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This Article is From Jul 24, 2018

मॉब लिंचिंग : विपक्ष ने सरकार की उच्च स्तरीय समिति को बेमानी करार दिया

संसद में फिर गौरक्षा के नाम पर हो रही हत्याओं का मुद्दा उठा, सरकार पर संजीदगी से पहल नहीं करने का आरोप लगा

मॉब लिंचिंग : विपक्ष ने सरकार की उच्च स्तरीय समिति को बेमानी करार दिया
संसद भवन.
Quick Take
Summary is AI generated, newsroom reviewed.
कांग्रेस ने कहा, सुप्रीम कोर्ट के किसी जज की अध्यक्षता में हो जांच
तृणमूल कांग्रेस का सुझाव- गृह मंत्री राज्य सरकारों को चिट्ठी लिखें
मुद्दे के राजनीतिक पहलू की तरफ़ सीपीएम ने ध्यान खींचा
नई दिल्ली: संसद में आज फिर गौरक्षा के नाम पर हो रही हत्याओं का मुद्दा उठा. विपक्ष ने सरकार की हाई लेवल कमेटी को बेमानी करार दिया. उसका आरोप है, सरकार इस मुद्दे पर संजीदगी से पहल नहीं कर रही.

मंगलवार को स्पीकर सुमित्रा महाजन के एतराज़ के बावजूद लोकसभा में भीड़ की हिंसा के मुद्दे पर हंगामा हुआ. विपक्ष ने कहा कि सरकार की हाई लेवल कमेटी बेमानी है. सुप्रीम कोर्ट के किसी जज की अध्यक्षता में अलवर की मॉब लिंचिंग की जांच हो. कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि मॉब लिंचिंग की घटनाओं की सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा जज से जांच कराई जाए और उनकी जांच रिपोर्ट के आधार पर दोषियों के खिलाफ सख्ती से कार्रवाई की जाए.

तृणमूल कांग्रेस का सुझाव है कि गृह मंत्री राज्य सरकारों को इस मसले पर चिट्ठी लिखें क्योंकि कानून व्यवस्था राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आता है. सुखेन्दू शेख राय ने कहा कि गृह मंत्री को सभी मुख्यमंत्रियों से सलाह लेकर इस मसले पर आगे की रणनीति तय करनी चाहिए.

लेकिन इस बहस के राजनीतिक पहलू की तरफ़ सीपीएम ने ध्यान खींचा. पार्टी के सांसद मोहम्मद सलीम ने कहा कि सख़्त कार्रवाई की बात करने वाली सरकार के मंत्री मॉब लिंचिंग के गुनहगारों को माला पहनाते हैं. जबकि गृह मंत्री राजनाथ सिंह को फिर 84 की लिंचिंग याद आई. राजनाथ सिंह ने कहा कि 1984 के दंगे सबसे बड़ी मॉब लिंचिंग की घटना थी और ऐसे मामलों का राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए.

इधर संसद से बाहर मायावती ने मॉब लिंचिंग के लिए बीजेपी को ज़िम्मेदार ठहराया. मायावती ने कहा कि उन्हें विश्वास नहीं है कि राज्य सरकार इस मामले के दोषियों के खिलाफ सख्ती से कार्रवाई करेगी और अब इस केस का संज्ञान अदालतों को खुद लेना चाहिए.  

ज़ाहिर है अलवर की मॉब लिंचिग की घटना के बाद गौरक्षा के नाम पर हिंसा अब एक बड़ा राष्ट्रीय मुद्दा बन गया है और जिस तरह से इस मसले पर आरोप-प्रत्यारोप हो रहा है उससे साफ है कि इसका एक कानूनी पहलू भी है और एक राजनीतिक पहलू भी.

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