महाराष्ट्र लोकलेखा समिति ने लिंग जांच परिक्षण की वकालत की है (प्रतीकात्मक चित्र)
मुंबई:
महाराष्ट्र विधिमंडल की लोकलेखा समिति ने महिला भ्रूण हत्या रोकने के लिए दिए प्रस्ताव ने नया बवाल पैदा कर दिया है. समिति को लगता है कि लिंग परीक्षण अनिवार्य किया जाए, ताकि लड़कियां बचाईं जा सकें.
पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की कम होती जन्मदर को बढ़ाने पर महाराष्ट्र विधानमंडल की लोकलेखा समिति ने चिंता जताते हुए सुझाव दिया है कि माता-पिता को सोनोग्राफी के जरीए आने पर गर्भ का लिंग परीक्षण अनिवार्य किया जाए. गर्भ अगर लड़की का हो तो परिवार की निगरानी की जाए ताकि, लड़की की पैदाइश परिवार के लिए अनिवार्य हो.
लोकलेखा समिति की रिपोर्ट में दिए इस सुझाव के लिए महाराष्ट्र विधानमंडल में हुई बहस का हवाला दिया गया है. समिति के प्रमुख गोपालदास अग्रवाल ने कहा है कि मौजूदा पीसीपीएनडीटी कानून, जो कि 1994 में बना है, स्त्री भ्रूण हत्या रोकने के लिए कारगर साबित नहीं हो रहा है. ऐसे में उसमें बदलाव की पेशकश की गई है.
समिति का कहना है कि, जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, महाराष्ट्र में 2001 से 2011तक लड़कों के मुक़ाबले लड़कियों का अनुपात कम रहा है. इस बीच कई घटनाओं में कन्या भ्रूण हत्या के रैकेट का भंडाफोड़ करते हुए 550 मामले दर्ज हुए हैं और 48 डॉक्टरों का रजिस्ट्रेशन रद्द हुए हैं. लेकिन, इन घटनाओं में परिवार गर्भ संरक्षण की जिम्मेदारी से मुक्त हैं, उन्हें कानून के दायरे में लाने की पहल लोकलेखा समिति ने की है.
सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाली वर्षा देशपांडे ने लोकलेखा समिति के सुझाव को अव्यवहारिक करार देते हुए महिलाओं की निजता से छेड़छाड़ करार दिया है. देशपांडे का आरोप है कि पीसीपीएडीटी क़ानून में बदलाव के लिए जो पेशकश की गई है वह सोनोग्राफी का कारोबार बढ़ाने के लिए की गई है.
पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की कम होती जन्मदर को बढ़ाने पर महाराष्ट्र विधानमंडल की लोकलेखा समिति ने चिंता जताते हुए सुझाव दिया है कि माता-पिता को सोनोग्राफी के जरीए आने पर गर्भ का लिंग परीक्षण अनिवार्य किया जाए. गर्भ अगर लड़की का हो तो परिवार की निगरानी की जाए ताकि, लड़की की पैदाइश परिवार के लिए अनिवार्य हो.
लोकलेखा समिति की रिपोर्ट में दिए इस सुझाव के लिए महाराष्ट्र विधानमंडल में हुई बहस का हवाला दिया गया है. समिति के प्रमुख गोपालदास अग्रवाल ने कहा है कि मौजूदा पीसीपीएनडीटी कानून, जो कि 1994 में बना है, स्त्री भ्रूण हत्या रोकने के लिए कारगर साबित नहीं हो रहा है. ऐसे में उसमें बदलाव की पेशकश की गई है.
समिति का कहना है कि, जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, महाराष्ट्र में 2001 से 2011तक लड़कों के मुक़ाबले लड़कियों का अनुपात कम रहा है. इस बीच कई घटनाओं में कन्या भ्रूण हत्या के रैकेट का भंडाफोड़ करते हुए 550 मामले दर्ज हुए हैं और 48 डॉक्टरों का रजिस्ट्रेशन रद्द हुए हैं. लेकिन, इन घटनाओं में परिवार गर्भ संरक्षण की जिम्मेदारी से मुक्त हैं, उन्हें कानून के दायरे में लाने की पहल लोकलेखा समिति ने की है.
सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाली वर्षा देशपांडे ने लोकलेखा समिति के सुझाव को अव्यवहारिक करार देते हुए महिलाओं की निजता से छेड़छाड़ करार दिया है. देशपांडे का आरोप है कि पीसीपीएडीटी क़ानून में बदलाव के लिए जो पेशकश की गई है वह सोनोग्राफी का कारोबार बढ़ाने के लिए की गई है.
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