर दिया गया था कि यह चयन के पैमानों पर पूरे नहीं उतरी।

अपनी अर्ज़ी में ग्रीन के दफ्तर का पता दिल्ली के सुजान सिंह पार्क में 201 गोल्फ अपार्टमेंट दिया हुआ है, लेकिन ये मकान तेलुगू देशम के पूर्व सांसद और कारोबारी एमवीवीएस मूर्ति के नाम है। अब मूर्ति ग्रीन इन्फ्रा के साथ किसी भी सम्बंध से इनकार करते हैं।

पता यह चला है कि इस कंपनी का नाम बदलकर एथेना इन्फ्रा प्रोजेक्ट्स रख दिया गया है। अब इसका दफ्तर भीकाजी कामा प्लेस में है। अब इस कंपनी के प्रमुख आलोक इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं। उनका यह कहना है कि उन्हें नहीं मालूम कि आखिर यह कंपनी टीडीपी के सांसद के घर के पते पर कैसे पंजीकृत है।

जब एनडीटीवी ने कंपनी की वेबसाइट से जानकारी ढूंढनी चाही तब पता चला कि ये कंपनी 2003 में बनी और इसके प्रोमोटर थे कार्वी फाइनेंसियल सर्विसेज़ के संस्थापक−निदेशक एमएस रामाकृष्णा। उसकी वेबसाइट पर आंध्र से लेकर अरूणाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ तक दर्जनों परियोजनाओं का ज़िक्र है।

क्या एथेना के तार जगनमोहन रेड्डी से भी जुड़े हैं? एथेना के एक बड़े अफ़सर ने तस्दीक़ की है कि 2006 से लेकर 2009 तक कंपनी के निदेशकों में एक मैट्रिक्स लैबोरेटरीज के निम्मागड्डा प्रसाद थे जो जगनमोहन रेड्डी के करीबी बताए जा रहे हैं।

टीडीपी के नेता के घर पर रजिस्टर्ड दफ्तर हो या जगनमोहन रेड्डी भ्रष्टाचार मामले से संबंध, ताज्जुब है कि इसके बावजूद इसे कोयले का आवंटन कैसे कर दिया गया।

बता दें कि बीजेपी ने मंगलवार को मांग की थी कि विवाद में पड़े कोयला आवंटन रद्द किए जाएं। मंगलवार को कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने इसे सीधे ख़ारिज कर दिया।

कोयला आवंटन को लेकर सरकार घिरी है और बीजेपी हमले पर हमले कर रही है। मंगलवार रात सुषमा स्वराज ने कहा कि इस दौर में कोयला खदानों के हुए आवंटन रद्द हों। कोयला मंत्री ने एनडीटीवी इंडिया से बात करते हुए ये मांग सीधे खारिज कर दी।

सरकार की जानी−पहचानी सफाई रही है कि सारे आवंटन का फैसला स्क्रीनिंग कमेटियों के जरिये हुआ है जिसमें राज्य सरकारों के भी नुमाइंदे रहे हैं। बीजेपी अब इसे भी दिखावा बता रही है।

बीजेपी प्रवक्ता प्रकाश जावेडकर ने कहा कि स्क्रीनिंग कमेटी का दुरुपयोग किया गया। ये एक मुखौटा था, कोल ब्लॉक आवंटन के लिए...

अब सबकी नज़र उन कंपनियों पर है जिन्हें ये लाइसेंस मिले हैं। अगला सवाल यही है क्या लाइसेंस बांटने के मामले में अलग−अलग नेताओं और दलों के खिलाफ सबूत मिल रहे हैं।

कोयला आवंटन विवाद की जांच और आंच में अफ़सर से लेकर मंत्री तक आ रहे हैं। सीबीआई का कहना है कि शुरुआती एफआईआर में भले किसी के नाम न आए लेकिन उसकी जांच के दायरे में कुछ अफ़सर और मंत्री भी शामिल हैं।

क्या पूर्व कोयला राज्य मंत्री दासारी नारायण राव की वजह से कोयले की कॉम्पिटीटिव बिडिंग नहीं हो पाई? दासारी 2004 से 2008 तक कोयला राज्यमंत्री रहे और आवंटन का काम देखते रहे। सीबीआई उस दौर के दस्तावेज़ों की जांच कर रही है।

क्योंकि सीएजी रिपोर्ट बताती है कि 16 जुलाई 2004 को कोयला सचिव पीसी पारेख ने दासारी नारायण राव को लिखा कि इस आवंटन से निजी कंपनियों को बहुत फ़ायदा हो रहा है। नीलामी से इसका कुछ हिस्सा सरकार के पास आ सकता है।

30 जुलाई को भेजे एक और नोट में कोयला सचिव ने कहा कि आवंटन का मौजूदा तरीक़ा पारदर्शी नहीं हो सकता। 20 अगस्त को कोयला मंत्रालय ने कहा कि कैबिनेट में भेजने के लिए एक ड्राफ्ट नोट तैयार किया जाए। 11 सितंबर को प्रधानमंत्री कार्यालय से एक नोट चला जिसमें नीलामी के जरिये आवंटन की कुछ कमियां बताई गईं। 25 सितंबर को कोयला सचिव ने जवाब दिया कि इन एतराज़ों में कोई दम नहीं है।

आख़िरकार 4 अक्तूबर को राज्यमंत्री ने लिखा कि नीलामी के रास्ते पर अब और विचार नहीं हो सकता क्योंकि इससे और देरी होगी।

सीबीआई ये भी देख रही है कि जिन कंपनियों को कोयले के ब्लॉक मिले उन्होंने इसे आगे कैसे बेच दिया? जबकि बाज़ार में जिन ख़दानों की क़ीमत 2000 रुपये थी वे इन कंपनियों को 100 रुपये टन के हिसाब से मिलीं। सीबीआई के मुताबिक सबसे ज्यादा गड़बड़ी पूर्वी पट्टी में हुई− ख़ासकर झारखंड और छत्तीसगढ़ के इलाकों में।

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

सीएजी रिपोर्ट जहां ख़त्म होती है सीबीआई की जांच वहां शुरू होती है। सीएजी कह रही है कोल ब्लॉक देने की नीति से नुकसान हुआ जबकि सीबीआई यह देख रही है कि इस नीति के तहत भी जो लाइसेंस दिए गए उनमें गड़बड़ी हुई है। जाहिर है इसमें राज्य सरकारों के मंत्री−अफ़सर भी फंस सकते हैं।