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This Article is From Jan 20, 2015

आंध्र की नई राजधानी के लिए ज़मीन की जद्दोजहद

नई दिल्ली:

आंध्र प्रदेश की नई राजधानी के लिए राज्य सरकार द्वारा हज़ारों एकड़ ज़मीन अधिग्रहित करने के फैसले को लेकर विपक्षी दल और कई सामाजिक संगठन लामबंद हो गए हैं। पिछले महीने ही आंध्र प्रदेश सरकार ने नई राजधानी के लिए विजयवाड़ा और आसपास के ज़िलों में 7,068 वर्ग किलोमीटर ज़मीन विकसित करने के लिए नोटिफिकेशन जारी कर दिया। इसके साथ ही सैंकड़ों गांवों की ज़मीन अधिग्रहित करने की तैयारी शुरू हो गई है।

अब इस फैसले से प्रभावित लोगों ने स्थानीय सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर विरोध जताना शुरू कर दिया है और इस मुहीम में उन्हें राजनीतिक दलों का समर्थन भी मिल रहा है। उनका आरोप है कि जमीन अधिग्रहण अध्यादेश जारी होने के साथ आंध्र सरकार के लिए बड़े स्तर पर ज़मीन अधिग्रहण करना आसान हो गया है। अब इस अंदेशे से घिरे आंध्र के जन संगठन दिल्ली पहुंच गए हैं और इसी हफ्ते राजधानी में विरोध शुरू करने वाले हैं।

आंध्र कांग्रेस के समर्थन से यह मामला राजनीतिक हो गया है। आंध्र लेजिस्लेटिव काउंसिल में विपक्ष के नेता सी रामचंद्रैया ने एनडीटीवी से कहा, 'चंद्र बाबू नायडू हैदराबाद से भी बड़ी राजधानी बनाना चाहते हैं। इसके लिए वो एक लाख एकड़ ज़मीन तक अधिग्रहित करना चाहते हैं। इसके लिए पहले चरण में 30,000 एकड़ ज़मीन का अधिग्रहण करने की तैयारी है।'

अब आंध्र कांग्रेस ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी शुरू कर दी है। आंध्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव जी रुद्रा राजू ने एनडीटीवी को बताया, 'हम स्थानीय प्रभावित लोगों को साथ लेकर इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में PIL करेंगे। हमने इसके खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने का फैसला किया है।'

आंध्र सरकार ने नई राजधानी के लिए बीते महीने क़रीब 7000 वर्ग किलोमीटर की ज़मीन नोटिफाई कर दी जिसके बाद से यह सुगबुगाहट चल रही है। उधर इस विरोध के बावजूद एनडीए सरकार ने बजट सत्र के दौरान हाल के महीनों में जारी ज़मीन अधिग्रहण सहित सभी अध्यादेशों को बिल में बदलने की तैयारी शुरू कर दी है। मंगलवार को वरिष्ठ मंत्रियों की बैठक में यह तय किया गया कि सभी अध्यादेशों को कानून में बदलने के लिए संबंधित बिल 1 फरवरी तक तैयार कर लिया जाएगा।

बजट सत्र से ठीक पहले एक तरफ सरकार ज़मीन अधिग्रहण अध्यादेश को कानून में बदलने की तैयारी कर रही है तो वहीं दूसरी तरफ विपक्षी दल और सामाजिक संगठन इसके खिलाफ फिर लामबंद हो रहे हैं। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार बजट सत्र के दौरान इस विरोध से कैसे निपटती है।

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