नई दिल्ली:
भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने ऐलान किया है कि साढ़े चौदह साल की उम्र से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से शुरू होकर जनसंघ और भाजपा से गुजरती हुई उनकी राजनीतिक यात्रा अभी समाप्त नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि उस उम्र से अब तक केवल एक कर्तव्य ने उनके जीवन के उद्देश्य को परिभाषित किया है और वह है मातृभूमि की सेवा करना।
आडवाणी ने कहा कि 55 वर्ष की इस राजनीतिक यात्रा में मैं विनम्रता और संतोष दोनों के साथ यह बात कह सकता हूं कि अपने जमीर को लेकर अपनी आंखों में मैंने कोई सवाल नहीं पाया।
पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना को सेकुलर बताए जाने की अपनी बात पर आज भी कायम रहते हुए उन्होंने अपने नए ब्लॉग में लिखा, पाकिस्तान यात्रा के दौरान मुझे गलत समझा गया और अपनी विचारधारा के साथ विश्वासघात करने का मुझ पर आरोप लगाया गया। मैं अपनी अंतरात्मा की आवाज पर दृढ़ खड़ा रहा। इससे मेरा आत्मविश्वास दृढ़ होने के साथ इसने मुझे खुशी दी और जीवन को अर्थ दिया।
उन्होंने कहा, मैंने निर्णयों में कई त्रुटियां कीं। मैंने कई कार्यों के निष्पादन में भी गलतियां कीं। लेकिन मैं कभी भी स्वयं को बढ़ाने के लिए षडयंत्रकारी या अवसरवादी कृत्यों में लिप्त नहीं हुआ। न ही अपनी व्यक्तिगत सहूलियत या लाभ के लिए अपने मूल सिद्धांतों से समझौता किया। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार रहे आडवाणी ने आगे लिखा, कई जोखिम उठाते हुए भी मैं अपने आत्मसम्मान और राष्ट्र के हितों के प्रति अपने विश्वास को लेकर अपनी जमीन पर खड़ा रहा।
आडवाणी ने दार्शनिक होते हुए कहा कि सभी नाखुश लोग एक जैसे होते हैं। कुछ घाव पुराने होते हैं, कुछ इच्छाएं पूरी नहीं होतीं, कुछ सम्मान पर चोट पहुंचाते हैं...लेकिन खुश आदमी पीछे मुडकर नहीं देखता और न ही वह आगे देखता है। वह केवल वर्तमान में जीता है।
उन्होंने कहा, लेकिन एक परेशानी है। वर्तमान एक चीज कभी नहीं दे सकता और वह है अभिप्राय। खुशी के तरीके और अभिप्राय एक जैसे नहीं होते। खुशी खोजने के लिए आदमी को केवल वर्तमान में जीने की आवश्यकता है। उसे केवल इस पल में जीने की जरूरत है। लेकिन यदि वह अभिप्राय चाहता है, तो उसके सपनों, गोपनीयता, जीवन के अभिप्राय...आदमी को भूतकाल में झांकना होगा, भले ही वह कितना अंधेरा भरा क्यों न हो और उसे भविष्य के लिए जीना होगा, भले ही वह कितना ही अनिश्चित क्यों न हो। मैंने अपने लिए अभिप्राय चुना और यही बात मैं अपनी किताब में भी कही है।
आडवाणी ने कहा कि वह जब आठ दशक के जीवनकाल को देखते हैं, तो याद आता है कि वह खुद को हैदराबाद (सिंध प्रांत) के एक टेनिस कोर्ट में खड़ा पाते हैं, जहां उन्होंने पहली बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम सुना था और वह स्वयंसेवक बन गए।
उन्होंने कहा कि जब वह रविवार की शाम को कराची के रामकृष्ण मिशन में संघ की शाखाओं में जाना शुरू किया, तो उन्हें स्वामी रंगनाथ नंदा से भगवद्गीता का पाठ सुना। मैंने अभिप्राय तब जाना, जब मैंने घर परिवार छोड़ा और संघ के प्रचारक के रूप में काम शुरू किया। पहले कराची में और बाद में राजस्थान में। जब मैंने 55 साल पहले राजनीतिक यात्रा शुरू की, तो यह अभिप्राय और समृद्ध हुआ। पहले भारतीय जनसंघ और बाद में भाजपा के कार्यकर्ता के रूप में। यह ऐसी यात्रा है, जो अब तक खत्म नहीं हुई है।
आडवाणी ने कहा कि 55 वर्ष की इस राजनीतिक यात्रा में मैं विनम्रता और संतोष दोनों के साथ यह बात कह सकता हूं कि अपने जमीर को लेकर अपनी आंखों में मैंने कोई सवाल नहीं पाया।
पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना को सेकुलर बताए जाने की अपनी बात पर आज भी कायम रहते हुए उन्होंने अपने नए ब्लॉग में लिखा, पाकिस्तान यात्रा के दौरान मुझे गलत समझा गया और अपनी विचारधारा के साथ विश्वासघात करने का मुझ पर आरोप लगाया गया। मैं अपनी अंतरात्मा की आवाज पर दृढ़ खड़ा रहा। इससे मेरा आत्मविश्वास दृढ़ होने के साथ इसने मुझे खुशी दी और जीवन को अर्थ दिया।
उन्होंने कहा, मैंने निर्णयों में कई त्रुटियां कीं। मैंने कई कार्यों के निष्पादन में भी गलतियां कीं। लेकिन मैं कभी भी स्वयं को बढ़ाने के लिए षडयंत्रकारी या अवसरवादी कृत्यों में लिप्त नहीं हुआ। न ही अपनी व्यक्तिगत सहूलियत या लाभ के लिए अपने मूल सिद्धांतों से समझौता किया। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार रहे आडवाणी ने आगे लिखा, कई जोखिम उठाते हुए भी मैं अपने आत्मसम्मान और राष्ट्र के हितों के प्रति अपने विश्वास को लेकर अपनी जमीन पर खड़ा रहा।
आडवाणी ने दार्शनिक होते हुए कहा कि सभी नाखुश लोग एक जैसे होते हैं। कुछ घाव पुराने होते हैं, कुछ इच्छाएं पूरी नहीं होतीं, कुछ सम्मान पर चोट पहुंचाते हैं...लेकिन खुश आदमी पीछे मुडकर नहीं देखता और न ही वह आगे देखता है। वह केवल वर्तमान में जीता है।
उन्होंने कहा, लेकिन एक परेशानी है। वर्तमान एक चीज कभी नहीं दे सकता और वह है अभिप्राय। खुशी के तरीके और अभिप्राय एक जैसे नहीं होते। खुशी खोजने के लिए आदमी को केवल वर्तमान में जीने की आवश्यकता है। उसे केवल इस पल में जीने की जरूरत है। लेकिन यदि वह अभिप्राय चाहता है, तो उसके सपनों, गोपनीयता, जीवन के अभिप्राय...आदमी को भूतकाल में झांकना होगा, भले ही वह कितना अंधेरा भरा क्यों न हो और उसे भविष्य के लिए जीना होगा, भले ही वह कितना ही अनिश्चित क्यों न हो। मैंने अपने लिए अभिप्राय चुना और यही बात मैं अपनी किताब में भी कही है।
आडवाणी ने कहा कि वह जब आठ दशक के जीवनकाल को देखते हैं, तो याद आता है कि वह खुद को हैदराबाद (सिंध प्रांत) के एक टेनिस कोर्ट में खड़ा पाते हैं, जहां उन्होंने पहली बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम सुना था और वह स्वयंसेवक बन गए।
उन्होंने कहा कि जब वह रविवार की शाम को कराची के रामकृष्ण मिशन में संघ की शाखाओं में जाना शुरू किया, तो उन्हें स्वामी रंगनाथ नंदा से भगवद्गीता का पाठ सुना। मैंने अभिप्राय तब जाना, जब मैंने घर परिवार छोड़ा और संघ के प्रचारक के रूप में काम शुरू किया। पहले कराची में और बाद में राजस्थान में। जब मैंने 55 साल पहले राजनीतिक यात्रा शुरू की, तो यह अभिप्राय और समृद्ध हुआ। पहले भारतीय जनसंघ और बाद में भाजपा के कार्यकर्ता के रूप में। यह ऐसी यात्रा है, जो अब तक खत्म नहीं हुई है।
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