लोकसभा में भी ओबीसी संशोधन बिल पास हो गया. अब राज्यों को ये हक मिल गया है कि वे ओबीसी की अपनी लिस्ट बनाएं. ये बहुत पुरानी मांग थी, जिस पर पक्ष-विपक्ष साथ थे. मॉनसून सत्र के दौरान लोकसभा में ऐसी बहस पहली बार दिखी. सरकार अपनी बात कहती रही और विपक्षी सांसद अपनी सीट पर बैठकर बहस सुनते रहे. कहीं कोई हंगामा नहीं, कहीं नारेबाजी नहीं. मौका था 127वें संविधान संशोधन बिल पर चर्चा का. इस बिल के जरिए राज्यों को अधिकार मिलेगा कि वो ओबीसी की पहचान कर उन्हें अपनी ओबीसी सूची में शामिल कर सकें. लोकसभा मैं ये बिल दो तिहाई बहुमत से पास हो गया. 127वें संविधान संशोधन बिल के जरिए राज्यों को अधिकार मिल गया कि वो अपने क्षेत्र के हिसाब से ओबीसी लिस्ट बना सकें. लोकसभा में यह बिल दो तिहाई बहुमत से पास हो गया. निचले सदन में इस संविधान संशोधन विधेयक पर मतविभाजन के दौरान पक्ष में 385 मत पड़े और विपक्ष में कोई मत नहीं पड़ा.
इससे पहले कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाए. किसी ने कहा कि आने वाले यूपी चुनाव की वजह सरकार बिल लेकर आई तो किसी ने कहा यह सरकार लोगों को बांटने में लगी है. बहस में हिस्सा लेते हुए एनडीए और कई विपक्षी दलों ने मांग कि सरकार जाति पर आधारित जनगणना कराए और आरक्षण पर लगी 50 फीसदी रोक को भी हटाए. लेकिन राज्यसभा में लगातार 16वें दिन नए कृषि कानूनों के खिलाफ विपक्ष के विरोध की वजह से गतिरोध बना रहा. कृषि से जुड़े मुद्दों पर चर्चा शुरू हुई लेकिन विपक्ष के हंगामे की वजह से सदन की कार्यवाही 4 बार स्थगित करनी पड़ी.
संसदीय कार्य मंत्री प्रहलाद जोशी ने विपक्ष पर चर्चा को बाधित करने का आरोप लगाया. जोशी ने कहा, 'कृषि संकट पर चर्चा के लिए हम तैयार थे. हमारे वक्ता को नहीं बोलने दिया. बुक चेयर और सदस्यों के ऊपर फेंकी गई. हमने ऐसा व्यवहार कभी नहीं देखा.' जवाब में कांग्रेस सांसद प्रताप सिंह बाजवा ने एनडीटीवी से कहा, "जिन सांसदों ने रूल बुक राज्यसभा में फेंके वह चाहते थे कि राज्यसभा के डिप्टी चेयरमैन कानून और रूलबुक को पढ़ कर आएं... कानून के हिसाब से चलें."
कुछ विपक्षी सांसद अपना विरोध जताने काले कपड़ों में आए थे तो कुछ ने काली पट्टी बांधी हुई थी. आम आदमी पार्टी के सांसद सुशील गुप्ता ने एनडीटीवी से कहा, 'हम काले कपड़े पहनकर आज संसद आए थे इस मांग को लेकर की तीनों नए कानून वापस लिए जाएं.' जाहिर है नए कृषि कानूनों के मसले पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच टकराव और बढ़ता जा रहा है.
सवाल इंडिया का : क्या राज्यों को ओबीसी सूची देने से नया विवाद पैदा होगा?