लोकसभा में भूमि अधिग्रहण विधेयक पास, कांग्रेस ने किया वॉकआउट

नई दिल्ली:

लोकसभा में भूमि अधिग्रहण बिल पर दो दिनों तक चली चर्चा के बाद आज इसे सदन ने पारित कर दिया। सरकार ने इस विधेयक पर जारी राजनीतिक गतिरोध तोड़ने के लिए इसमें नौ संशोधन के किए थे।

कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, वामपंथी दल, राजद, सपा ने विधेयक के पारित होने के समय सदन से वॉकआउट किया, जबकि बीजू जनता दल के सदस्य विधेयक पर खंडवार चर्चा के दौरान ही वॉकआउट कर गए थे और शिवसेना ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया।

एनडीए के अन्य दल स्वाभिमानी पक्ष ने एक संशोधन पेश किया जिसे अस्वीकार कर दिया गया। सरकार ने इस विधेयक का बचाव करते हुए कहा कि उसने पुराने कानून में 'आत्मा' डालकर इसे ग्रामीण विकास और किसानों के उत्थान का महत्वपूर्ण माध्यम बनाया है। सरकार ने साथ ही आश्वासन दिया कि वह किसानों के हक में विपक्ष सहित किसी भी ओर से दिये गए अन्य सुझावों को भी अपनाने को तैयार है। विपक्ष के कड़े विरोध का सामना कर रही सरकार ने बीच का मार्ग निकालते हुए, जहां विपक्ष एवं सहयोगी दलों की कुछ सुझावों को नये संशोधनों के जरिये विधेयक का हिस्सा बनाया और उसमें दो नये उपबंध जोड़े।

विपक्ष ने हालांकि आरोप लगाया कि सरकार ने उसकी ओर से रखे गए संशोधनों में से किसी को भी स्वीकार नहीं किया गया और और न ही इस विधेयक को स्थाई समिति में भेजने की उसकी मांग को माना गया। सदन ने विपक्ष की ओर से रखे गए संशोधनों को अस्वीकार करते हुए और सरकारी संशोधनों को मंजूर करके 'भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्रव्यस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार संशोधन विधेयक 2015' पर अपनी मुहर लगा दी।

लोकसभा में पूर्ण बहुमत रखने वाली राजग सरकार को अब इस विधेयक को राज्य सभा में पारित कराने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी जहां वह अल्पमत में है और विपक्ष एकजुट है। विपक्ष का साथ पाने के प्रयास में ग्रामीण विकास मंत्री ने आज सदन में आश्वासन दिया कि उन्होंने पहले ही कुछ नये संशोधनों को लाकर विपक्ष और अन्य दलों की चिंताओं को दूर करने की कोशिश की है और किसानों के हितों में अगर और भी कुछ सुझाव होंगे तो सरकार उन्हें भी स्वीकार करने को तैयार है।

लोकसभा में आज चर्चा का उत्तर देते समय विपक्षी सदस्यों के साथ कभी तीखी नोकझोंक तो कभी हास्य विनोद के साथ ग्रामीण विकास मंत्री ने किसानों और देश के व्यापक हित में इसे पारित कराने का आग्रह किया।

यह विधेयक इस संबंध में जारी अध्यादेश का स्थान लेने के लिए लाया गया है। सरकारी संशोधनों में मूल कानून में औद्योगिक गलियारे को परिभाषित किया गया है और यह स्पष्ट किया गया है कि अधिग्रहण सरकार की ओर से या उसके किसी बोर्ड की ओर से किए जायेंगे।

औद्योगिक गलियारे का दायरा राजमार्ग एवं रेलवे लाइन के एक किलोमीटर तक होगा और किसी निजी इकाई को देने के लिए अधिग्रहण नहीं होगा। मंत्री ने कहा कि हमने सामाजिक आधारभूत संरचना शब्द को निकाल दिया है ताकि यह बात नहीं चली जाए कि अधिग्रहण के बाद कोई व्यक्ति कॉलेज एवं अस्पताल जैसे निजी संस्थाओं को खोल सकता है जो कारोबारी मॉडल है।

विधेयक पर चर्चा के दौरान मंत्री बीरेन्द्र सिंह की कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया और दीपेन्दर हुड्डा के साथ तकरार हुई और अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को हस्तक्षेप करना पड़ा। राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, एम वेंकैया नायडू समेत कई मंत्रियों को ग्रामीण विकास मंत्री से आसन को संबोधित करने को कहते सुना गया।

बीरेन्द्र सिंह ने कहा कि हमारी सरकार नया कानून इसलिए लाई है क्योंकि किसान समृद्ध बने और उसके बच्चों को अच्छी शिक्षा एवं सुविधाएं मिले। मंत्री ने कहा कि कानून की धारा 24 में संशोधन किया गया है। धारा 24 में कहा गया है कि पांच साल में जमीन पर काम नहीं होता है तब उसे लौटा दिया जाएगा।

अब यह संशोधन किया गया है कि अगर अदालत में मामला लंबित रहने के कारण काम इस अवधि में नहीं होता है तब वाद की अवधि को घटा दिया जाएगा। उन्होंने ने कहा कि मुआवजा के लिए अलग से निर्धारित खाता खोलने का प्रावधान किया गया है। उन्होंने कहा कि एक नई धारा 6 (ए) जोड़ी गई है।

इसके साथ ही धारा 101 में प्रावधान किया गया है कि परियोजना पूरा होने की अवधि को पांच वर्ष की बजाए पांच वर्ष या परियोजना पूरी की अवधि की जाए लेकिन परियोजना पूरा होने की अवधि का निर्धारण प्राधिकार करेगी क्योंकि कुछ परियोजनाओं को पांच वर्ष में खत्म करना संभव नहीं है।

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ग्रामीण विकास मंत्री ने कहा कि इसकी धारा 105 में संशोधन करते हुए उन सभी 13 केंद्रीय कानूनों को जोड़ा गया है जिन्हें 2013 के कानून में छोड़ दिया गया था। इसके माध्यम से किसानों को उचित मुआवजा देने के साथ पुनर्वास सुनिश्चित करने का काम किया गया है। उन्होंने कहा कि 2013 के मूल कानून में हमने आठ संशोधन किए जिनमें से चार पर किसी को कोई आपत्ति नहीं है।

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