गुवाहाटी:
अपने गांव में हो रहे मिट्टी के कटाव को रोकने की कोशिश में एक शख्स द्वारा शुरू किए गए पेड़ लगाने के काम से अब असम में 1300 एकड़ जमीन हरियाली से भर चुकी है। जयदेव पेयंग नाम के इस शख्स ने साल 1979 में पेड़ लगाने की शुरुआत की थी और उन्होंने राजधानी गुवाहाटी से 350 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मोलाई जंगल के ज्यादातर पेड़ खुद अपने हाथों से लगाए हैं।
वन संरक्षण में अपने योगदान के लिए इस साल पद्म श्री सम्मान से नवाजा गए पेयंग कहते हैं, 'अगर हर भारतीय कम-से-कम एक पेड़ भी लगाता है तो देश को हमेशा-हमेशा के लिए वायु प्रदूषण से मुक्ति मिल सकती है। हमारे गांव को देखिये, यहां वायु की गुणवत्ता बेहद अच्छी है और कोई प्रदुषण नहीं।'
'भारत का फॉरेस्ट मैन' के नाम से भी पहचाने जाने वाले पेयंग ने बह्मपुत्र नदी के चारों ओर फैली 1360 एकड़ बंजर जमीन को एक अभ्यारण्य की शक्ल दे दी है। जोरहट इलाके में बने इस जंगल में अभी बंगाल टाइगर और भारतीय गैंडों के साथ-साथ सैकड़ों अन्य प्रजातियों के जानवर रहते हैं।
उनके करीबी सहयोगी देबान डोले, जिन्होंने पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से जयदेव पेयंग के साथ मिलकर काम किया है, कहते हैं कि आस-पास के इलाके के लोगों को जो साफ हवा मिल रही है उसका पूरा श्रेय पेयंग को जाता है। दोबान दोले कहते हैं कि पेयंग को पद्म श्री पुरस्कार दिए जाने से इस इलाके के लोगों में खुशी का माहौल है।
जयदेव पेयंग की कोशिशों का ही नतीजा है कि स्थानीय लोगों को साफ और सेहतमंद हवा मुहैया हो रही है। उनके लगाए जंगल में 700 एकड़ में लगा बांस का जंगल भी शामिल है। हालांकि इतनी दिलचस्प उपलब्धि के बाद भी जयदेव पेयंग का लक्ष्य अभी पूरा नहीं हुआ है। वह और भी कई पेड़ लगाना चाहते हैं।
जयदेव पेयंग स्थानीय मिशिंग कबीले से ताल्लुक रखते हैं। जंगल के बीच में बनी एक छोटी झोपड़ी में वह अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ रहते हैं।
ऐसे समय में जब जंगल खत्म होते जा रहे हैं, असम के इस छोटे से गांव में रहने वाले जयदेव पेयंग की इस कोशिश ने यह सुनिश्चित किया है असम का भविष्य सुरक्षित हाथों में हैं।
वन संरक्षण में अपने योगदान के लिए इस साल पद्म श्री सम्मान से नवाजा गए पेयंग कहते हैं, 'अगर हर भारतीय कम-से-कम एक पेड़ भी लगाता है तो देश को हमेशा-हमेशा के लिए वायु प्रदूषण से मुक्ति मिल सकती है। हमारे गांव को देखिये, यहां वायु की गुणवत्ता बेहद अच्छी है और कोई प्रदुषण नहीं।'
'भारत का फॉरेस्ट मैन' के नाम से भी पहचाने जाने वाले पेयंग ने बह्मपुत्र नदी के चारों ओर फैली 1360 एकड़ बंजर जमीन को एक अभ्यारण्य की शक्ल दे दी है। जोरहट इलाके में बने इस जंगल में अभी बंगाल टाइगर और भारतीय गैंडों के साथ-साथ सैकड़ों अन्य प्रजातियों के जानवर रहते हैं।
उनके करीबी सहयोगी देबान डोले, जिन्होंने पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से जयदेव पेयंग के साथ मिलकर काम किया है, कहते हैं कि आस-पास के इलाके के लोगों को जो साफ हवा मिल रही है उसका पूरा श्रेय पेयंग को जाता है। दोबान दोले कहते हैं कि पेयंग को पद्म श्री पुरस्कार दिए जाने से इस इलाके के लोगों में खुशी का माहौल है।
जयदेव पेयंग की कोशिशों का ही नतीजा है कि स्थानीय लोगों को साफ और सेहतमंद हवा मुहैया हो रही है। उनके लगाए जंगल में 700 एकड़ में लगा बांस का जंगल भी शामिल है। हालांकि इतनी दिलचस्प उपलब्धि के बाद भी जयदेव पेयंग का लक्ष्य अभी पूरा नहीं हुआ है। वह और भी कई पेड़ लगाना चाहते हैं।
जयदेव पेयंग स्थानीय मिशिंग कबीले से ताल्लुक रखते हैं। जंगल के बीच में बनी एक छोटी झोपड़ी में वह अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ रहते हैं।
ऐसे समय में जब जंगल खत्म होते जा रहे हैं, असम के इस छोटे से गांव में रहने वाले जयदेव पेयंग की इस कोशिश ने यह सुनिश्चित किया है असम का भविष्य सुरक्षित हाथों में हैं।
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