दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले अप्रवासी मजदूरों के परिवार के सामने दुश्वारियां बढ़ गई हैं (प्रतीकात्मक तस्वीर).
लॉकडाउन की समय सीमा 3 मई तक बढ़ा दी गई है. दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले अप्रवासी मजदूरों के परिवार के सामने दुश्वारियां बढ़ गई हैं. बाहर से आए असंगठित क्षेत्र के मजदूरों का न तो राशन कार्ड है और न श्रमिक कल्याण बोर्ड में रजिस्टर्ड हैं ऐसे में इनका पूरा परिवार आम लोगों की मदद और सरकारी खाने के पैकेट पर निर्भर हो गया है.
चिलचिलाती धूप में पांच किलोमीटर साइकिल चलाकर राजू और उनके दोस्त रोजाना इसी तरह सरकारी फूड पैकेट लेने जाते हैं. राजू , अर्जुन और शिव खाना लेकर अपने कंपाउंड में पहुंचते हैं. फूड पैकेट छह मिले हैं और खाने वाले 15 से ज्यादा लोग हैं. दाल और चावल वाले इस एक एक पैकेट में दो से तीन लोग खाने लगते हैं. पहले कंपाउड में 13-14 परिवार रहते थे लेकिन सारे लोग गांव चले गए अभी ये तीन परिवार यहां रहते हैं.
ग्रेटर नोएडा में सफाई कर्मी राजू ने बताया, 'परिवार में आठ लोग हैं और तन्ख्वाह भी नहीं मिली है. बस किसी तरह चला रहे हैं. खाना मिला है पहले बच्चे खाते हैं फिर अगर बचा तो हम भी खा लेते हैं.' इसी तरह राजू के बगल में सिक्युरिटी गार्ड की नौकरी करने वाले अर्जुन का परिवार है. एक फूड पैकेट में वो और उनके भाई खा रहे हैं दूसरे फूड पैकेट में उनकी पत्नी अपने बच्चों के साथ खा रही है. अर्जुन ने बताया, ' बस सर किसी तरह चला रहे हैं क्या करें तनख्वाह भी नहीं काम भी नहीं है.'
हालांकि पुलिस और स्वयंसेवी संस्थाएं भी गरीबों को खाना बांटने में पीछे नहीं हैं. गौतमबुद्ध नगर प्रशासन का दावा है कि गौतमबुद्ध नगर में करीब 92,000 लोगों को खाना दिया जा रहा है. 14,950 मजदूरों को 1,000 रुपए प्रति मजदूर दिए गए हैं. 6,942 घुमंतू मजदूरों को राशन देने का दावा भी है. हर रोज करीब 7,000 से ज्यादा मजदूरों को फूड पैकेट बांटे जाने की बात भी कही गई है लेकिन इस लॉकडाउन की लंबी समय सीमा में ग्रेटर नोएडा की आसमान छूती इमारतों से दूर रहने वाले हजारों मजदूरों और उनके परिवार को भरपेट खाना खिलाना प्रशासन के लिए भी एक बड़ी चुनौती है.
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