प्रतीकात्मक तस्वीर...
नई दिल्ली:
नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद से विकास की रफ्तार तेज़ करने के लिए कोयला खनन को बढ़ाने की बात कही गई। हालांकि कहां खनन होगा और कहां नहीं होगा, इस पर सरकार ने साफ नीति घोषित नहीं की है, लेकिन NDTV इंडिया को जो दस्तावेज़ मिले हैं, उनसे पता चलता है कि घने जंगलों वाले इलाकों को खनन के लिए खोलने की तैयारी हो रही है, जिसे पिछली सरकार ने प्रतिबंधित क्षेत्र में रखा था।
सरकार की चली तो आने वाले दिनों में घने जंगलों और नदियों के आसपास बसे कोयला भंडारों के खनन पर लगी रोक हट जाएगी। कोयला मंत्रालय ने पर्यावरण मंत्रालय को जो प्रस्ताव भेजा है, उससे यही पता चलता है।
सूचना के अधिकार से मिले दस्तावेज बताते हैं कि पिछले साल फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया ने पर्यावरण मंत्रालय को पिछले साल 10 जुलाई को एक चिट्ठी लिखी। इसमें कुल 466 कोल बलॉक ऐसे बताए गए, जहां खनन नहीं होना चाहिए या शर्तों के तहत बहुत सीमित माइनिंग होनी चाहिए। इनमें से 417 कोल ब्लॉक में खनन पर प्रतिबंध नदियों को खत्म होने से बचाने के लिए था।
दस्तावेज बताते हैं कि इसके बाद कोयला मंत्रालय ने पर्यावरण मंत्रालय को चिट्ठी लिखी। ये चिट्ठी 22 जुलाई को कोयला सचिव अनिल स्वरूप की ओर से तत्कालीन पर्यावरण सचिव अशोक लवासा को भेजी गई। इसमें खनन प्रतिबंधित नो गो ज़ोन में आने वाले कोयला ब्लॉक्स की संख्या काफी करने के सुझाव दिए गए हैं।
कोयला सचिव की इस चिट्ठी के अलावा कोल इंडिया के तहत काम करने वाले सेंट्रल माइन प्लानिंग एंड डिज़ाइन इंस्टिट्यूट (सीएमपीडीआई) ने पर्यावरण मंत्रालय को चिट्ठी लिखी और सुझाव दिए। इसमें कहा गया कि जिस कोल ब्लॉक में भी माइनिंग हो रही है उसे नो गो ज़ोन से बाहर रखा जाए। 256 कोल ब्लॉक्स की सीमा नए सिरे से तय की जाए। सीएमपीडीआई ने नदियों के पास और वेटलैंड क्षेत्र में आने वाली कई खदानों में खनन की छूट देने को कहा।
कोयला मंत्रालय और सीएमपीडीआई नियमों में जो ढिलाई मांग रहा है, उसके बाद अभी की संख्या 466 की जगह केवल 81 कोल ब्लॉ़क ही खनन गतिविधियों से बाहर रखे जाएंगे। गौर करने की बात ये है कि घने जंगलों और नदियों को बचाने का वास्ता देकर गो औऱ नो गो की नीति पिछली यूपीए सरकार के वक्त लाई गई, जिसे लेकर काफी विवाद होता रहा। सत्ता में आने से पहले बीजेपी इस मामले में साफ नीति बनाने की बात करती रही है, लेकिन सरकार के दो साल पूरा होने के बाद भी अभी तक कोई आधिकारिक घोषित नीति नहीं है।
मौजूदा पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर भी कहते रहे हैं कि नो गो और गो ज़ोन के लिए नीति सही वक्त में घोषित की जाएगी और शब्दावली इस तरह की नहीं होगी। ऐसे में इसे कोयला खनन के लिए वन सम्पदा और जैव विविधता से भरे इलाकों में गंभीर संकट मंडरा रहा है।
सरकार की चली तो आने वाले दिनों में घने जंगलों और नदियों के आसपास बसे कोयला भंडारों के खनन पर लगी रोक हट जाएगी। कोयला मंत्रालय ने पर्यावरण मंत्रालय को जो प्रस्ताव भेजा है, उससे यही पता चलता है।
सूचना के अधिकार से मिले दस्तावेज बताते हैं कि पिछले साल फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया ने पर्यावरण मंत्रालय को पिछले साल 10 जुलाई को एक चिट्ठी लिखी। इसमें कुल 466 कोल बलॉक ऐसे बताए गए, जहां खनन नहीं होना चाहिए या शर्तों के तहत बहुत सीमित माइनिंग होनी चाहिए। इनमें से 417 कोल ब्लॉक में खनन पर प्रतिबंध नदियों को खत्म होने से बचाने के लिए था।
दस्तावेज बताते हैं कि इसके बाद कोयला मंत्रालय ने पर्यावरण मंत्रालय को चिट्ठी लिखी। ये चिट्ठी 22 जुलाई को कोयला सचिव अनिल स्वरूप की ओर से तत्कालीन पर्यावरण सचिव अशोक लवासा को भेजी गई। इसमें खनन प्रतिबंधित नो गो ज़ोन में आने वाले कोयला ब्लॉक्स की संख्या काफी करने के सुझाव दिए गए हैं।
कोयला सचिव की इस चिट्ठी के अलावा कोल इंडिया के तहत काम करने वाले सेंट्रल माइन प्लानिंग एंड डिज़ाइन इंस्टिट्यूट (सीएमपीडीआई) ने पर्यावरण मंत्रालय को चिट्ठी लिखी और सुझाव दिए। इसमें कहा गया कि जिस कोल ब्लॉक में भी माइनिंग हो रही है उसे नो गो ज़ोन से बाहर रखा जाए। 256 कोल ब्लॉक्स की सीमा नए सिरे से तय की जाए। सीएमपीडीआई ने नदियों के पास और वेटलैंड क्षेत्र में आने वाली कई खदानों में खनन की छूट देने को कहा।
कोयला मंत्रालय और सीएमपीडीआई नियमों में जो ढिलाई मांग रहा है, उसके बाद अभी की संख्या 466 की जगह केवल 81 कोल ब्लॉ़क ही खनन गतिविधियों से बाहर रखे जाएंगे। गौर करने की बात ये है कि घने जंगलों और नदियों को बचाने का वास्ता देकर गो औऱ नो गो की नीति पिछली यूपीए सरकार के वक्त लाई गई, जिसे लेकर काफी विवाद होता रहा। सत्ता में आने से पहले बीजेपी इस मामले में साफ नीति बनाने की बात करती रही है, लेकिन सरकार के दो साल पूरा होने के बाद भी अभी तक कोई आधिकारिक घोषित नीति नहीं है।
मौजूदा पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर भी कहते रहे हैं कि नो गो और गो ज़ोन के लिए नीति सही वक्त में घोषित की जाएगी और शब्दावली इस तरह की नहीं होगी। ऐसे में इसे कोयला खनन के लिए वन सम्पदा और जैव विविधता से भरे इलाकों में गंभीर संकट मंडरा रहा है।
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