नई दिल्ली:
मुजफ्फरनगर में सांप्रदायिक दंगों के पीछे कुछ कारणों में कवाल गांव के बाहर हजारों की संख्या में हिन्दू जाट किसानों का एकत्र होना भी है। कहा जा रहा था कि कवाल गांव में एक मुस्लिम युवक को छेड़खानी के आरोप में मारने वाले दो जाट भाइयों की भी हत्या एक घंटे के भीतर कर दी गई थी। गांव वालों ने इसी गांव में दोनों भाइयों को पीट-पीटकर मार डाला था।
तीन हत्याओं के बाद स्थानीय अधिकारियों ने इस इलाके में लोगों के एकत्र होने पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन नेताओं ने इस इलाके में हिन्दू-मुस्लिम के बीच खाई पैदा करने के लिए रैलियां कीं।
7 सितंबर को आयोजित महापंचायत का एक वीडियो एनडीटीवी के हाथ लगा है। इस वीडियो में भाजपा के विधायक भीड़ का नेतृत्व करते दिख रहे हैं। कहा जा रहा है कि इस भीड़ में मौजूद लोगों के हाथ में तलवारें और बंदूकें थीं।
इन चार नेताओं पर दंगा भड़काने का आरोप लगा है और पुलिस ने अभी तक इन लोगों को गिरफ्तार नहीं किया है।
इस भीड़ में भाजपा के विधायक दल के नेता हुकुम सिंह, विधायक संगीत सोम और विधायक सुरेश राणा दिख दे रहे हैं।
वीडियो में हुकुम सिंह जनता से कह रहे हैं कि पहले अल्पसंख्यकों द्वारा किए गए अत्याचारों पर प्रशासन ने कोई जांच नहीं की और न ही किसी को सजा दिलवाई। उन्होंने बाद में स्थानीय पत्रकारों से कहा कि यह आयोजन हिन्दू एकता पर केंद्रित था।
भीड़ को संबोधित करते हुए सिंह ने कहा कि हिन्दुओं के साथ पिछले एक-डेढ़ साल से भेदभाव हो रहा है। शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। उन्हें परेशान किया जा रहा है, उनकी लड़कियों को परेशान किया जा रहा है।
फुटेज में यह भी देखा जा सकता है कि उग्र भीड़ जाने से पहले भड़काऊ नारे लगा रही थी। कहा जा रहा है कि जब यह उग्र भीड़ मुस्लिम गांव के पास से गुजरी तभी दंगा भड़का। इसके अगले 48 घंटों में करीब 50 लोगों की मौत हो गई।
दूसरी तरफ, दूसरे दलों के नेता ने भी आग में घी डालने का काम किया। शुक्रवार को जुम्मे की नमाज के बाद 30 अगस्त को धार्मिक नेताओं और राजनीतिक नेताओं द्वारा के सभा का आयोजन किया गया।
यहां पर करीब दो हजार की संख्या में मुस्लिम युवा एकत्र हुए। पुलिस के अनुसार, कांग्रेसी नेता और बसपा नेताओं ने यहां पर भड़काऊ भाषण दिया। बसपा के नेताओं में कदन राणा और जमील अहमद का नाम शामिल है, वहीं, कांग्रेस के सईद-उज-जमन शामिल थे। पुलिस ने अपने केस में इनका भी नाम लिया। ये नेतागण भी फिलहाल गिरफ्तार नहीं किए गए हैं।
तीन हत्याओं के बाद स्थानीय अधिकारियों ने इस इलाके में लोगों के एकत्र होने पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन नेताओं ने इस इलाके में हिन्दू-मुस्लिम के बीच खाई पैदा करने के लिए रैलियां कीं।
7 सितंबर को आयोजित महापंचायत का एक वीडियो एनडीटीवी के हाथ लगा है। इस वीडियो में भाजपा के विधायक भीड़ का नेतृत्व करते दिख रहे हैं। कहा जा रहा है कि इस भीड़ में मौजूद लोगों के हाथ में तलवारें और बंदूकें थीं।
इन चार नेताओं पर दंगा भड़काने का आरोप लगा है और पुलिस ने अभी तक इन लोगों को गिरफ्तार नहीं किया है।
इस भीड़ में भाजपा के विधायक दल के नेता हुकुम सिंह, विधायक संगीत सोम और विधायक सुरेश राणा दिख दे रहे हैं।
वीडियो में हुकुम सिंह जनता से कह रहे हैं कि पहले अल्पसंख्यकों द्वारा किए गए अत्याचारों पर प्रशासन ने कोई जांच नहीं की और न ही किसी को सजा दिलवाई। उन्होंने बाद में स्थानीय पत्रकारों से कहा कि यह आयोजन हिन्दू एकता पर केंद्रित था।
भीड़ को संबोधित करते हुए सिंह ने कहा कि हिन्दुओं के साथ पिछले एक-डेढ़ साल से भेदभाव हो रहा है। शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। उन्हें परेशान किया जा रहा है, उनकी लड़कियों को परेशान किया जा रहा है।
फुटेज में यह भी देखा जा सकता है कि उग्र भीड़ जाने से पहले भड़काऊ नारे लगा रही थी। कहा जा रहा है कि जब यह उग्र भीड़ मुस्लिम गांव के पास से गुजरी तभी दंगा भड़का। इसके अगले 48 घंटों में करीब 50 लोगों की मौत हो गई।
दूसरी तरफ, दूसरे दलों के नेता ने भी आग में घी डालने का काम किया। शुक्रवार को जुम्मे की नमाज के बाद 30 अगस्त को धार्मिक नेताओं और राजनीतिक नेताओं द्वारा के सभा का आयोजन किया गया।
यहां पर करीब दो हजार की संख्या में मुस्लिम युवा एकत्र हुए। पुलिस के अनुसार, कांग्रेसी नेता और बसपा नेताओं ने यहां पर भड़काऊ भाषण दिया। बसपा के नेताओं में कदन राणा और जमील अहमद का नाम शामिल है, वहीं, कांग्रेस के सईद-उज-जमन शामिल थे। पुलिस ने अपने केस में इनका भी नाम लिया। ये नेतागण भी फिलहाल गिरफ्तार नहीं किए गए हैं।
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