स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान (LCA) तेजस का नौसेना के लिए तैयार किया गया संस्करण देश का पहला ऐसा विमान बन गया है, जिसने सफलतापूर्वक 'अरेस्ट लैंडिंग' की. नौसेना में शामिल किए जाने की दिशा में यह बड़ी कामयाबी मानी जा रही है. कई भूमिकाएं निभाने में सक्षम इस लड़ाकू विमान ने टेस्ट फैसिलिटी में लैंड करते वक्त झटके से रुकने के लिए अपने फ्यूसलेज से बंधे हुक की मदद से एक तार को पकड़ा. किसी भी विमान के लिए विमानवाहक पोत पर उतरने की खातिर बेहद कम दूरी में पूरी तरह रुक जाने में सक्षम होना काफी अहम होता है. गोवा में समुद्रतट पर स्थित टेस्ट फैसिलिटी में शुक्रवार को किया गया परीक्षण उन्हीं परिस्थितियों में किया गया, जो किसी विमानवाहक पोत पर रहती हैं, और जहां विमानों को उतरने के लिए डेक पर बंधे तार को पकड़ना पड़ता है. इसी क्रिया को 'अरेस्ट लैंडिंग' कहा जाता है.
अब तक कुछ ही लड़ाकू विमान 'अरेस्ट लैंडिंग' का कारनामा कर पाते हैं, जिन्हें अमेरिका, रूस, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस और हाल ही में चीन ने विकसित किया है. गोवा में समुद्रतट पर बनी टेस्ट फैसिलिटी में इस परीक्षण का बार-बार सफल होना ही साबित करेगा कि LCA-N सबसे अहम डिज़ाइन फीचर - किसी भी विमानवाहक पोत के डेक पर 'अरेस्टेड लैंडिंग' के जबाव को यह विमान झेल सकता है - बिल्कुल सही काम कर रहा है. जब समुद्रतट पर होने वाले ये परीक्षण सफल हो जाएंगे, तभी LCA-N के प्रोटोटाइप के विकास कार्यक्रम का नेतृत्व कर रहे नौसेना पायलट अगला कदम उठा पाएंगे - यानी भारत के एकमात्र ऑपरेशनल विमानवाहक पोत INS विक्रमादित्य पर वास्तव में इसे लैंड कराया जाएगा.
LCA-N विकास टीम के जुड़े अहम सदस्यों ने NDTV से बातचीत में बताया कि उन्होंने मई-जून के दौरान गोवा टेस्ट फैसिलिटी में 60 बार उड़ान भरी है. विमान को INS विक्रमादित्य के डेक पर पहुंचाने के लिए LCA-N के इंजीनियरों और पायलटों को इस बात के प्रति आश्वस्त होना होगा कि विमान 7.5 मीटर प्रति सेकंड (1,500 फुट प्रति मिनट) के 'सिंक रेट' (नीचे आने की गति) से क्षतिग्रस्त हुए बिना पोत पर पहुंच सकता है. प्रोजेक्ट से जुड़े इंजीनियरों तथा पायलटों को भरोसा है कि वे लैंडिंग सर्टिफिकेशन के लक्ष्य को हासिल कर लेंगे. इस प्रोजेक्ट से जुड़ी एक बड़ी तकनीकी चिंता है, जो LCA-N के विकास कार्यक्रम पर असर डाल सकती है. INS विक्रमादित्य पर विमान के लैंड करते ही उसकी गति घटा देने वाला मैकेनिकल सिस्टम, यानी अरेस्टर गियर, उस अरेस्टर गियर से डिज़ाइन के लिहाज़ से काफी अलग है, जो गोवा की टेस्ट फैसिलिटी में लगा हुआ है. LCA-N प्रोजेक्ट टीम के अहम सदस्य उम्मीद कर रहे हैं कि इस अंतर से प्रोजेक्ट पर असर नहीं पड़ेगा, लेकिन आश्वस्त वे तभी हो सकेंगे, जब वास्तव में पोत पर लैंडिंग कर ली जाएगी.
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