कुले में सूखे की मार
मुंबई:
इस साल सूखे से पूरे महाराष्ट्र में हालात बेहत चिंताजनक हैं। मराठवाड़ा और बीड के हालात से तो अब पूरा देश वाकिफ है पर महाराष्ट्र में ऐसे और भी कई इलाके हैं, जहा सूखे के हालात हैं पर वहां पर ज्यादा लोगों का ध्यान नहीं जाता।
पुणे से 35 किलोमीटर पहाड़ों में कुले नामक एक गांव बसा है। यहां के लोगों की कमाई के दो जरिये हैं, चावल की खेती और पशुपालन, पर इस साल सूखे के चलते ये दोनों ही जरिये बर्बादी की कगार पर हैं। निचले इलाके के खेतों को तो फिर भी थोड़ा बहुत पानी मिल जाता है पर बाकी के इलाके की फसल को न के बराबर पानी मिला है।
चावल की रोप तीन महीने तक आधे पानी में रहनी चाहिए तब कहीं जाकर फसल तैयार होती है, लेकिन रोप को बमुश्किल सिर्फ जड़ों तक का ही पानी मिल रहा है, ऐसे में यहां के किसानों का कहना है कि अगर अगले 10 दिन में बारिश नहीं हुई तो यह सब फसल जल जाएगी।
55 साल की सुला बाई का पूरा कुनबा चावल की खेती पर निर्भर है। बारिश का ना होना आजकल उनकी चिंता का सबब बना हुआ है।
सुला बाई कहती हैं कि आठ दिन बारिश नहीं हुई तो सब बर्बाद हो जाएगा। वह और उनका परिवार खाएंगे भी क्या यह बड़ा सवाल है उनके लिए।
चावल की रोप के अलावा यहां के लोग पशुपालन पर निर्भर हैं। अपने पशुओं को यहां के किसान चावल की फसल का भूसा खिलाते हैं। उनके सामने दिक्कत यह है कि जब चावल की फसल ही नहीं रहेगी तो जानवरों को भूसा कहां से खिलाएंगे।
बब्बन राव का कहना है कि बारिश नहीं हुई तो सब फसल जल जाएगी। क्या तो वो खुद खाएंगे और क्या तो जानवरों को खिलाएंगे। ऐसे में गांव की औरतें जो भी काम मिले वह कर रही हैं और अपना घर चलाने को कोशिश कर रही हैं।
पुष्पा का परिवार हर साल खेती करता है। पर इस साल के हालात देखते हुए पुष्पा घर से बाहर जो भी काम मिले वह करके अपने परिवार को पालती हैं। उनका कहना है कि हम यहां जो भी काम मिले वह करते हैं। घर का खर्च चलाने को कोशिश करते हैं। कुले के लोगों की शिकायत यह है कि जब भी सूखे की बात होती है तो लोग मराठवाड़ा जैसे इलाकों की बात करते हैं, लेकिन उनकी ख़राब हो रही फसलों की सुध लेने कोई नहीं आ रहा।
पुणे से 35 किलोमीटर पहाड़ों में कुले नामक एक गांव बसा है। यहां के लोगों की कमाई के दो जरिये हैं, चावल की खेती और पशुपालन, पर इस साल सूखे के चलते ये दोनों ही जरिये बर्बादी की कगार पर हैं। निचले इलाके के खेतों को तो फिर भी थोड़ा बहुत पानी मिल जाता है पर बाकी के इलाके की फसल को न के बराबर पानी मिला है।
चावल की रोप तीन महीने तक आधे पानी में रहनी चाहिए तब कहीं जाकर फसल तैयार होती है, लेकिन रोप को बमुश्किल सिर्फ जड़ों तक का ही पानी मिल रहा है, ऐसे में यहां के किसानों का कहना है कि अगर अगले 10 दिन में बारिश नहीं हुई तो यह सब फसल जल जाएगी।
55 साल की सुला बाई का पूरा कुनबा चावल की खेती पर निर्भर है। बारिश का ना होना आजकल उनकी चिंता का सबब बना हुआ है।
सुला बाई कहती हैं कि आठ दिन बारिश नहीं हुई तो सब बर्बाद हो जाएगा। वह और उनका परिवार खाएंगे भी क्या यह बड़ा सवाल है उनके लिए।
चावल की रोप के अलावा यहां के लोग पशुपालन पर निर्भर हैं। अपने पशुओं को यहां के किसान चावल की फसल का भूसा खिलाते हैं। उनके सामने दिक्कत यह है कि जब चावल की फसल ही नहीं रहेगी तो जानवरों को भूसा कहां से खिलाएंगे।
बब्बन राव का कहना है कि बारिश नहीं हुई तो सब फसल जल जाएगी। क्या तो वो खुद खाएंगे और क्या तो जानवरों को खिलाएंगे। ऐसे में गांव की औरतें जो भी काम मिले वह कर रही हैं और अपना घर चलाने को कोशिश कर रही हैं।
पुष्पा का परिवार हर साल खेती करता है। पर इस साल के हालात देखते हुए पुष्पा घर से बाहर जो भी काम मिले वह करके अपने परिवार को पालती हैं। उनका कहना है कि हम यहां जो भी काम मिले वह करते हैं। घर का खर्च चलाने को कोशिश करते हैं। कुले के लोगों की शिकायत यह है कि जब भी सूखे की बात होती है तो लोग मराठवाड़ा जैसे इलाकों की बात करते हैं, लेकिन उनकी ख़राब हो रही फसलों की सुध लेने कोई नहीं आ रहा।
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