गांधी नगर:
लोकायुक्त के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट तक मात खा चुके गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नया लोकायुक्त बिल पास कराया है। विपक्ष के भारी हंगामे और वॉकआउट के बीच विधानसभा ने यह बिल पास कर दिया।
नए बिल के तहत गुजरात में लोकायुक्त की नियुक्ति में अब राज्यपाल की कोई भूमिका नहीं रह गई है।
गुजरात में अब लोकायुक्त के अलावा चार उप−लोकायुक्त भी होंगे जिनका चयन मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली एक कमेटी करेगी।
जहां कांग्रेस मोदी सरकार पर मनमानी का आरोप लगा रही है वहीं बीजेपी की दलील है कि जो प्रक्रिया केन्द्र सरकार लोकपाल की नियुक्ति के लिए अपना रही है वही प्रक्रिया गुजरात सरकार लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए अपना रही है तो इसमें हर्ज ही क्या है।
कांग्रेस ने गुजरात लोकायुक्त आयोग विधेयक 2013 को नरेंद्र मोदी सरकार का भ्रष्टाचार छिपाने का प्रयास करार दिया। कांग्रेस द्वारा सदन का बहिर्गमन करने के बाद यह विधेयक बहुमत से पारित हुआ।
राज्यपाल और मुख्य न्यायाधीश की शक्तियां सीमित करने के अलावा इस विधेयक का स्वरूप वर्तमान लोकायुक्त अधिनियम 1986 की तरह ही बना हुआ है जिसे कुछ कानूनी विशेषज्ञों ने ‘शक्तिहीन कानून’ करार दिया था।
इस विधेयक के पारित होने से दो वर्ष पहले राज्यपाल कमला बेनीवाल ने लोकायुक्त संशोधन विधेयक को वापस कर दिया था जिसमें नियुक्ति की सभी शक्तियां मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली चयन समिति को देने का प्रस्ताव था और जिसमें कहा गया था कि राज्यपाल उसकी सिफारिश पर काम करे। मुख्य न्यायाधीश को नए विधेयक में लगभग कोई भूमिका नहीं दी गई है।
वर्तमान लोकायुक्त कानून में लोकायुक्त के चयन की शक्ति राज्यपाल और राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पास है।
इस विधेयक से पूर्व प्रदेश सरकार इस मसले पर कानूनी और राजनीतिक लड़ाई हार गई थी। राज्यपाल कमला बेनीवाल ने राज्य सरकार की अनदेखी करते हुए न्यायाधीश आरए मेहता को प्रदेश का लोकायुक्त नियुक्त किया था। इस वर्ष जनवरी में उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय ने भी इस नियुक्ति को सही ठहराया था।
नए बिल के तहत गुजरात में लोकायुक्त की नियुक्ति में अब राज्यपाल की कोई भूमिका नहीं रह गई है।
गुजरात में अब लोकायुक्त के अलावा चार उप−लोकायुक्त भी होंगे जिनका चयन मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली एक कमेटी करेगी।
जहां कांग्रेस मोदी सरकार पर मनमानी का आरोप लगा रही है वहीं बीजेपी की दलील है कि जो प्रक्रिया केन्द्र सरकार लोकपाल की नियुक्ति के लिए अपना रही है वही प्रक्रिया गुजरात सरकार लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए अपना रही है तो इसमें हर्ज ही क्या है।
कांग्रेस ने गुजरात लोकायुक्त आयोग विधेयक 2013 को नरेंद्र मोदी सरकार का भ्रष्टाचार छिपाने का प्रयास करार दिया। कांग्रेस द्वारा सदन का बहिर्गमन करने के बाद यह विधेयक बहुमत से पारित हुआ।
राज्यपाल और मुख्य न्यायाधीश की शक्तियां सीमित करने के अलावा इस विधेयक का स्वरूप वर्तमान लोकायुक्त अधिनियम 1986 की तरह ही बना हुआ है जिसे कुछ कानूनी विशेषज्ञों ने ‘शक्तिहीन कानून’ करार दिया था।
इस विधेयक के पारित होने से दो वर्ष पहले राज्यपाल कमला बेनीवाल ने लोकायुक्त संशोधन विधेयक को वापस कर दिया था जिसमें नियुक्ति की सभी शक्तियां मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली चयन समिति को देने का प्रस्ताव था और जिसमें कहा गया था कि राज्यपाल उसकी सिफारिश पर काम करे। मुख्य न्यायाधीश को नए विधेयक में लगभग कोई भूमिका नहीं दी गई है।
वर्तमान लोकायुक्त कानून में लोकायुक्त के चयन की शक्ति राज्यपाल और राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पास है।
इस विधेयक से पूर्व प्रदेश सरकार इस मसले पर कानूनी और राजनीतिक लड़ाई हार गई थी। राज्यपाल कमला बेनीवाल ने राज्य सरकार की अनदेखी करते हुए न्यायाधीश आरए मेहता को प्रदेश का लोकायुक्त नियुक्त किया था। इस वर्ष जनवरी में उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय ने भी इस नियुक्ति को सही ठहराया था।
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