महाराष्ट्र में आरटीओ मतलब रीजनल ट्रांसपोर्ट ऑफ़िस से शोर ग़ायब है। सोमवार को एनडीटीवी ने आरटीओ दफ्तर देखे तो पंजीकरण, भुगतान की खिड़कियों पर क़तारें नहीं थीं और महज़ तीस आवेदक अपने टेस्ट का इंतज़ार करते दिखे। आमतौर पर यहां किसी भी वक़्त सैंकड़ों की भीड़ होती थी, जिनमें ज्यादातर आरटीओ एजेंट कहलाते बिचौलिए होते थे, जिन्हें आरटीओ ने निकाल बाहर किया है।
इसका असर न सिर्फ़ कम होती कतारों में महसूस हो रहा है, बल्कि कई लोग काग़ज़ी खानापूर्ती की आसानी से परिचित हो रहे हैं। एनडीटीवी जिन लाइसेंस आवेदकों से मिला, उनमें से कुछ इस बात के लिए हैरान थे कि जिस लाइसेंस को कभी दो हज़ार रुपये का कमिशन दे कर बनवाया था, वह इतनी आसानी से मिल गया। कुछ ने लंबे समय की शिकायत की, लेकिन कम भीड़ के चलते उनका भी काम आसान रहा।
इस बदलाव को अमल में लाते महाराष्ट्र के ट्रांसपोर्ट कमिश्नर महेश झगडे ने एनडीटीवी से कहा, 'लोग लाइसेंस को एक उपलब्धि की तरह नहीं, अधिकार की तरह मानते हैं और उसे पाने के लिए परिश्रम या सावधानी नहीं दिखाते। महाराष्ट्र में हर महीने क़रीब 1000 मौतें सड़क हादसों से होती, जिनमें से 70-80 प्रतिशत मामले लापरवाह चालकों के कारण होते हैं। इसके साथ ही कमिशन प्रणाली में एजेंट के साथ आरटीओ के अधिकारियों तक का आर्थिक हिस्सा बनता था और यह भ्रष्टाचार का बड़ा स्रोत है।'
जो लाइसेंस कड़ी ड्राइविंग टेस्ट और 400 रुपये की फ़ीस पर जारी होना चाहिए, उस लाइसेंस को वाहन के हिसाब से 2000 से 4000 रुपये में एजेंट दिलवाते थे और इसमें टेस्ट महज़ औपचारिकता होती थी। साथ ही एजेंट-अधिकारियों की सांठगांठ में अधिकारी महज़ फ़ाइलों पर दस्तख़त करते और लाइसेन्स प्रक्रिया में दक्षता या पारदर्शिता नहीं होती थी।
महाराष्ट्र में अब आपको लाइसेंस बनवाना है तो कमिशन से पांच गुना सस्ती फ़ीस पर ही आप लाइसेंस बनवा सकेंगे। शायद आपको थोड़ी फुर्सत निकाल कर ये लाइसेंस बनवाना पड़ेगा, लेकिन प्रशासन को उम्मीद है कि इस कदम के बाद सबसे भ्रष्ट सरकारी महकमों में से एक में पारदर्शिता होगी। उम्मीद यही है, कि यह गंभीरता फ़ौरी नहीं होगी।
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