यह ख़बर 22 जुलाई, 2013 को प्रकाशित हुई थी

‘हिंदू राष्ट्रवादी’ पर मोदी को दिया जाना चाहिए संदेह का लाभ : हबीबुल्ला

खास बातें

  • राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष वजाहत हबीबुल्ला ने मोदी के बयान पर कहा कि मेरे खयाल से मोदी जी की अंग्रेजी उतनी अच्छी नहीं है, उनकी हिंदी अच्छी है। शायद इसी वजह से शब्दों के इस्तेमाल में गलती हुई होगी।
नई दिल्ली:

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष वजाहत हबीबुल्ला ने नरेंद्र मोदी के ‘हिंदू राष्ट्रवादी’ वाले बयान को लेकर हाल ही में खड़े हुए विवाद पर उनका बचाव करते हुए कहा है कि इस मामले में गुजरात के मुख्यमंत्री को ‘संदेह का लाभ’ दिया जाना चाहिए।

हबीबुल्ला ने एक साक्षात्कार में ‘हिंदू राष्ट्रवादी’ वाले मोदी के बयान पर कहा, ‘‘मेरे खयाल से मोदी जी की अंग्रेजी उतनी अच्छी नहीं है, उनकी हिंदी अच्छी है। शायद इसी वजह से शब्दों के इस्तेमाल में गलती हुई होगी। इस मामले पर उन्हें संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए।’’

उन्होंने हालांकि ‘हिंदू राष्ट्रवादी’ को ‘हिंदू राष्ट्र’ की परिकल्पना से जोड़ते हुए कहा, ‘‘देखिए, यहां अंग्रेजी की बात है। दो शब्द हैं ‘हिंदू एंड नेशनलिस्ट’ (हिंदू और राष्ट्रवादी) तथा ‘हिंदू नेशनलिस्ट’ (हिंदू राष्ट्रवादी)। जब मुस्लिम राष्ट्रवादी की बात करते हैं तो इसका मतलब ‘मुस्लिम राष्ट्र’ से होता है। इसी तरह हिंदू राष्ट्रवादी का मतलब ‘हिंदू राष्ट्र’ से है। वैसे इस बारे में मोदी से पूछा जाना चाहिए।’’

पिछले दिनों समाचार एजेंसी ‘रॉयटर्स’ को दिए साक्षात्कार में गुजरात के मुख्यमंत्री ने ‘हिंदू राष्ट्रवादी’ होने को लेकर पूछे गए एक सवाल पर कहा था, ‘मैं राष्ट्रवादी हूं। देशभक्त हूं। मैं हिंदू के रूप में पैदा हुआ हूं। इसलिए आप कह सकते हैं कि मैं हिंदू राष्ट्रवादी हूं।’ उनके इस बयान को लेकर विरोधी दलों और बुद्धिजीवियों के एक धड़े ने उनकी जमकर आलोचना की। कुछ लोगों ने इसे उनकी अल्पसंख्यक विरोध की कथित छवि से जोड़कर देखा।

हबीबुल्ला से यह पूछे जाने पर कि मोदी द्वारा ‘हिंदू राष्ट्रवादी’ कहने का मतलब अल्पसंख्यक विरोध का भाव प्रकट करना था तो उन्होंने कहा, ‘‘मेरे खयाल से यह गलतफहमी है। मैंने मोदी का वह साक्षात्कार देखा है। उन्होंने कहा कि मैं हिंदू हूं और राष्ट्रवादी हूं। यह अच्छी बात है। मैं भी कह सकता हूं कि मैं मुस्लिम हूं और राष्ट्रवादी हूं।’’

धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में हबीबुल्ला ने कहा, ‘‘धर्मनिरपेक्षता को लेकर बहुत बहस हो रही है। पूरी दुनिया में खासकर पश्चिमी देशों में धर्मनिरपेक्षता का मतलब किसी धर्म या समुदाय से नहीं होता है। हमारे यहां ऐसा नहीं है। यहां इसका मतलब सभी धर्मों को समानता देने से है।’’

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उन्होंने कहा, ‘‘ऐसी स्थिति में हमारी सरकार का यह फर्ज बन जाता है कि अगर कोई नीति, नजरिया या काम किसी अल्पंसख्यक समुदाय के खिलाफ जाता है तो वह उसे दुरुस्त करे।’’